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में कंकर खाने में आ जाय या पानी में धुल उडकर पड़े, और शाक तरकारी में मिट्टी लगी हुई हो. उसका उपयोग करते हुवे भी मिट्टी रह जाती है. लेकीन कच्ची मिट्टी के नियमका भंग नहीं होता. परन्तु उसकी जयणा तो रखना चाहियें.
कच्चा-सचित्त निमक श्रावक को त्याग करना चाहिये. और अचित्त वापरना चाहिये. पृथ्वी में से खान खोदकर निकला हुवा पहाड़ से मिला हुवा या समुद्र के पानी से आगर में जमा हुवा एसा वडागरू, घशीयु, उस, लाल सेंध्या वगेरे अनेक खार जिसको अग्नि रूपी शस्त्र न लगा हो वहां तक सचित्त है. वैसा तमाम प्रकारका निमक हरेक जैन भाईयों को त्याग करने लायक है. ग्रहस्थों को अचित्त किया हुवा (बिकता हुवा) कीमतसं नहीं मिले, तो जरूरत पूरता अचित्त कराना चाहिये. दाल शाक में डाला हुवा सचित्त का अचित्त हो जाता है. परन्तु आचारमें, मशालेमें, मुखवास और औषध में अचित्त निमक वापरने में योग्य है । ___ अहणहारी में गिना हुवा-सुरोखार, टंकणखार और फटकड़ी ये अचित्त है। निमक भिन्नभिन्नरीतिसे होता है। एकमिट्टी के बरतन में निमक मरकर उपर से मुंह मजबूत बन्धकर कुम्भार या पहलवाइ की भट्ठी में रखनेसे बराबर अचित्त होता
१ निमक कुंभार के यहां अचित्त करनेके लिये देनेकी प्रवृत्ति गुजरात में पाटण शहर के अन्दर है. यह रिवाज कुमारपाळ महाराजा के
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