Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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६. स्थितात्मा का स्वरूप
७. कायर समाधि की साधना करने में असमर्थ ८-६. अज्ञानी मुनि की चर्या और विपाक १०. अनासक्ति का उपदेश ११. असमाधि के स्रोत (स्थूल शरीर) की कृशता १२. अकेलेपन की अभ्यर्थना १३. समाधि की प्राप्ति किसे ? १४. परीषह-विजय का निर्देश १५. गृहस्थोचित कर्म-वर्जन का निर्देश १६. समाधि धर्म के अज्ञाता १७. असंयमी के वर-वर्धन का प्रतिपादन १८. अजर-अमर की भांति आचरण का निषेध
१६. असमाधि का कारण २०-२२. मूलगुण समाधि के कारण २३-२४. उत्तरगुण के पालन से समाधि
ग्यारहवां अध्ययन १-३. जम्बू की मोक्ष-मार्ग विषयक जिज्ञासा ४-६. सुधर्मा द्वारा मार्गसार का कथन ७-८. प्रत्येक प्राणी के पृथक् अस्तित्व का प्रतिपादन
६. हिंसा के निषेध का मौलिक कारण १०. ज्ञान का सार ११. शान्ति और निर्वाण का अनुबंध
१२. विरोध-वर्जन-अहिंसा का आधार १३-१५. एषणा का विवेक १६-२१. दानकाल में भाषा-विवेक का अवबोध
२२. निर्वाण का संधान २३-२४. धर्म-दीप का प्रतिपादन . २५-३१. हिंसा-धर्म को मानने वाली बौद्धष्टि की समीक्षा
३२. महाघोर स्रोत को तरने का उपाय ३३. ग्राम्यधर्मों से विरति ३४. निर्वाण का संधान कसे? ३५. साधु-धर्म का संधान और पाप-धर्म का निराकरण ३६. शान्ति की प्रतिष्ठा ३७. कष्ट-सहन का निर्देश ३८. केवली का मत
६. अक्रियावाद का परिणाम ७. पकुधकात्यायन का मत
८. अक्रिय-आत्मवादी निरुद्ध प्रज्ञा से उपमित ९-१०. अष्टांग निमित्तज्ञान की यथार्थता, अयथार्थता ११. दुःख स्वकृत, दुःख-मुक्ति के दो साधन-विद्या
और आचरण १२. जीवों की आसक्ति कहां ? | १३. जन्म-मरण की अटूट परम्परा १४. संसार-म्रमण के दो हेतु-विषय और अंगना १५. अकर्म से कर्मक्षय का प्रतिपादन १६. स्वयं सम्बुद्ध तीर्थङ्करों का मार्ग १७. वाग्वीर और कर्मवीर का निर्देश १८. मध्यस्थभाव का स्वरूप
१६. ज्योतिर्भूत पुरुष का संसर्ग २०-२१. क्रियावाद का प्रतिपादक कौन ? २२. संसार के वलय से मुक्त कौन ?
तेरहवां अध्ययन १. यथार्थ प्रतिपादन का संकल्प २-४. सूत्र, अर्थ और सूत्रार्थ प्रदाता गुरु के निन्हवन से
अनन्त संसार ५. शिष्य के दोष और उनका परिणाम ६. छद्म से अमुक्त कौन ?
७. मध्यस्थ और कलह से परे कौन ? ८-६. परमार्थ का पलिमन्थु-अहंकार १०-११. जाति और कुल का मद गृहस्थ-कर्म है १२-१६. विभिन्न मद-स्थानों के परिहार का निर्देश
१७. अनासक्त रहने का निर्देश १५-२२. धर्मकथा करने का विवेक और प्रयोजन
२३. वलय-मुक्त कौन ?
चौदहवां अध्ययन
बारहवां अध्ययन
१. अप्रमाद के कुछ सूत्र २-४. गुरुकुलवास का महत्त्व ५. अनुशासन कब?
६. विचिकित्सा का निराकरण ७-६. अनुशिष्टि-सहन के निर्देश १०-११. अनुशास्ता की पूजनीयता १२-१३. जिन-प्रवचन का महत्व
१४. जीव-प्रद्वेष का निषेध १५-१७. धर्म, समाधि और मार्ग की आराधना मौर
निष्पत्ति
१. समवसरण के चार प्रकार २-३. अज्ञानवाद का निरूपण ४. विनयवाद तथा अक्रिय-आत्मवाद का निरूपण ५. शून्यवादी बौद्धों का मत
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