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१२२ ४ हरदम त्याग करने योग्य चीजें१ हरेक वनस्पतिका "भडथा" करना नहि, एवं-किया हुआ भडथा खाना भी नहिं.
२ उंधीया-हरएक प्रकारकी वनस्पतिका मटकोमें रखके उपर खुल्ली आग जळवा के कइ वनस्पतिओंका एकही दफा लहजतका अनुभव करनेमें आता है. उसीमें भयंकर आरंभ होता है। और भक्ष्याभक्ष्यका विवेक नहि रहता है। वास्ते उनका त्याग करना उचित है.
३ परदेशी मेंदा याने पसोली-कलकत्ता, अहम्मदाबाद, बम्बई वगैरह जगोंपे आटेकी मीलों चल रही है। उन मीलोंमें मेंदा बनता है, वेपारीयों को फीर अपने लीए जत्थाबंध माल देते हैं. उनको भेजनेसें रस्तामें खूब वख्त होता है। वेपारीओंके वहां भी महिनाओं तक वो ही माल पेक पडा रहता है। फीर पडतर होजानेसें, उनमें बहुतसी इयळ हो जाती है । अब वोमरा हुआ जीवका स्थूल कलेवर रह जाते है । वैसें परदेशी [ मीलका ] मेंदेका भक्षण केसे कर सकें ? दीलगीरी तो यह है, की यह बात मांसाहारीयों के सुनने में या देखने में आवे, तो वे अपनी दिल्लगी कयों न करे? की-"धन्य है ! श्रावक बन्धुओं ! और हिंन्दुओ! यह तुमेरी अहिंसा कीस
१ बात यह है की-मांसाहारीयों को अपनी हांसी करनेका बारतविक अधिकार नहि है. क्योंकी अपना विवेक के बराबर बो लोगमें कीसीतरहसे विवेक आना हि दुर्लभ है.
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