Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 206
________________ साथ में पौषध करने वालों को अपने घर पारणा करवाना। ___ धन हीन हुए प्रत्येक स्वधार्मिक बन्धु को एक एक हजार स्वर्ण मोहरें देना। एक वर्ष के अन्दर स्वधार्मिक भाइयों को एक क्रोड़ स्वर्ण मोहरें दान में देना । इस प्रकार चौदह वर्ष में चौदह क्रोड़ स्वर्ण मुद्राओं का दान दिया। इट्ठयासी लाख का द्रव्य योग्य दान में दान दिया। बहोत्तर लाख का द्रव्य कर्जदारों को देकर उन्हें कर्ज मुक्त किया। इक्कीस ज्ञानभण्डार लिखवाया । - प्रतिदिन श्री त्रिभुवनपाल विहार में स्नात्रोत्सव करवाये। श्री हेमचन्द्राचार्य के चरणो में द्वादशावर्त वन्दन करने के बाद क्रमानुसार सर्व साधुओं को वन्दन करनेका था । प्रथम पौषधादि व्रत अंगीकार करने वाले श्रावक को वन्दन तथा योग्य आदर आदि प्रदान किया। अठारह प्रान्तों में अहिंसा का पालन करवाया (अमारी पडह) न्याय की घण्टी बजवाई। तथा दूसरे चौदह प्रान्तोंम धन तथा मित्रता के अधिकार से निरपराध जीवों की रक्षा करवाई। चारसो चुम्मालीस नये जिन मंदिरों का निर्माण करवाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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