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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
में : ८४ प्राकत कवियों की रचनाओं का संकलन किया है । याकोबी का मत है कि महाराष्ट्री प्राकत का व्यापक प्रयोग ईस्वी तीसरी शताब्दी के पहले ही होने लगा था। अतः प्राकृतप्रकाश में वर्णित अनुशासन पर्याप्त प्राचीन है अतएव वररुचि को कालिदास का समकालीन मानना अनुचित नहीं है।
प्राकृत प्रकाश में कुल ५०९ सूत्र हैं । भामहवृत्ति के अनुसार ४८७ और चन्द्रिका टीका के अनुसार ६०९ सूत्र उपलब्ध हैं। प्राकतप्रकाश की चार प्राचीन टीकाएँ उपलब्ध हैं
१. मनोरमा-इस टीका के रचयिता भामह हैं । २. प्राकृतमअरी-इस टीका के रचयिता कात्यायन नामक विद्वान हैं। ३. कृतसंजीवनी-यह टीका वसन्तराज द्वारा लिखित है।
४. सुबोधिनी-यह टीका सदानन्द द्वारा विरचित है और नवम परिच्छेद के नवम सूत्र की समाप्ति के साथ समाप्त हुई है।
___ इस ग्रन्ध में बारह परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेद में स्वर विकार एवं स्वरपरिवर्तन के नियमों का निरूपण किया गया है। विशिष्ट-विशिष्ट शब्दों में स्वरसम्बन्धी जो विकार उत्पः हाते हैं, उनका ४४ सूत्रों में विवेचन किया गया है। दूसरे परिच्छेद का आर. मध वर्ती व्यजनों के लोप से होता है। मध्य में आनेवाले क, ग, च, ज, त, द, प, 4 और व का लोप विधान किया है। तीसरे सूत्र से विशेष, विशेष शब्दों के असंयुक्त व्यजनों के लोप एवं उनके स्थान पर विशेष व्यञ्जनों के आदेश का नियमन किया गया है। यह प्रकरण अन्तिम ४७वे सूत्र तक चला है। तीसरे परिच्छेद में संयुक्त व्यञ्जनों के लोप, विकार एवं परिवर्तनों का निरूपण है। इस परिच्छेद में ६६ सूना है और सभी सूत्र विशिष्ट-विशिष्ट शब्दों में संयुक्त व्यञ्जनों के परिवर्तन का निर्देश करते हैं। चौथे परिच्छेद में ३३ सूत्र हैं, इनमें संकीर्णविधि-निश्चित शब्दों के अनुशासन वर्णित हैं। इस परिच्छेद में अनुकारी, विकारी और देशी इन तीनों प्रकार के शब्दों का अनुशासन आया है। पाचवें परिच्छेद के ४७ सूत्रों में लिङ्ग और विभक्ति-आदेश वाणत है। छठव परिच्छेद में ६४ सूत्र हैं, इन सूत्रों में सर्वनामविधि का निरूपण है अर्थात् सर्वनाम शब्दों के रूप एवं उनके विभक्ति प्रत्यय निर्दिष्ट किये गये हैं। सप्तम परिच्छेद में तिङन्त विधि है, धातुरूपों का अनुशासन संक्षेप में लिखा गया है। इसमें कुल ३४ सूत्र हैं। अष्टम परिच्छेद में धात्वादेश निरूपित है। इसमें कुल ७१ सूत्र हैं । संस्कृत की किस धातु के स्थान पर प्राकृत में कौन सी धातु का आदेश होता है, इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्राकृत भाषा का यह धात्वादेश सम्बन्धी प्रकरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। नौवां परिच्छेद निपात का है। इसमें अव्ययों के अर्थ और प्रयोग दिये गये है। इस परिच्छेद में १८ सूत्र हैं। दसवें परिच्छेद में पैशाची भाषा का अनुशासन है। इसमें १४ सूत्र हैं। ग्यारहवें परिच्छेद में मागधी