Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 186
________________ १७७ नातालः) इत्यादि पर्व मित्थात्व का हेतु तथा अनर्थकारी है, इसलिये इन सबका त्याग करना। ४९ अपने को दूध-पाक, बासोंदी, लड्डू,-इत्यादि करके खानेके क्या दूसरा दिन नहीं हैं ? कि-उन्हीं मिथ्यात्वीपर्वो के दिन खाना या उत्तेजन देना ? एसे मिथ्या आचरणोंका त्याग कर, अपने सत्य आचरणों को जानने या पालन करने में प्रयत्नशील बनिये । धन्य है उन सुलसा श्राविकाको, कि जिनका सम्यक्त्व अत्यंत दृढ था। इससे वह श्राविका आगामी चौवीसी में, इस भरतक्षेत्रमें पंद्रहवें श्री निर्मम नामक तीर्थकर होवेगी। ५० प्रातःकाल जल्दी उठने की आदत डालो। ५१ सुबह जल्दी उठकर प्रतिक्रमणादिक करो। देवदर्शन, गुरु-वंदन, तथा स्नान-पूजा करो और पश्चात अपने गृह-कार्य में लगो। ५२ घर के मनुष्य-बालक बालिका तथा नौकर चाकर आदिको भी जल्दी उठनेकी टेव-आदत पडावो, और धर्मध्यान में, अपने नित्य नियम में, लागू रहे, ऐसी व्यवस्था करो। ५३ सुबह जल्दी उठकर प्रत्येक काम शांति-पूर्वक बिना किसी खड़बड़ाहट के करना चाहिये। जिससे दूसरे अड़ोसीपड़ोसी अपने द्वारा किसी पाप कार्य में प्रवृत्ति न करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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