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१४१ " श्रावकोंने प्रत्येक पहोरमें यानी तीन तीन घंटेके बाद पानी छान कर पीना।" उनमें जीतनी आलस्य उतना हि पाप है । नल होजाने से अब पानी पीने, और वापरने में बहुत अराजकता चल रही है।
_ " यत्र यत्र प्रमाद : तत्र तत्र हिंसा.” प्रमाद छोडने बीगर धर्मका पालन कहां सुलभ है ? धीरजसं उपयोग पूर्वक चलना वो हि धर्म है । उभय लोकका डर रखके, जो सज्जनों "अष्ट प्रवचन माताकों"-हृदयमें रखते चले उन्होका ही कल्याण और पृथ्वी पे आना सार भूत है, एवं बाकी के सब ही इस जमीन को भार भूत ही समजना. धन्य है ! श्री कुमारपाळ महाराजाको की- जिन्हेंने अठार। देशमें "अमारी (अहिंसा) पडह" बजवाया। जीन्हों के वख्त में गाय, भैंस, बैल, घोडे, वगैरह जनावरों को भी पानी छानकर पीलानेमें आता था। और उन्हींको ‘परमाईत' पद्वी कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराजने दीया था। वो कुपारपाळ महाराजा भविष्यकी आनेवाली चौवीसी के प्रथम तीर्थकर श्री पद्मनाभ प्रभुके गणधर होनेवाले हैं। उनका यशवाद आज भी प्रवर्तता है। और आगामि भवमें भी प्रवर्तगा] । वैसे महापुरुषों सदा जयवंतर हो । अरे! अपन लोग कब प्रमाद रूपी चादरको दूर कर पाप रूप मलिन शय्यामें से उठ कर वैसे परमाहत हो के शिववधूकी साथ आनंद लेने को भाग्यशाळी होंगे? जिस्से भवाटवी रूप प्रचंड तापका उपशम हो।
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