Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 189
________________ १८० के अनुसार उस को वापरना। इत्यादि बातों की पूरी काळजी रखना। ६९. रात्रि के समय में प्रत्येक स्थान पर योग्य । उजाला पड़े, उस प्रकार दीवे की व्यवस्था रखनी, विना जरूरत के और ज्यादा टाइम तक दीवे रखना नहीं। ७०. शामको, जल्दी भोजन इत्यादिक से निकटकर, प्रतिक्रमण इत्यादिक के लिये तय्यार हो कर उस में भाग लो। (गुजरात में यह रिवाज खूब व्यापक है). स्त्रोयों, पुरुषो वगैरह सबको प्रायः ६ बजे के लगभग फुरसद मिल जाती है, इसलिये वे धार्मिक क्रिया कर रात्रि में बड़ी शान्ति का अनुभव करते है। [इधर अपने मालव इत्यादि देशमें इस बात की बहुत खामी है। ७१. घर में शान्ति का संचार हो । तथा एक-दूसरे में परस्पर प्रेम की वृद्धी हो इस प्रकार की आदतें डालो। ७२ छोटे दूध पीते बच्चों को उन्हाले में दो पहर को जल-पान कराने में मत भूलो । ७३ जीवों को जीवांत खाना (पांजरा पोल) इत्यादिक में भिजवाने में प्रमाद मत करो। ७४ बर्तन थोड़ी राख-मिट्टी और पानी से बराबर साफ करने की आदत रखो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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