Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 171
________________ सुखरूप जो व्रत, उनको प्राणसें ही अधिक प्रिय गीना । अनिमें प्रवेश करना अच्छा, लेकीन लीया हुआ व्रतका कभी खंडन नहि करना । (Sacrifice Money, Even give rather . than Principle) वास्ते, सत्य प्रतिज्ञावंत होना। सुज्ञेषु किं बहुना ? ९ वाँ अध्याय. श्रावकके घरमें नित्य व्यवहार में लाने लायक कतिपय आवश्यक नियम । १. घरमें दस स्थान पर छत (चंदरवा) अवश्य बांधना चाहिये। १ चूल्हे पर, २ पाणियारे पर, ३ रसोई घर में, ४ घट्टी पर, ५ ऊँखल पर, ६ मट्टा (छाछ) करनेके स्थान पर, ७ शय्या पर, ८ स्नान घर में, ९ सामायिकादि धमक्रिया करनेके स्थान पर (पौषध शालामें), १० जिनगृह में । इस प्रकार दस स्थान पर छत बाँधना नितान्त आवश्यक है। जिनमें छः भोजन सम्बन्धी है। भोजनके स्थानमें छत बांधनेका आशय यह है कि हमें भोजन विषयक बहुत ध्यान रखना चाहिये। इससे शारीरिक तंदुरस्ती को बहुत लाभ पहुँचता है और अहिंसाका पालन होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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