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रहतें है । मनुष्य जन्म दस दृष्टांत में दुर्लभ बतलाया है ।
और चिंतामणि रत्नसमान जैन धर्म अगर पुन्य का उदय होने से मिलसकता है. वास्ते पाये हुवे मनुष्यजन्म सें आत्मा- . का कल्याण साधने के लिये प्रमाद को दूर कर रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिये। जिसे चौरासी लाख जीवायोनि से मुक्त होकर मोक्ष गति को प्राप्त कर सकें, बेटाबेटीयां पर मोह रखकर रात्रि भोजन कराना ठीक नहीं है. अगर वो रात्रि में आहार मांगे, तो उनको शारीरिक, धार्मिक, नैतिक वगैरा रात्रि भोजन के दोष को समझाकर सुधारना चाहिये। [घरमें रात्रि भोजन करने का रिवाज न हो, तो संतान वगैरह मी नहीं करते.]
जो मनुष्य खुद रातको आहार अथवा दूध, चहा, काफी, कावा, वगैरह लेने की आदत वाले हो, वो उत्तम सामग्री प्राप्त करके भी खुद के मन को दृढ करके सकाम निर्जरा नहीं करते, उनको किंपाकके फल समान दुःख होता है। जैसे कि-नारकी में सीसाका रस पिगला हुवा गरम २ पीना पड़ता है. तिथंचमें भूख तृषा की वेदना व पराधिनता के कारण चाबूक वगैरह सहन करनी पड़ती है । उस वक्त पश्चात्ताप होता है-कि "हा! हा! पिछले जन्ममें बहुत ( अनाचार ) पाप किये, वो अब उदय में आये है," इसलिये "हे महानुभावों ! अब भी जागो, और रात्रि भोजन का त्याग करो. जिससे मोक्षलक्ष्मी जल्दि
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