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सविनय प्रार्थना करके कहना पडता है की अपनाऔर अन्यजीवों के हितार्थ वो चीज आर्द्रा नक्षत्र में अवश्य वर्जन करना। और उनमें कुछभी बातोंका आगार रखना नहि । [ पक्की की साथ कच्चे आमका भी त्याग समझना.]
३ अशाड शुदि (१५) पूर्णीमासें कार्तिक शुदि (१५) पूर्णीमा तक त्याग करना.
१ सुकवनी-सुकवणी याने गीली तरकारी वगैरह को मुखाके रखते है। पर्व तिथिओं ओर सचित्त त्यागी व्रतधारी के लीए वापरने में आती है. जैनोका आहार सीधा या आडकतरी हिंसा विगरका होता है। वो भी स्वकृत-कारित और अनुमोदित न होना चाहिए. लेकीन जिसका त्याग नहिं किया होता है, उतनी हिंसा तो अनिवार्य लगती ही है। वास्ते स्वाभाविक रीतिसें मीलता अचित्त खुराक निर्दोष गीना जाता है । और त्यागी मुनिमहाराजाओंको तोत्याग सबका होता है। मात्र खास जरुर पडनेसें खुराक लेते है। और वो भी स्वकृत-कारित-अनुमोदित और सचित्त न होना चाहिए । स्वाभाविक रीतिसें अचित्त और दूसरें दोष बिगरका लेनेका रहता है. उन्होंको वैसी खुराक लेने जाना, आना, वापरने में और जितना अपवाद मार्गका सेवन कीया हो, उतनी हि क्रिया लगती है। ज्यादा हिंसा व असंयम लगता नहिं ।
जैनोमें मुखुआ का प्रचार-साक्षात् हिंसा करने का त्याग
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