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उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये । पयः पानं भुजङ्गनां केवलं विष-वर्द्धनम् ॥ १ ॥ भावार्थ - दीवानों को उपदेश करनेसें, वो लोग उपदेश सुनके, शिक्षा लेने के बदले में क्रोधीष्ट हो जाते है. जैसे सर्पको दूध पाना केवळ झेरकी वृद्धि के लीए होता है. वास्ते वैसेको प्रतिबोध करनेसे क्या ?
४० गुड - गुडमें जीवकी उत्पति होजाती है, कीतनेक वेपारीयों ज्यादा नफा प्राप्त करने के लीए गुडके अंदर बेशन, खारा, मट्टी इस तीन प्रकारसे यानी दूसरी चीजों का मिश्रण करके बेचते हैं. गुडमें उनके वर्ण जैसा (लाल रंग के) कीडे हो जाते है, वास्ते वैसा गुड अभक्ष्य है. इसीलीए वो काममें नहि लेनेका उपयोग रखा जावे, गुडमें बहुधा मिश्रण करते होंगे, वैसा अनुमान होता है | बेशन और खारा मीलानेका कारण- गुड दिखने में अच्छा लगे. मिट्टी मीलाने से सौ मण गुड में चार मण मिट्टी मीलानेसें वजनमें ज्यादा होता है । असा दगा होते हुवा सुना है | वास्ते वैसा हलका माल बल्कुल लेना नहि । लेकीन, देशी माल भी परीक्षा करके लेना. " जीतना सस्ता उतनाहि मेहगा बहार से शुशोभित वो अंदर सें दोषित " यह सूचना अवश्य उपयोगी है। जो माल खरीदना वो सस्ता देख उनका भपकेमें लुब्ध हो के न खरीदना. उनके गुण दोषकी परीक्षा करके अच्छा माल खरीदना व्याजबी है ।
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