Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 179
________________ १७० वर्णन मननपूर्वक खास बांचके या कीसीसे समजकर उस मुआफीक चलनेकी आवश्यकता है । सुज्ञ श्राविका बहिनों ! आपही घररूपी राज्यके सुधारने चाहो तो, तब ही ठीक रहेवे, नहिं तो पुरुषसें होना मुश्केल है । क्युंकी पुरुष दिनभर उनके व्यापार धंधे से लपटे हुए हि रहतें है । जीसे नीचे लीखी हुइ सूचनाएं ध्वानमें रखकर उसी तरह अमल में लाना ध्मानमें रखोंगे तो आप स्व और परका ( दूसरोंका ) कल्याण रूप होंगे । १ सूर्यके किरण जबतक न दीखाइ देवे, तबतक चूलेका आरंभ करना नहि २ सब जगह परसें यतनापूर्वक कचरा साफ करने बाद सब कामका आरंभ करना. ३ सुवहमें सबसे पहिले पुंजनिसे दररोज प्रत्येक वरतन चूले वगैरह ख्याल से पुंजना और वो जीवोको सुखी जगहपर रखना की जहां मनुष्य या जानवर आदिका आना जाना न हो । ४ लकडी, कंडे, कोयला, सगडी आदि रसोईके साधन पुंजने बाद उपयोग में लेना, उनमें भी चातुर्मासकी ऋतुमें दो तीन वख्त खूब संभालपूर्वक पुंजना, कारणकी - चोमासेमं जीवों की उत्पत्ति बहुत होती है । १ कंडे तोडके वापरना. चातुर्मासमें कंडे या नरीयलके छीलके जलाना नहि । कयुंकी उसमें त्रस जीवो उत्पन्न होते है । और उसमें I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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