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के जीवन की आशा रखनी व्यर्थ है । कितनीक पढ़ी लिखी बहिनों में यह संस्कार कोई कोई वख्त देखने में आता है। वह तो प्रायः उनके कौटुम्बिक वारसे का है । सारांश यह है की . आधुनिक पढाइ जहां तक बाल्यावस्था में है वहां तक पूर्व के संस्कार बने रहे हैं। फिर वर्तमानकी पढाइ जिस जिस भांति विशेष मजबूताइपे चले जायगी, उस उस प्रकार पीछे के जीवन के सुन्दर तत्व भी मजबूत रीतिसे अदृश्य होने की संभावना है।]
२ जलेबी-जलेबी का आथा करने की जो रीति है, वह जीवों की उत्पत्ति का कारण है। कोई जगह दिन में आया तयार करके उसी दिन उपयोग में लेते है, और " इसमें दोष लगता नहीं" ऐसा कहते हैं। परन्तु इस विषय पर तपास करने से पत्ता लगता है कि पुराने मेंदे का जावन दिये बिना नया मेंदा फुलता नहीं है। और उपसे बीना जलेबी फूलती नहीं। आथा होता है तो जलेबी फुलती है। मैंदा फुलता नहीं, इस लिये जलेवी अच्छी बनती नहीं है। इस लिये जलेबी अभक्ष्य है। उसमें असंख्य बेइंद्रिय जीव उत्पन्न होते हैं। इससे उसका हमे त्याग करना चाहिये। जैसा सुना जाता है कि-जलेबी उसी की उसी दिन नहीं बनती। बाजार में जलेबी बनती है वह रात का आथा की बनाई जाती है। इस लिये सर्वथा अभक्ष्य है।
३ हलवा-लीला, सूखा, बदाम आदि कइ जातका हलवा अभक्ष्य है । क्यों कि गेहुँ के आटे को दोतीन दिन सड़ा
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