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त्रस जीवोंकी घात होती है। और पानीम पैदा होनेसें उनकी चारों तर्फ लील, फुल, शेवाल हो जाती है । वास्ते अवश्य त्याग करना।
वालोर-श्रावकातिचार में भी लीखा है को "वासी वालोळ, पोंक पापडी खाधां" जो वालोर आजकी उतारी हुइ हों, वो रात वासी रहने से उनमें स जीवोंकी उत्पत्ति होती है, इसीलीए दुसरे रोज अभक्ष्य हो जाती है । उसी दिनकी उतरी हुइ हो तो भी उपयोगपूर्वक देख के वापरनी युक्त है। क्यों की उनमें कीडे वगैरह त्रस जीवों रहतें है। यदी उसी दिनकी ताजी वालोरें मीलनी ही मुश्केल है। और इस तरकारी बीगर चले ज नहि, वैसा तो कुच्छ नहि हैं। तो फीर उनका त्याग करना वोही सर्वोत्तम है । तो भी ममता न छुटी जाय तब, पूर्ण संमालके ख्यालपूर्वक और भक्ष्याभक्ष्य का विवेक संमालके काममें लेना । और सर्वथा त्याग हो जाय तो सबस
ठीक है।
६ " दर्शन विरुद्ध और लोग विरुद्धके सबबसें त्याग
करने योग्य वनस्पतिआं.” पंडोरा--लंबे सर्पके आकार जैसा होनेसें और अशुद्ध परिणामके हेतु होनेसे त्याग करना. - फणस--दर्शन विरुद्ध होनेसे (मांस पिंड सरिखा दिखता है) अनाचरणीय है। ...
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