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को उस का जीवनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कराने का एक साधन समजाया है। मानव शरीर से उत्पन्न हुए तमाम ' मैल'' तथा 'मल, बाहर दिखाई नहीं देते हुवे जमीन के अन्दर ही अन्दर भी गटर द्वारा करार चले जाते हैं । लेकिन इसमें अहिंसा की दृष्टि को अंश मात्र भी स्थान नहीं है ।
पानी का अधिक दुरुपयोग तथा अन्दर ही अन्दर विकृत होते कई पदार्थ तथा उनमें उत्पन्न होते हुए अनेक प्रकार के कीटाणु ( jerny) तथा समूर्छिमजीवा का तो को हिसाब ही नहीं रहा है । अस्तु, इस गन्दे पानी को खातर रूप में काम में लाकर इससे शाक - तथा भाँति भाँति के फल उत्पन्न किये जाते हैं, जिसमें इस गन्दे पानी के तत्त्व उन शाको तथा फलों में प्रकट हो कर स्वाद रहित तथा दुर्गन्धपूर्ण फल जनता के स्वास्थ्य के लिये हानि प्रद होते है । तथा इस प्रकार गुप्तरीति सें बडा भारी पाप का ढेर इकट्ठा होता है
इस लिये हमारी अहिंसापूर्ण व्यवस्था से हमारे शरीर सें उत्पन्न होते मैल तथा मल खुले तो अवश्य दिखाई देते हैं, लेकिन हवा, धूप तथा प्रकाशके प्रभाव से वे रोजका रोज नष्ट हो जाते हैं। जिससे उनका संग्रह न हो कर उनसे उत्पन्न होता हुवा बुरा प्रभाव जनता के स्वास्थ्य के उपर नहीं होता है । आज -
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