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५४ आवाज करने से छिपकली वगैरह अधर्मी जीव, तथा मच्छीमार इत्यादिक अधर्मी मनुष्य जाग आते हैं । व हिंसा इत्यादिक पाप-प्रवृत्ति में लग जाते हैं ।
५५ अपने घरमें जगह जगह जहां जहां जरूरत हो वहाँ वहाँ जीव-जंतू की जयणा के लिये छूट से पूजणीयां रखो ।
५६ रसोई इत्यादिक भोजन - कार्य अपने स्व- हातों से ही उतावल या वे परवाई बिना नली भाँति पकाना और स्वादिष्ठ बनाना ।
५७ मुनि महाराजाओं को बहोराने के लिये, अपने घर के मनुष्य द्वारा बुलाने के लिये भेजने का रिवाज अपने घर से हमेशा कायम रखो ।
५८ अपने घर के बालक-बालिकाए और पुरुष पूजासेवा में प्रमाद न करे, इस बात को उन्हें भोजन करने के पहिले से ही सावचेती दिला दो ।
५९ अपने घर की बहू और बेटियाँ भी, दर्शन, गुरुवंदन तथा प्रत्याख्यान ( व्रत पच्चक्खाण ) इत्यादिक में प्रमाद न करे, इस बातकी भी पूरी खबरदारी रखना ।
६० तिथिओं के दिन हरा - शाक इत्यादि के बदले अन्य सूखे शाक इत्यादि की योग्य व्यवस्थासें संतोष-दायक प्रबन्ध रखते रहना ।
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