Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ १८३ सुननेकी कुरूढि बढती जा रही हैं, वो अंतमें उलट मार्गपर ले जा कर धर्म से भ्रष्ट करनेवाली हैं। सुज्ञ बहिनीएँ ! उपरकी सूचनाएँ वांच विचार उस तरहसें वर्तन करनेमें तैयार रहोंगे, तो अवश्य अपने को कमसेकम गेरफायदा (नुकशान) होगा, बल्कि-कुच्छ ने कुच्छ लाभहोगाही। अध्याय ११ वाँ समूर्छिम जीवों की दया मनुष्यों के लिये समर्छिम पञ्चेन्द्रिय जीवों के उत्पन्न होने के निमित्त भूत बारह द्वार २ आँख २ कान १ नाक का मूल छिद्र १ नाभि १ मूत्र द्वार १ मल द्वार स्त्रीओंको ३ अधिक द्वार है...... १ जन्म द्वार २ स्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220