Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१८. सन्देह-विमोचन का प्रयत्न १६. अर्थ-निन्हवन और प्रशस्ति-वचन का निषेध २०. प्रवचन की इयत्ता २१. नो हीणे नो अइरित्ते २२. विभज्यवाद का निरूपण और भाषा-विवेक २३. प्रवचनकार के लिये कुछ निर्देश २४. आज्ञासिद्ध वचन के प्रयोग का निर्देश २५. कवलिक समाधि के प्रतिपादन की विधि २६. सूत्र, अर्थ और शास्ता के प्रति विवेक २७. ग्रन्थी या शास्त्रज्ञ भिक्षु का स्वरूप
. अंत के सेवन से उपलब्धि
. अ-मनुष्यों के निर्वाण की समीक्षा १७. मनुष्य जीवन की दुर्लभता १८. सम्बोधि और उपदेश की दुर्लभता १६. पुनर्जन्म किसका नहीं? २०. तथागत का स्वरूप २१. निष्ठास्थान की प्राप्ति २२. प्रवर्तक वीर्य का कार्य २३. लक्ष्य-प्राप्ति का साधन २४. निग्रंप का प्रतिफलन २५. वीर्य
कालिकता । अध्ययन
पन्द्रहवां अध्ययन
चन
१. त्रिकाल विद् २. अनुपम तत्त्व का व्याख्याता ३. सत्य और मैत्री ४. धर्म की जीवन्त भावना ५. भावना-योग ६. कर्म का अकर्ता ७. महावीर्यवान् की निष्पत्ति ८. विज्ञाता-द्रष्टा ही काम-वासना का पारगामी ६. आदिमोक्ष पुरुष की पहिचान १०. मार्ग के अनुशासक कौन ? ११. संयम-धनी का स्वरूप १२. अनुपम संधि की प्राप्ति १३. अनुपम संधि की फलश्र ति १४. अन्तेण वहइ
१. साधर २. अभिजाते जिज्ञासा ३. 'माहन' का स्वरूप ४. 'श्रमण' का स्वरूप ५. 'भिक्षु' का स्वरूप ६. 'निर्ग्रन्थ' का स्वरूप
परिशिष्ट १. टिप्पण-अनुक्रम २. पदानुक्रम ३. सूक्त और सुभाषित ४. उपमा ५. व्याकरण विमर्श
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