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समान आकाखाली चीजमैं या शाक-तरकारीमें अगर साप बिच्छू आजाय तोतालवा फोड़ डालते है। याने बाल आ जाय तो गलेमें
और निशीथ सूत्रकी चूणि में भी कहा है कि-गरोळी का अवयव रातको भोजन करने में आवे तो जरुर पेट में गरोली जैसे जीव उत्पन्न होते है. और सर्पादि के तंतु-विष गीर गया हो, तो अवश्य मोत की 'निशानी है. चूहे वगैरह की लिंडी से पीसाबकी महा व्याधि होती है.
वैसेही व्यन्तर भी छलते है. .. उपर बताई बात निशीथ सूत्र के भाष्य में लिखी है. रातको तैयार सुकी चीज लड्डु, पेंडा, खजूर, द्राक्षादि खाय, तो उसे रोशनी या चन्द्र प्रकाश होते हुवे भी कुंथु तथा पंचवर्णि (रंगबिरंगी) लील फुगी वगैरह की विराधना होती है. वास्ते अनाचरणीय है. याने वो मूल व्रत का विराधक होता है. : ..
स्कंद पुराण में “रात को पानी को खून समान और अनाज को मांस के ग्रास मुताबिक" कहा है.
रुद्रने कपाल मोचन सूत्र में कहा है कि-" रात को भोजन नहीं करनेवाले को तीर्थ यात्राका फल होता है. और दान, स्नान, श्राद्ध, पूजा आहूति और भोजन यह सभी रात को नहीं करना चाहिये।
आयुर्वेद में-"हृदय और नाभि कमल रात को बन्द हो जाते है। जिसे उस वखत कोई (चार प्रकार से) आहार नहीं करना" ऐसा कहा है.
योगशास्त्र में “ शामको सूर्य दो घड़ी बाकी रहते वख्त ओर सुबह में दो घडी सूर्य उदय हो जाने पहिले रातके माफीक खान पानका त्याग करने से महापुण्य होता है." ऐसा बतलाया है.
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