Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 158
________________ १४९ आवे । पीछे त्याग | वैसेही संक्षेप पूर्वक प्रतिज्ञा लेनेसें बहुत लाभका कारण है. और प्रतिज्ञा लेली हो, वहांसे प्रत्येक वर्ष में कुछ - २ वनस्पतिओंकी बीलकुल छोडने की भी प्रतिज्ञा करनी । जैसे की - १९९७ में कुछ २ हरी चीजोंकी प्रतिज्ञा की, उसी वख्त साथ में असी प्रतिज्ञा करना की - " १९९८ से मुजे नोलकोल, मोगरी, पपनस, चीकू, पीचीजका बीलकुल त्याग; १९९९ सेंडाळां, हरीमरीच, मरवा, वगैरहका सर्वथा त्याग;" उसी मुताबीक, अगले वर्षो के लीए स्वशक्ति मुताबीक प्रतिज्ञा कर लेनी, जीसे उसीही वख्त, अमुक वख्त पीछे त्याग करनेकी भावना होनेसें उसीही वख्तसें अभयदान देनेका फळ मील जाता है । इस मुताबीक नीयम करनेसें केइ हरी वनस्पतिओंके जीवोंको अभयदान देनेका फल मीलता है । और जबतक प्रतिज्ञा न की गइ हो तबतक काममें लेना न हो, तो भी कुछ फल मीलता नहि है । और हिंसाका पाप लगता है । फीर भी श्रावकोंने "छ- आट्ठाइओमें " वनस्पति का जरुर त्याग करना, जघन्यसे पांचपर्वी तिथिओमें-शुक्ल १ पर्युषण महापर्व की अठ्ठाइ भादवा वद १२ से लगाके भादरवा सुद ४ तक । इस तरह छ अठ्ठाइ मनाई जाती है। वो दिनो में सचित्तका त्याग. वनस्पतिओं का त्याग, ब्रह्मचर्य का पालन, अमारि का प्रवत्तन, जिनपूजा, गुरुवंदन, व्याख्यान श्रवण, सामायिक, पौषध, अतिथि संविभागादि नियम और प्रतिज्ञा अवश्य अच्छी तरहसें करना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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