Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 187
________________ १७८ ५४ आवाज करने से छिपकली वगैरह अधर्मी जीव, तथा मच्छीमार इत्यादिक अधर्मी मनुष्य जाग आते हैं । व हिंसा इत्यादिक पाप-प्रवृत्ति में लग जाते हैं । ५५ अपने घरमें जगह जगह जहां जहां जरूरत हो वहाँ वहाँ जीव-जंतू की जयणा के लिये छूट से पूजणीयां रखो । ५६ रसोई इत्यादिक भोजन - कार्य अपने स्व- हातों से ही उतावल या वे परवाई बिना नली भाँति पकाना और स्वादिष्ठ बनाना । ५७ मुनि महाराजाओं को बहोराने के लिये, अपने घर के मनुष्य द्वारा बुलाने के लिये भेजने का रिवाज अपने घर से हमेशा कायम रखो । ५८ अपने घर के बालक-बालिकाए और पुरुष पूजासेवा में प्रमाद न करे, इस बात को उन्हें भोजन करने के पहिले से ही सावचेती दिला दो । ५९ अपने घर की बहू और बेटियाँ भी, दर्शन, गुरुवंदन तथा प्रत्याख्यान ( व्रत पच्चक्खाण ) इत्यादिक में प्रमाद न करे, इस बातकी भी पूरी खबरदारी रखना । ६० तिथिओं के दिन हरा - शाक इत्यादि के बदले अन्य सूखे शाक इत्यादि की योग्य व्यवस्थासें संतोष-दायक प्रबन्ध रखते रहना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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