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[दूसरे दूध में तुरतकी जनी हुई गाय अथवा भंस का अभक्ष्य ध शामिल न हो यह भी तपास कर लेना चाहिये।] ___ २२ खट्टे दोकले–चांवल की कणकी के साथ उड़द, चने और तूवर की दाल पीसकर छांछ में घोलकर रातको रख छोड़ते हैं वो अभक्ष्य है। इससे गरम की हुई छाछमें दिनमें घोलकर, बनाकर उसके ढोकले बनाना चाहिये । और सूर्यास्त के पूर्व उसको काममें ले लेना चाहिये । वन्धुओं! एसी चीजों का दूसरे दिन खाना यह श्रावक कुलको योग्य नहीं है । [सिकी हुई, तली हुई, बाफी हुई चीज़ प्रायः कच्ची रहती है। यह आरोग्यता के लिये हानि प्रद है। ढोकले वाफी हुई चीज में गिने जाते हैं। पापड़ सेकी हुई चीज में और पूडी भूजियें आदि तली हुई चीज में ।]
वासी रखी हुई रोटी, नरम पूडी, भजिये । ढोकले और छाछमें न भिगोये हुए चांवल आदि चीजें खाने से अनेक जीवों का नाश होता है। भगवान् की आज्ञाका उल्लंघन होता है। और शरीर में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं । इस हितार्थ प्रत्येक वस्तु ताजी खाना ही उत्तम है। प्रातःकालमें यदि छोटे बालकों के जलपान के लिये कोई चीज रखी जाय तो गेहूँ के पतले खाँकरे बनाकर रखना चाहिये. जिसमें विलकुल नरमाई न हों । परन्तु महान् अफसोस की बात तो यह है कि प्रायः बहुत सी जैन स्त्री शीतलामाता को अपने बालकों की
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