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रातको सोना, ऐसे नियम से चलने वाले मनुष्यों का आयुष्य पूर्ण ९९ वर्ष का होता है,
रातको भोजन छोडने से धर्म के साथ शरीर भी बहुत तंदुरस्त रहता है. व इस लोक में वह जीव मुखी
है। पित्त के जोर से दिनमें खाया हुवा भोजन जल्दि पच जाता है। जैसे कि सूर्य की गर्मी से पित्त का जोर भूख को बढ़ाता है, व "बादलों" से जठराग्नि कमजोर करता है । और हमेशां कफ के जोर से निद्रा भी बहुत आती है ।
जठराग्नि भी कमजोर हो जाती है. जैसे कि सूर्य का प्रकाश नहीं होनेसे वातावरण में भी मंदता आती है। दिन में निद्रा लेने से कफ का जोर बढ़ता है व शरीर कमजोर होता है, इन तमाम बातों को देखते हुवे रात्रिभोजन का हंमेश के लिये त्याग करना चाहिये. यह तन्दुरस्ती के लिये भी फायदेमंद है । इस लिये समय पर दो वक्त भोजन करना ठीक माना गया है। जैन फिलोसोफी पच्चक्खाण में (हट्ठ) (दो उपवास के आगे पिछे दो एकासणा ( और दरमियान में दो उपवास ) याने छ वक्त भोजन करने का त्याग । अट्ठम तीन उपवास के आगे पीछे दो एका`सणा (व दरमियान तीन उपवास) जैसे ३+२=६+१+१=८ ऐसे आठ वक्त भोजन का त्याग याने पांच दिन में दो वक्त ही भोजन किया 'वास्ते अठ्ठम - आठ वक्त का त्याग = पच्चक्रखाण समझना मतलब यह है कि मनुष्य को दो वक्त ही भोजन करना सामान्य रीतिए शिष्ट पुरुषोंको सम्मत माना जाता है.
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