Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

Previous | Next

Page 143
________________ છુ पाणी होता है, उनका दांत मलिन होते है । क्यों कि उनका पेटमें मैल है । खाना बराबर पाचन होता नहीं, ऐसा मानना चाहिये । उसका उपचार करनेसे दांत भी अच्छा हो जायगा । - ५४ होटेल - विश्रांतिगृह - आनंदाश्रम - भोजनगृहवगैरह में बनती हुई हरेक चीज शुद्ध ब्राह्मणीआ कहलाती है । ब्राह्मणीया शब्दका उपयोग जाहेरातके तोरपें किया जा रहा है। पहिला तो यह विश्रांति गृहोंकी मुलाकात लेनेवाले ब्रह्मणबनीआसे लगाके, लोहाना, कडीआ, जैसे उत्तरोत्तर ऊंच नीच प्रायः सवं हिंन्दु होते है ! और उनके मालीक कोन जाति के हे? वो तो पूरा तपास करने से मालुम होवे. व्हां चहा, दूध, पूरी, दूधपाक, बासुंदी, शीखंड हरेक चीज ब्राह्मणीया के नामसे हर वख्त मील सकती है । फीर भजीये, कचौरी, आइसक्रीम, कुलफी, आईसवोटर, कंदमूळ वगैरहकी तरकारी याने शाक, तरेह तरेहकी चटनीएं, बहमनीआ होवे, और नानखटाइ, बीस्कीट, १ तमासा देखनेका तो यह है कि - भारतकी आर्य जाति की, और भोजन की व्यवस्थायें तोड डालने के पहिले सेंहि परदेशीओं के प्रयासों में कोन्ग्रेस मारफत प्रचार करवा के आर्योकी छेल्ली मुख्य स्पर्शास्पर्श व्यवस्था की दिवाले भी अन्त्यजोको होटलो में फरजीयात प्रवेश करने का कायदा अमल में लाके सरकारने भी तोड डालनेका आरंभ करने में मदद दी मालूम होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220