Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 193
________________ इन बारह द्वारों में प्रवाहित होते विविध रसों, धातुओं, पित्तों, श्लेष्मो, वीर्य, ऋतु, मल, पैशाव, गर्भो के मळो और रसों, खून, पीप, मल, धुंक, रिटोडा, . खकाट इत्यादि सरस अथवा निरस (शुष्क ) जो जो बाहर आते हैं, उनमें से प्रत्येक में दो घड़ी (४८ अडतालीस मिनिट) के बाद समूर्छिम (बिना मन बाले) मनुष्य जीव उत्पन्न हो जाते हैं। और वे दो घडी ( अडतालीस मिनिट), वाद ही मृत्यु को प्राप्त होते है। इस हिंसा से बचने के लिये श्रावकों को कैसा वर्ताव रखना चाहिये ? उस के लिये कितनिक सुचनाएं यहाँ दी जाती हैं। १ जो छोटे ग्रामों में रहते हैं, अथवा जिनके नज़दीक में नदी, तालाव, समुद्र तट, वन, क्षेत्र अथवा पडत भूमि होवे, उन्हें जहाँ तक हो सके वहाँ तक उपरोक्त उचित स्थानो पर ही मल त्याग के लिये जाना आवश्यक हैं। क्योंकि बनी हुई टट्टीयों में प्रकाश की कमी, हवाका अभाव तथा दुर्गन्धी रजःकणों इत्यादि से शारीरिक तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी हानि अवश्य उठानी पडती हैं।। धार्मिक नियमानुसार खोज करने पर उस में अनेक प्रकार के जीवों की उत्पत्ति तथा नाश होता है । असंख्याता समूर्छिम पंचेन्द्रिय मानव जीवों की उत्पत्ति तथा नाश होता है। कोई किसी प्रकार के रोगी के मल अथवा पेशाब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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