Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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के सुयोग्य शिष्यरत्न हैं और आप मेरे दादागुरु हैं । आपश्री की प्रेरणा व मार्गदर्शन से मैंने दो अक्षरों का बोध प्राप्त किया । आपश्री द्वारा किये गये अनुवाद एवं व्याख्या को मैंने अपनी शैली में ढालने का प्रयत्न किया है ।
मेरे जीवन-विकास और यत्किचित् साहित्यसेवा का जो कुछ भी श्रेय है, वह मेरे गुरुदेव नवयुग-सुधारक, सेवा और सरलता के मूर्तिमंत रूप भंडारी श्री पदमचन्दजी महाराज को है । मैं जो कुछ कर पाया हूँ, यह स्व० गुरुदेव का आशीर्वाद और पूज्य गुरुदेव भंडारीजी महाराज के मार्गदर्शन तथा सतत सहयोग का ही सुफल है ।
परममनीषी राष्ट्रसंत कवि श्री अमर मुनि जी महाराज के योग्य मार्गदर्शन और स्नेहपूरित प्रेरणाओं को भी मैं भुला नहीं सकता। कविश्री की बलवती प्रेरणा और समयोपयोगी सुझावों ने मुझे कुछ करने योग्य बनाया है।
निश्री नेमिचन्द्रजी महाराज ने भी मेरे इस भगीरथ कार्य को भाषा-शैली आदि विविध दृष्टियों से सुन्दर और उपयोगी स्वरूप प्रदान किया है। सुचिन्तक विद्वद्रत्न श्री विजय मुनि शास्त्री ने इस सूत्र रत्न पर विशेष प्रस्तावना लिखी है
और जैन समाज के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीचन्दजी सुराना 'सरस' ने इसे शुद्ध मुद्रण आदि की दृष्टि से निखारा है ।
पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा से अनेक जिन-प्रवचन-श्रद्धालुओं ने प्रकाशन में हाथ बटाया है।
___ इस प्रकार मेरा यह एक संपादन-प्रयत्न गुरुजनों के आशीर्वाद तथा मार्गदर्शन, सहयोगीजनों के सहकार और श्रद्धालु भक्तों के उदार सौजन्य के बल पर पाठकों के हाथों में प्रस्तुत है । यह संपादन-विवेचन कैसा बना है, इसका निर्णय जिज्ञासु पाठक ही करेंगे, मैं तो जिन-प्रवचन की एक तुच्छ सेवा करके अपने को भाग्यशाली मानकर ही प्रसन्न व आनन्दित हूँ।
-अमर मुनि
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