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शैशव न होने से और खेड़े में रहने से उस बाल-विवाह के युग में भी उनकी जल्दी शादी न हुई। शादी के समय वे काफी जवान हो गये थे। उनकी शादी पंचमनगर में हुई थी। पंचमनगर कागज के लिये इतिहास में प्रसिद्ध है । भाग्य की बात है कि पिताजी तो निरक्षर थे पर माताजी उस ज़माने के अनुसार काफ़ी पढ़ी लिखी थीं । विवाह के पहिले उनने सिर्फ प्रायमरी ही पास न करली थी किन्तु कन्याशाळा में मॉनीटरी के कुछ रुपये भी जोड़े थे जो विवाह के काम आये थे । पिताजी कुछ साँवले और साधारण कद के थे । माताजी काफी गौरवर्ण और कुछ लम्बे कद की थीं। उनके विवाह के कुछ दिनों बाद मेरी आजी (पितामही) का भी देहान्त हो गया । कुटुम्ब में झगड़े भी खूब होने लगे, गरीबी थी ही, इससे ऊबकर पिताजी शाहपुर [ सागर, सी. पी. ] में आ गये । यही कार्तिक शुक्ला ७ वि. सं. १९५६ को मेरा जन्म हुआ । मेरा पहिले एक भाई और हुआ था जो मर चुका
था । मेरे बाद एक बहिन हुई । जिसका नाम था कला या .कलावती । उसके बाद माँ बीमार हुई, लम्बी बीमारी खाई । अन्त में वच न सकी । मरते समय छ: महीने का एक बच्चा हुआ जो कुछ मिनिटों में मर गया । इस समय मेरी अवस्था करीव चार वर्ष की थी।
___शाहपुर में भी पिताजी की आर्थिक स्थिति सुधर न पाई । . ग़रीबी में ही दिन कटे । सुख दुःख में पिताजी को बड़ा भारी
सहारा अपनी बड़ी वहिन का था जो दमोह में विवाही गई थीं। उनका बड़ा भारी कुटुम्ब था । वह कुटुम्ब शहर के गणनीय श्रीमंतों