Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 182
________________ १७३ १७ जो कार्य स्वयं यतनापूर्वक होता है वो नोकर कभी कर सकता नहि । १८ नोकर को तरकारी सुधारने को दी हो तो शाक के साथ दूसरों जीवोंका भी नाश कर डालता है। पानी छाने वो भी ठीकाने बीगरका और उनका संखारा नीचे डाल देवे, या खारे पानीका भी मीठे पानीमें डाल आवे, पानीके जूठे बरतन मटके में डाले। १९ आप नोकर पर विश्वास छोड़के आपके जीमे हुए जूठे बरतन वैसे ही छोड़कर हीडोले खाटपे या सुखशय्यामें आराम करो, पीछे दो दो कलाक तक वो बरतन पडा रहेवे, और उसमें टपोटप मांखी वगैरह जीव पड़ तड़फटाडकर अपना प्राण छोड़ देवे। २० वास्तविक श्रावकों का यही धर्म है की थाली आदि धोके पी जाना चाहीए। कारण की उसमें दो घड़ीमें असंख्य जीव उत्पन्न होते है। २१ प्रमादसे पनियारे के पास, मटके के आसपास लील भी हो जाती है। ऐसे अनेक दोष अपने प्रमादसे होता है। आपसे ऐसा काम होना अशक्य हो तो पासमें खड़े रहकर नोकर के पास यतना से कराना वो भी योग्य हैं । नहि तो पुण्यरूपी मुड़ी व्याज सहित खा जावोंगे। तव दूसरे भवमें कहां से सुख मीलेगा ? अजरामर सुख लेनेका अवसर आया है, तो भी क्युं विषय-कषाय और विकथामें लीन हो जाते हो? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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