Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 205
________________ इस प्रकारके विचारों में आदर्श आत्माओं के जीवन का अनुकरण करने की इच्छा आजकल के श्रावकों की हो सकती है। और वे आत्मकल्याण के मार्ग में अग्रसर होने की सफल चेष्टा कर सकते हैं । इस भावना से परमाईत राजर्षि के धार्मिक व्रतों संक्षेप में यहां देने में आते हैं। १ सम्यक्त्व व्रत .. श्री कुमारपाल महाराजा समकित मूल बारह व्रतों को धारण करते थे। सम्यक्त्व यह एक अपूर्व वस्तु है । संसारसागरमें भ्रमण करती हुई आत्माओं की बड़ी कठिनाइपूर्वक बहुत समय के पश्चात् प्राप्त हो सकती हैं। इस प्रकार बिना सम्यक्त्व के कार्य, विना नमक के व्यञ्जनों के समान हैं। १ अठारह दोष से रहित वीतराग श्री जिनेश्वर भगवान् वही सर्वोत्तम देव । . २ पांच महाव्रत धारी संवेग रंगरूपी तरंग में झीलने वाले शुद्ध प्ररूपणा करने वाले वही सर्वोत्तम गुरु है। . ३ तीथङ्कर महाराजा द्वारा कहा हुआ अहिंसा धर्म वही सर्वोत्तम धर्म है। . इन तीनों रत्नों में दृढ़ विश्वास रख करके प्राणान्तक कट होने पर भी चलायमान नहीं होना। अटमी तथा चतुर्दशी को पौषध और उपवास । . पारणा के दिन सकडों मनुष्योंमें से जो दृष्टि में आवे, उनके आवश्यकता पूरती आजीविका बांध देना। . ., Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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