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उनमें सुन्दर समन्वय है। स्वर और ताल के साथ संगीत अपने मूर्त रूप में साकार हुआ है। जो अपने सौन्दर्य में मानस के अन्तस् को निमग्न कर देता है। संगीत के साथ भावनात्मक सौन्दर्य का उचित समन्वय भी मिलता है। महाकवि बनारसीदास, द्यानतराय, भैया भगवती दास, भूधरदास, बुधजन, दौलतराम और भागचन्द्र आदि के पदों में संगीत का निखरा स्वरूप स्पष्टरूपेण देखने को मिलता है। ___कविवर बुधजन ने स्वर और लय का सुन्दर विधान कर राग भैरवी और तीन ताल में निम्नपद कितने अनूठे ढंग से प्रस्तुत किया है? मृत्यु जीवन का शाश्वत नियम है। कवि हर क्षण इस सत्य में सतर्क रहता है और मानव को भी उसकी चेतावनी देता है। उनकी यह अनुभूति निस्सन्देह ही विश्वजनीन है
"काल अचानक ही ले जायगा गाफिल होकर रहना क्या रे ? छिनकू तोकू नाँहि बचावै, तो सुभटन का रखना क्या रे ?(पद०४४६)
इसी प्रकार के कवि दौलतराम के पदों में संगीत की अद्भुत अवतारणा हुई है। उनकी पदावलियाँ संगीत के स्वरों में बँधकर अत्यन्त बेगवती सिद्ध हुई हैं। उन्होंने राग काफी में होली के रूपक द्वारा शरीर के अंग-प्रत्यंगों एवं भावों का वाद्ययन्त्रों का स्वरूप देकर इस प्रकार अभिव्यक्ति की है कि समस्त स्वर-तन्त्रियाँ स्वत: झंकृत हो उठती हैं और कल्पना और अनुभूति के उचित समन्वय से आन्तरिक संगीत का अद्वितीय भाव-चित्र प्रस्तुत हो उठा है, शब्दों के मानों मूर्त रूप धारण कर लिया है और लेखनीरूपी कूची ने उसमें मनोहर रंगों की आकर्षक छटा बिखेर दी है। यथा"मेरो मन ऐसी खेलत होरी।
मन मिरदंग साज करि ला री तन को तमूरा बनो री।। (पद० ५१५) आत्मनिष्ठा
जैन-पदों में आत्मनिष्ठा भी उपलभ्य है, जो गीतिकाव्य की दूसरी विशेषता है। प्रस्तुत संग्रह के सभी जैनकवि अध्यात्म-प्रेमी थे। उन्होंने संसार की असारता को लक्ष्यकर अपने अन्तर्मन की शान्त एवं निश्छल भाव निर्झरिणी में निमग्न होकर गीतों की मधुर तान छेड़ी है। आत्मानुभूति का आलोक सर्वत्र विद्यमान है। क्योंकि आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति ही इन पदों का प्रधान ध्येय है।
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