________________
१०३
३१-३२ आलू, रतालू, बटाटा, पिंडालु (डुंगळी) सकरकंद, घोषातकी और करीर-केरड़ा, इन दो वनस्पतियों के अंकुर अनंतकाय है।
तिंदुक वृक्षके कोमल फल, जिसमें गुटली नहीं बधि हो, एसे आम आदि फल, तथा वरुण जातके वृक्ष विशेष, तथा बड़का झाड़ और निवादि जातके वृक्ष के अंकूर ये अनंतकाय होते हैं। ___ इस भाँति अनंतकाय जाति के बत्तीस नाम हैं । और विशेष नाम भी अनेक हैं। उसमें की कोई भी वनस्पति के पांच अंग, कोईकी झड़ (मूल ), कोइके पान, फूल, छाल, काष्ठ अनंतकाय है। इस भाँति कोइका एक अंग, कोईके दो तीन-चार और कोइके पांच अंग अनंतकाय होते हैं।
अनंतकाय पहिचानने का चिह्नःजिन वनस्पति के पान या फल आदि की नसों, संधि, मालूम न हो, ये गूढ-गुप्त हो, जो तोड़नेसे बरावर तूटे, तोडनेसे जिसका चूरा हो जाय, या हरदम बिखर जाय, काटने के बाद फिर उग जाय, पत्ते मोटे दलदार और चिकने हो, जिसमें बहुतसे फल, पत्ते, अत्यन्त कोमल हो, ये सब लक्षण अनंतकाय के हैं।
१ कोबी भी विदेशी मूळा या पिंडालू की जात मालूम होती है, बो भी पत्रात्मक शाक मालूम पडता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org