Book Title: Aatmkatha
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 11
________________ आत्म-कथा प्रास्ताविक 'एक छोटे से जीवन की आत्मकथा क्या? इस संकोच में बहुत दिन रहने पर भी अब कुछ निर्लज्जता के साथ आत्मकथा लिखने जो बैठ गया हूं इसके दो कारण हैं । एक तो यह कि पिछले दिनों में जीवन--परिचय की माँग बहुत आई और पत्र. व्यवहार से जो संक्षिप्त परिचय दिया गया वह सन्तोपप्रद न हो सका । दूसरा कारण यह है कि यह जीवन-कथा आदरणीय न होने पर भी कुछ देने लायक मालूम होती है । इसका कारण यह नहीं है कि आत्मकथा का नायक महान है किन्तु यह है कि वह नायक मूल में अत्यन्त क्षुद्र था । उसके पीछे वंश-परम्परा का बौद्धिक, आर्थिक आदि कोई महत्त्व नहीं है । विशाल कुटुम्बका :: . भी गौरव नहीं है। इसका प्रारम्भ एक अशिक्षित, निर्बल, निर्धन, कीर्तिहीन कुटुम्ब से, होता है । वह भी किसी नगर से नहीं किन्तु एक छोटे से खेड़े से ।.

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