Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 184
________________ ३४ चलित रस, वासी वगैरह नहि वापरने का उपयोग रखो। ३५ आटा, मुरब्बा, अचार, सेव, बड़ी, पापड, प्रमुख के लीए आगे लीखी हुइ बाबत पर ध्यान दो, वैसा स्वयं चलो और जीनको उपयोग न हो उनको नम्रता से सीखाओ। ३६ अनंतकायका त्याग करो। ३७ यह मनुष्य जन्म सफल करने के लीए हरी हलदी, आदु, लसन आदि चाहीए जीतना रोग हो तभी उनको काममें मत लो। अपना अनादिका कर्मरूपी रोग नाश होगा तभी मच्चा सुख-शाश्वत् सुख प्राप्त हो सकेगा। ३८ फाल्गुन चोमासा आते पहिले तेल आठ माह तक अछे बरतनमें भरके रखो। ३९ आशाई चातुर्मासमं, खांड, काजु, बादाम, पिस्ता, द्वाक्ष वगैरहका उपयोग बंध करो। ४० सुकवनी आशाड चातुर्मास पहिले वापर डालो, और व्हांसें कार्तिक चातुर्मासतक उनका त्याग करो। ४१ हरावांस, वीली, बीला केरडे और नागरवेलके पानको काममें लेना छोड दो । ४२ परदेशी मेंदा, परसुंदीका आटा खा वाजारमेंसें मंगवाना बंध करो, कुछ कष्ट पडेगा, लेकीन उसे अनेक जीवोंका आशीर्वाद प्राप्त होगा। ४३ पानी पीके तरह वापरो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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