Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 198
________________ १८९ तैयार हो जावेंगें। तब आर्थिक हानि की तो बात ही क्या है ? किसी संस्था विशेप के चुनाब में अधिक मत प्राप्त ( to get majority ) करलेने में एक आदी राज्य प्राप्त कर लिया हो, ऐसी हास्यास्पद मनोवृत्ति अपने भाईयों की हो गई है, कि-ईन्हें एक तमु भूमि प्राप्त करने की भी तो शक्ति नहीं है, फिर नया ग्राम अथवा देश प्राप्त करने की तो बात ही क्या? हमारे पूर्वज राज्य के राज्य विजित करते थे, तब भी अपने बडाई की इतनी डींग तो नहीं मारते थे। मत प्राप्त करने पर अपने पोरूष पर गर्व होता है । वास्तव में यह हमारी दीन मनोत्ति का महान् ज्वलना उदाहरण है । आजकलकी म्युनिसिपालिटियों के अधिकारों की वृद्धि होने से जैन नियमानुसार जीवन व्यतीत करने की तीव्र इच्छावाले मुनियों तथा धार्मिक पुरुषोंकी कठिनाईयोंमें भी वृद्धि ही होती आ रही हैं, ये म्युनिसिपालेटियां कत्लखाने चलाती हैं,और शहरोंमे निजी अथवा गुप्त स्थान पर 'मटन मार्किटो' को प्रोत्साहन देकर चलाती है। जिसमें कई ज्ञानहीन जैनों को भी किसी हालत में सहायता देनीही पडती हैं और उसने पास से होकर आना जाना पडता है, इसी प्रकार की चीजोको प्रोत्साहन तथा सहायता देने के लिये हमारे भाईओं बिना विचार किये आगे बढ रहैं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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