Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 209
________________ एक पान सचित्त और उसकी भी एक दिन में आठ बीड़ी काम में आसकती थी। रात्रिको चारों प्रकार के आहार का त्याग रखते थे। वर्षाऋतु के समय घृा की एक विगय छुट्टी थी। हरी शाक का त्याग रहता था। नित्य प्रति एकासना रहता था-पर्व के दिन विगय तथा सचित्त का त्याग करते थे। अष्टमत्रतः-महाराजा कुमारपालने देशमें से सातों ही व्यसनों को दूर करवा दिये थे। नवमत्रतः-महाराजा कुमारपाल को दोनों समय सामायिक करना तथा सामायिक करते समय श्रीमद् आचार्य हेम चन्द्राचार्य को छोडकर दूसरों से बोलने तक का त्याग था। प्रतिदिन 'योगशास्त्र' के बारह प्रकाश तथा' वीतराग स्तव' के वीश प्रकाशों का पाठ करते थे। दशमत्रतः-वर्षाऋतु में युद्ध नहीं करना-गजनी सुलतान महमूद आया, उस समय भी चलायमान नहीं हुए थे। ग्यारहमानतः-पौषध ओर उपवास करते थे । उस दिन रात्रि के समय काउस्सग्ग ध्यान में रहते थे। उस समय पैर में मंकोडा चिपक गया था, तब लोग उसे खींचने लगे। लेकिन वह तो चिपका ही रहा । उस समय "वह मंकोडा मर जायगा" इस शंका से अपनी चमडी का उतना माग कटवा कर उसे दूर किया। पारणे के दिन समस्त पौषध करने वालोंकों अपने यहां पौषध करवाते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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