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जंइ इच्छह परम-पयं अहवा कित्ति सुवित्थडं भुवणे। ता तेलुकुद्धरणे जिण-वयणे आयरं कुणह । ४०
मूढ और अज्ञानी पुरुष कहते है कि-"खाना, पीना और मौज उडाना, यही सच्चा सुख है, वास्ते भोगसामग्री का उपभोग करलो। और जब मोक्ष मिलना होगा तब मिलेगा।" ऐसे मूर्ख प्राणी के हितार्थ श्री पद्मविजयजी महाराजने तपपदकी पूजा में कहा है कि:
तप करिये समता राखि घटमें ॥ तप० ॥ खाने में पीने में मोक्ष जो माने, वो सिरदार है बहु जटमें ॥३॥
अर्थ:-" खाना पीना ही मोक्ष है " । एसा माननेवाले पुरुष मूोंके सरदार हैं, इससे हे भव्यो ! जैनशासनका रहस्य समझकर " देहे दुक्खं महा फलं" इसके अनुसार वर्तनेसे सानंद मोक्षनगर पहुँच जा सकते है। - इस भाँति तीन प्रकरण में बावीस अभक्ष्यका विचार पूरा करने में आया है।
१ यदि मोक्षकी इच्छा रखते हो, तिन लोकमें फेलनेवाली कीर्तिकी इच्छा रखते हो, तो तीन लोकका उद्धार करनेवाला जिन वचनमें आदर रखो.
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