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न खाने से क्या आपका निर्वाह न होगा ? अथवा क्या दुनियां में दूसरी वनस्पति का काल पड़ गया है ? । अभक्ष्य का त्याग करने वाले वंकचूल कुमार की ओर दृष्टि उठाकर देखियेगा। अपने पर मृत्युतक कष्ट आने पर भी उसने अभक्ष्य वस्तु को अंगीकार नहीं किया। वास्ते ऐसे सत्त्वशाली, दृढ़ प्रतिज्ञ, आत्माको करोड़ो बार धन्यवाद है । अहोहो ! कर्म के वशीभूत होकर लेशमात्र भी पापका डर रखे बिना जो प्राणी अदरक, मूला, गाजर, प्याज, लसून आदि अनंतकाय का भक्षण करते हैं, उनकी क्या गति होगी? इस मनुष्यभव के साथ जैन धर्म भी प्राप्त किया है, जिससे संसार का भ्रमण मिट जाय और मुक्ति प्राप्त हो । हे भाइयों ! में आप से नम्रतापूर्वक विनंति करता हूं कि-बावीस अभक्ष्य श्रीर बत्तीस अनंतकाय का त्याग करेंगे, और सच्चे जैन बनेंगे।
बत्तीस अनंतकाय के नाम. १ पृथ्वी के अंदर जितने ६ हा कचूर
भी कंद पैदा होते हैं ७ सतावरी उनकी सब जाति ८ विराली लता विशेष २ गीली हलदी
__ सोफानी-भोंय कोलूं। ३ ,, अदरख
९ कुँवार पाठा और उसकी ४ ,, सूरण
फली ५ वज्रकंद
१० धूवर सब जातिकी
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