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कारण से ऐसी अभक्ष्य वस्तुओं का आगार रखते है. परन्तु बंधुओं ! कर्मरूपी रोग का नाश करने के लिये त्रिकाल ज्ञानीओंने इन अभक्ष्यवस्तुओं का सर्वथा त्याग करना बतलाया है । अफसोस है कि-फिर भी इन चीजों का आदर करके कर्म रूपी रोगों को बढ़ाकर भवभ्रमण करने की इच्छा करते है. याने आत्मा का रोग का निवारण नहि करते ही खास तौर पर उनको पुष्टि दिलातें है. हे महानुभावों ! ज्ञानचक्षु से देखो. अब इतने से ही ठहरना, जिसे अपना कर्मरूपी रोग को नाबुद करके अमर पदवी शीघ्र ही लेवे।
१९ अपरिचित फल-जिस के नाम का किन्हीकुं मालूम न हो, और किसीने उनको खाया भी न हों, जैसे फल-फूल अभक्ष्य हैं।
१ पुराणादि अन्यशास्त्रो में भी बेंगन खाने का निषेध किया है. " यस्तु वृन्ताक-कालिङ्ग-मूलकानां च भक्षकः । ____ अन्त-काले स मूढात्मा न स्मरिष्यति मां पिये!".
अर्थ:-"बेंगन, कालिंगडा और मूला खाने वाले मूढात्मा को मरते वक्त भी में याद नहीं आता."
__ और यह भी बतलाया है कि बेंगन की तरकारी का भाफ लगने से ही, आकाश में चलता हुवा विमान अटक जाता है ।।
पण्डितजन मनुष्यो को चाहिये की-शास्त्र को मान देते हुवे स्पष्ट रूप से निषिद्ध की हुई चीजों का खुद त्याग करके श्रोताजनोको अपना दृष्टान्तसें समझाकर त्याग करवाना चाहिये
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