Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 211
________________ २०२ उपसंहार यहां पर महाराजा कुमारपाल के सम्यक्त्वमूल बारहव्रत आदि का वर्णन किया है। उसका मात्र कारण यही है किअठारह देशो के राज्य को सम्हालने का बोझा होते हुए भी उन्होंने श्रावक के गुणों का कितना पालन कर बताया है कि - जिसका अनुकरण करना तो दूर रहा लेकिन उनकी भावना पर विचार करने में भी हम पीछे है। अभी हमको कितने कठिन परिश्रम की आवश्यकता है? वेसी शुभ भावनाओं को प्राप्त करने के निमित्त - प्रसंगोपात्त यह विषय यहां दिया गया है आनन्द - कामदेव आदि श्रावको की-जिन की प्रशंसा स्वयं भगवान् महावीरने भी अपने श्रीमुख द्वारा की, तथा जिन्होंने श्रावक को कर्तव्यों को पूर्ण रूपसे पालन किया । कि जिन कर्तव्यों के कारण निरवद्य आहार लेना योग्य है । इस बड़ा कठिन मार्ग समजना चाहिये । जो उस प्रकार की शक्ति नहीं होवे, तो - सचित्त त्यागी रहना जरुरी है। आखिर जो यह भी नही हो सके, तो बाईस अभक्ष्य और अनन्तकाय का तो अवश्य ही त्याग करना चाहिये । यहां पर यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि - अभक्ष्य आदि का त्याग इत्यादि तुच्छ नियमों को लेने से ही मात्र हमारा पूर्ण संतोष होजाने का नही, लेकिन आनन्द कामदेव तथा महाराजा कुमारपाल इत्यादि के समान श्रावकों के बारह व्रतों को अंगीकार करते हुए क्रमानुसार पंचमहाव्रत की प्राप्ति के लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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