________________
१०२
२६ भूमिफोडा-वर्षाऋतुमें छत्री के आकारकी वनः स्पति उगती है, वो।
२७ बाथले की भाजी।
२८ विरूढाहार—याने वीदल धान्य-गूग, तूवेर, चने आदि रात्री को पानी में भिगोते हैं। और उनमें से अंकुर पेदा हो जाते हैं । बो अनंतकाय होने से अभक्ष्य है। इससे उन्हें प्रातःकाल ५ बजे या ६ बजे भींजवाना, और वो भी थोडी देर पानी में रखना, नहीं तो दो २ या चार ४ घंटे बाद उसमें अंकुर बिलकुल पेदा हो जायगा। शाक बनाने के लिये मूंग, चने आदि को वाफ कर ही बनाना चाहिये। कोई के वहाँ जीमने जाना हो तो वहाँ पर भी ऐसा शाक बना हो, तो तलाश करलेना आवश्यक है।
कोई कोई शोकीन मूंगके अंकूर फूटे बाद ही शाक बनाते है। ऐसा शाकका सर्वथा त्याग करना चाहिये ।। __ २९ पालकेकी नाजी
३० सुअरवल्ली-जो जंगल में बडी बेलडी के सदृश्य होती है, वह ।
३१ कोमल इमली-जहां तक उसमें बीज पैदा नहीं होते है, वहां तक वह अनंतकाय है । कोमल फल में जहाँतक बीज पैदा नहीं होते है, वहांतक वह अनंतकाय है। इसहेतु से कोमळ फल नहीं खाना चाहिये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org