Book Title: Siddhachal Vando Re Nar Nari
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Mahendrasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदाचा रा०० Mad मुनि महेन्द्रसागर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आशीर्वचन सभी भारतीय धर्म-दर्शनों ने परमात्म भक्ति को परम तत्त्व में विलीन होने का राजमार्ग बताया है। जीव से शिव बनने की प्रक्रिया में भक्तियोग महत्वपूर्ण और पुष्ट आलंबन है। चिन्तन-मनन में सदा उत्साही युवा मुनिप्रवर श्री महेन्द्रसागरजीने पूर्वाचार्यों द्वारा रचित भाववाही चैत्यवंदन - स्तवनस्तुति और गीतों को इस लघु पुस्तिका में संकलित कर भक्तियोग का मार्ग सरल किया है। आराधक जनों को भक्तिसाधना में यह निमित्त बनेगी ऐसी शुभकामना करता हूँ और इस सुन्दर प्रयत्न के लिए मुनिश्री को अन्तःकरण से आशीर्वाद देता हूँ । पद्मसागर सूटि For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धाचल वंदो रे नरनारी... * आशीर्वाद प्रदाता प. पू. राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. प. पू. शांतमना आचार्यदेव श्री वर्धमानसागरसूरीश्वरजी म. * संकलन * प. पू. पंन्यास प्रवर श्री विनयसागरजी म. के शिष्य मुनि श्री महेन्द्रसागर प्रकाशक * For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृति : सिद्धाचल वंदो रे - नरनारी... संकलन एवं संयोजन : मुनि श्री महेन्द्रसागर प्रथम संस्करण - प्रतियाँ - १००० वि.सं.२०६२, ई.स.-२००६ मूल्य - २७ रू. * प्राप्ति स्थल * अनिलभाई जे. शाह N5, झवेरी पार्क जैन फ्लेट्स Opp. स्थानकवासी वाड़ी नारणपुरा रेल्वे क्रोसिंग अहमदाबाद - ३८० ०१३ फोन नं. - २७७७८६३९ *मुद्रक नवनीत प्रिन्टर्स २७३३, कुवावाली पोल, शाहपुर अहमदाबाद - ३८० ००१ फोन नं. - ९८२७२ ६११७७ For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्ताविकम् # इणगिरि साधु अनंता सिध्या, कहेतां पार न आवे" प. पू. महान शासन प्रभावक आचार्य भगवंतश्री धनेश्वरसूरीश्वरजी महाराज साहबने शत्रुंजय महात्म्य ग्रंथ में लिखा है कि प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ प्रभुने श्री पुंडरीक गणधर को कहा था- शत्रुंजयगिरि यानी मोक्ष का निवास हैं। इस गिरि पर आरोहण करनेवाले प्राणी अति दुर्लभ लोकाग्र-मोक्ष को शीघ्र प्राप्त करते हैं। इसलिए यह गिरिराज शाश्वत तिर्थेश्वर है। इस अनादि तीर्थ पर अनंत तीर्थंकर अनंत साधु अपने कर्मों को खपाकर सिद्ध बने हैं। इस तीर्थ की महिमा बताते हुए लिखा है कि अन्य तीर्थों में उग्र तपश्चर्या एवं ब्रह्मचर्य पालन से जो फल प्राप्त होता है वह फल श्री शत्रुंजयगिरि पर बसने मात्र से प्राप्त होता हैं। अन्य स्थान में एक क्रोड मनुष्यों को इच्छित आहार का भोजन कराने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उतना पुण्य श्री शत्रुंजयतीर्थ में एक उपवास करने से प्राप्त होता हैं। - शुद्ध भाव से इस तीर्थ का गुण गाने से भी कितना फल मिलता है, तो कहते हैं जब तीर्थंकर मोक्ष में चले जायेंगे और विशिष्ट ज्ञान भी चला जायेगा। उस समय में भी भव्य जीव गिरिराज के गुणों की मात्र स्तवना करके तथा शत्रुंजय महात्म्य का श्रवण करके संसार समुद्र को तैर जायेंगे । भक्ति भगवान तक पहुंचने की सीडी हैं। भक्ति में व्यक्ति खुद ३ For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को खो देता है तो भगवान तक पहुंच जाता है। पूर्वाचार्यों के स्तवनों में आज भी ऐसा चमत्कार है कि व्यक्ति स्तवन गाते गाते खुद भी खो जाता है। सब से सरलमार्ग है भक्ति। इस मार्ग में आराधक सहजता से जुड़ जाय और भगवान तक पहुंच जाय उस भावना से मुनिश्री महेन्द्रसागरजी म. एवं पूर्ण सहयोगी मुनिश्री राजपद्मसागरजी म. तथा मुनिश्री कल्याणपद्मसागरजी म. ने प्राचीन अर्वाचीन स्तवन-स्तुति-गीतों का चुन चुन कर संकलन किया है। सभी को उपयोगी बने ऐसी शुभ भावना से पुस्तक रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। पुस्तक प्रकाशन में कोबा स्थित श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के विद्वान पंडितवर्य श्री मनोजभाई एवं कम्प्यूटर विभाग में कार्यरत - श्री केतनभाई एवं संजय गुर्जर आदि का उत्साहजन्य सहयोग प्राप्त हुआ हैं। उनको भी मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। पुस्तक प्रकाशन में जिन्होंने अपनी लक्ष्मी को पुण्य लक्ष्मी बनाने के लिए उदारता से लाभ लिया है उनको भी दिल से आशीर्वाद है। प्राचीन अर्वाचीन स्तवनों • गीतों में कही कोई त्रुटि/स्खलना रह गई हो तो मिच्छामि दुक्कडम्। पाठक गण सुधारकर उपयोग करेंगे। श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ज्ञानतीर्थ कोबा गांधीनगर (गुजरात) पं. विनयसागर गणि दि. ७-६-२००६ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दि. २/६/२००६ ज्ञानतीर्थ, कोबा दो शब्द... श्री तीर्थपान्थरजसा विरजीभवन्ति तीर्थेषु बम्भ्रमणतो न भवे भ्रमन्ति। द्रव्यव्ययादिह नराः स्थिरसंपदः स्युः । पूज्या भवन्ति जगदीशमथार्चयन्तः।। (उप.तरंगिणी.) पर्वतों में कैलास पर्वत, समुद्रों में लवण समुद्र, मन्त्रों में नवकार मंत्र, शास्त्रों में कल्पसूत्र मुकुटशिरोमणि है त्यों तीर्थों में तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय तीर्थशिरोमणि है। यद्यपि जैन शासन में सम्मेतशिखर, गिरनार, अष्टापद, आबू और शत्रुजय सभी महान माने जाते हैं, परंतु सर्व काल में इन सभी में मुख्य, शाश्वत और परम पुनित एक शत्रुजय महातीर्थ ही है। इस तीर्थ का महिमागान महाविदेह क्षेत्र में विहरमान श्री सिमन्धर स्वामी अपनी देशना में करते हैं। जिसने इस तीर्थ की यात्रा नहीं की वह अभी जन्मा ही नहीं (गर्भावास में है)। इस तीर्थ की एक बार या अनेक बार यात्रा करने से जनमो-जनम के कर्म निर्जरित होते हैं व भव्यत्व की पहचान तय होती है। सचमुच यह गिरिराज पावन-मनभावन और सुन्दर-सलौना है। यहाँ सत्तर वर्ष के वृद्ध हॉफते हुए और सात वर्ष के बालक खेलते खेलते यात्रा करके दादा को For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भेटते हैं और खुद को धनभागी समजते हैं। हिल स्टेशनों पर भटकते फिरने से आत्मा अशुभ कर्मों को उपार्जित करती है, पाप से भारी बनती है और अन्त में संसार समुद्र में डूब जाती है, किन्तु तीर्थ स्थलों की यात्रा करने से, उस भूमि की स्पर्शना करने से आत्मा पाप के बोज से हल्की बनती है, उसकी भव भ्रमणा मिट जाती हैं। अनंतानंत केवलज्ञानी, ऋषि, मुनि, देवेन्द्र और मनुष्य एक साथ एकत्रित होकर प्रयास करे तो ही शायद इस तीर्थ का वर्णन हो सकता है। महापुरुषों द्वारा श्लाघनीय, वंदनीय एवं पूजनीय, इस तीर्थ की महिमा शब्दों में कहना मुझ अज्ञानी के लिए बिन्दु में सिन्धु समाने जैसा है। यह लघु पुस्तिका यात्रिकों की संगी /साथी बनकर प्रभु भक्ति में उनकी आवश्यकता की पूर्ति करेगी। इसमें भाववाही/ प्राचीन / सुमधुर स्तुतियाँ, चैत्यवंदन, स्तवन एवं आर्वाचीन भक्तिगीत संकलित है, जो प्रभु एवं गिरिराज की भक्ति के लिए पुष्ट आलंबन / सहारा बन जायेंगे। मैं कामना करता हूँ कि इन भावपूर्ण स्तुतियों स्तवनों और गीतों से आपके हृदय के तार झंकृत हों, आप शुभ भावों में लीन बनें और कर्म खपाने में यह पुस्तिका निमित्त बने । अन्त में जैसे सरिता सागर में समा जाती है वैसे हमारी आत्मा भी भक्ति योग द्वारा में समा जाये यही शुभाभिलाषा । प्रभु For Private and Personal Use Only महेन्द्रसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहाँ क्या मिलेगा ? श्री सिद्धगिरिराज की स्तुतियाँ श्री सिद्धाचल नयणे जोतां श्री शत्रुंजय तीर्थपति श्री आदिजिन स्तुतियाँ पहला तलेटी चैत्यवंदन सूत्र सहित प्रातःकालीन पच्चक्खाण सायंकालीन पच्चक्खाण देसावगासिक भावपूजा की पूर्णाहुति करते... १७ दूसरे शांतिनाथ प्रभु की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय.... १८ तीसरे रायण पादुका की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय .. १९ चौथे पुंडरिक स्वामी की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय..२२ पांचवें आदिनाथ प्रभु की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन थोय २४ घेटी पगला की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय .२५ चैत्यवंदन विभाग (१) सिद्धाचल शिखरे चढी (गाथा ६) (२) श्री शत्रुंजय सिद्धक्षेत्र (गाथा ३) (३) श्री शत्रुंजय महात्म्यनी (गाथा ३) (४) प्रेमे प्रणमो प्रथम देव (गाथा ३) (५) शत्रुंजय शिखरे चढिया (गाथा ३) (६) ए तीरथनी उपरे (गाथा ३) (७) सिद्धाचल गिरि वंदीए, (गाथा ३) (८) प्रथम नमुं श्री आदिनाथ (गाथा ३) (९) विमल- केवल-ज्ञान कमला (गाथा ८) For Private and Personal Use Only २ ४ ६ १३ .१६ १७ ....... .२७ .२७ .२८ .२८ .२८ .२९ .२९ .२९ .३० Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) श्री शत्रुंजय सिद्धक्षेत्र ( गाथा ३) (१०) सोना-रूपानां फूलडे (गाथा ८) (११) नमो आदिदेवं (गाथा ५) (१२) आदि जिनेश्वररायना (गाथा ३). (१३) आदिनाथ अरिहंत जिन (गाथा ३) थोय विभाग (१) द्रव्यभावथी सिद्धाचलगिरि ( गाथा १ ) (२) सिद्धगिरि मंडन रिसह जिणंद (गाथा १ ) (३) प्रणमो भविया रिसहजिनेसर ( गाथा १) (४) सीमंधरने पूछे इंदा (गाथा १) (५) श्री विमलाचल गिरिवर कहीए ( गाथा १) (६) श्री शत्रुंजय मंडन ( गाथा १) (७) सवि मलि करी आवो (गाथा १) (८) वंदु सदा श्री गिरिराज आजे (गाथा १) (९) श्री शत्रुंजय मंडन ( गाथा ४ ) *****. (१०) श्री शत्रुंजय तीरथ सार (गाथा ४ ) (११) सवि मली करी आवो (गाथा ४) (१२) श्री शत्रुंजय मंडण आदिदेव ( गाथा ४) (१३) वंदु सदा शत्रुंजय तीर्थराजे (गाथा ४) (१४) श्री शत्रुंजयगिरि सोहे (गाथा ४ ) (१५) श्री शत्रुंजय आदिजिन आव्या ( गाथा ४ ) (१६) प्रणमो भवियां रिसहजिनेसर ( गाथा ४ ) (१७) ॠषभजिन सुहाया ( गाथा ४ ) **** (१८) प्रह उठी वंदु (गाथा ४) (१९) जीहां ओगण्योतेर कोडा कोडी (गाथा ४) ८ For Private and Personal Use Only .३० .३१ ३१ .३२ .३३ .३४ .३४ .३४ .३४ .३५ .३५ .३५ .३५ .३६ .३६ .३८ .३९ .३९ ..४० ..४० .........४१ .४२ .४२ .४३ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) भावानया- नेग नरिंद - विंदं ( गाथा ४ ) (२१) भक्तामर - प्रणत- मौलिमणि-प्रभाणा ( गाथा ४) स्तवन विभाग १. आंखडीए में आज शत्रुंजय दीठो रे (गाथा ७) २. सौ चालो सिद्धगिरि जईए ( गाथा १५) ३. विमलगिरिने भेटता (गाथा ६) ४. मारुं मन मोह्युं रे (गाथा ५) ५. वंदना वंदना वंदना रे ( गाथा ५) ६. तुमे तो भले बिराजोजी... (गाथा ९) ७. ते दिन क्यारे आवशे... (गाथा ८) ८. आवी रूडी भगति में ... ( गाथा ६) ९. श्री आदीश्वर अंतरजामी (गाथा ६) १०. शोभी शी कहुं रे (गाथा ५) 4004 १७. तीरथनी आशातना नवि करीए... (गाथा ८) १८. सिद्धाचल शिखरे दीवो रे... (गाथा ८) १९. विमलाचल नितु वंदीए ... ( गाथा ५) २०. बापलडां रे पातिकडा... (गाथा ८) २१. शेत्रुंजा गढ़ना वासी रे... ( गाथा ५) २२. सिद्धाचलनो वासी प्यारो... ( गाथा ६). ९ .४४ .४५ For Private and Personal Use Only .४६ .४७ .४८ .४९ .५५ .५५ ११. प्यारो लागे सारो लागे... (गाथा ८) १२. आज मारा नयणा सफल थया... (गाथा ६) १३. श्री आदिश्वर साहिबा हुं केम... (गाथा ७) १४. सिद्धगिरि ध्यावो भविका ! ( गाथा ८) .५६ .५७ ..५८ १५. सिद्धगिरि मंडन पाय नमीजे (गाथा ७) १६. प्रीतलडी बंधाणी रे विमलगिरीन्द शुं... ( गाथा ८ ) .... ५८ .६० .६१ .६२ .६२ .६३ .६४ .५० .५० .५१ .५२ .५३ .५४ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .............. २३. मनना मनोरथ सवि फल्या ए... (गाथा ८)...........६४ २४. सिद्धाचलना वासी (गाथा ५) .........................६५ २५. तुं त्रिभुवन सुखकार... (गाथा ६) ....................६६ २६. विमलाचल विमला पाणी... (गाथा ७)................६७ २७. विमलाचल गिरि भेटो... (गाथा ७)...................६८ २८. गिरिवर दरशन विरला पावे... (गाथा १३)........... २९. चालो सोरठ देश (गाथा ७) ..........................७० ३०. दादा आदीश्वरजी (गाथा ७) ............. ३१. प्रथम जिनेश्वर प्रणमिए (गाथा ७) ....................७२ ३२. जग जीवन जग वालहो (गाथा ५) ...................७३ ३३. में भेट्या नामिकुमार (गाथा ८)........... ......... ३४. मोरा आतमराम (गाथा ७)..... ............ ३५. गिरिवरियानी टोचे रे (गाथा ८) ..................... ३६. ऋषभ जिणंदने वंदीए रे (गाथा ७).... ३७. भवजल पार उतार (गाथा ६) ........ ३८. प्रभु ऋषभस्वामी (गाथा ६) ............ ......... ३९. भवि आवोने (गाथा ५)................. ४०. भरतनी पाटे भूपति रे (गाथा ८) .................. ४१. हुं तो पायो प्रभुना पाय रे... (गाथा ६)............ ४२. जिणंदा प्यारा... (गाथा ५)...........................८० ४३. रूडा आदीश्वर विना... (गाथा ९).................. ४४. आनंदकी घडी आई... (गाथा ५) .................. ४५. जब जिनराज कृपा करे... (गाथा ५) ................८३ ४६. ऋषभ जिनराज मुज आज दिन... (गाथा ९)........८३ ४७. विमलाचल जई वसीये... (गाथा ५)................ ......... १० For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८. ऋषभदेव हितकारी (गाथा ६) ४९. ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा (गाथा ५) ५०. तुम दरिशन भले पायो... (गाथा ५) ५१. जगचिंतामणि जगगुरू... ( गाथा ५) ५२. मन मोहन तुं साहिबो ... ( गाथा ५) ५३. मैं सिद्धाचलकी भक्ति... (गाथा ६) ५४. आदि जिणंदा माता ( गाथा ५) ५५. मनवसी मनवसी मनवसी... (गाथा ५) ५६. आदिजिनं वन्दे गुणसदनं (गाथा ६) ५७. ऋषभजिनेश्वर ! वंदना (गाथा ७) ५८. सिद्धाचल गिरिराज वंदो (गाथा ५) ५९. श्री सिद्धाचल नयणे निरखी (गाथा १० ) ६०. डुंगरे डुंगरे ताहरा देहरा ( गाथा ९) ६१. मनना मनोरथ सवी फल्या (गाथा ६) ६२. सिद्धाचल यात्रा करो ( गाथा ८) ६३. श्री सिद्धाचल शत्रुंजय (गाथा ५) ६४. भाव भगति भविजन धरी ( गाथा ९) ६५. ऐसी दशा हो भगवन ( गाथा ५) ६६. सांभली जिनवर मुखथी (गाथा ८) ६७. आवी रूडी भगति में (गाथा ६) ६८. सिद्धाचल गुण गेह (गाथा ५) ६९. मारा प्राणना आधार (गाथा ५) श्री अजितनाथ भगवान के चैत्यवंदन, स्तवन, थोय श्री पार्श्वनाथ भगवान के चैत्यवंदन, स्तवन, थोय....... ११ For Private and Personal Use Only ..८६ ..८६ .८७ .८७ .८८ ..८८ .८९ . ९० .९१ .९२ .९३ .९४ .९५ .९६ .९६ .९७ ९८ .९९ १०० १०० १०१ १०२ १०२ १०४ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . . . . . . . . . . . . . . . ११० भक्तिगीत विभाग १. एक बार मुखडो... (गाथा ५)... २. नाम है तेरा तारणहार... (गाथा ३) ................ ३. दादा रे...तारा दर्शन (गाथा ३) ........... ४. प्रभु ए विनंती हवे तो स्वीकारो (गाथा ६)........... ५. अमी भरेली नजरूं राखो... (गाथा ५) ............. ६. मूरति जोउं जोउं ने गमी (गाथा ३) ................ १०८ ७. मारी आंखोमां आदिनाथ (गाथा ५) ................. ८. कृपा करो, कृपा करो (गाथा ६) ........... .......... ९. वरसे भले वादलीने वायु भले... (गाथा ५) .......... १०. शब्दमां समाय नहि.... (गाथा ६) .. ......... ११. पाप मारा त्यां बधा धोवाय छे (गाथा ५) ........... १२. सेवा हो, मुक्ति मेवा (गाथा ४) ..................... १३, नित्य गमे, नित्य गमे (गाथा ५) .................... १४, पहोंचाय ना सिद्धशीलाना (गाथा ८) ............... ११३ १५. अलबेला आदीनाथ डुंगरे बीराजे (गाथा ७) ........ १६. भवोभव मलजो सिद्धाचल धाम (गाथा ४) .......... १७. सिद्धाचलनो महिमा कोने (गाथा ७) .............. १८. आq रूडु रे मजानुं तीरथ नहीं रे (गाथा ६)....... १९. आ दुनियामा तरवा माटे सिद्धाचल (गाथा ३)..... २०. रंगाइ जाने रंगमा... (गाथा ४) ..................... २१. परमपुरूषनो पंथ मल्यो छे... (गाथा ४)............ २२. तमे वहेला सिद्धाचल आवजो रे (गाथा ५) ......... ११९ १२ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३. धन्यावतारा... (गाथा ४) ........................... ११९ २४. चालो सिद्धाचल जइए रे (गाथा ५) ............... २५. सिद्धाचलना वासी, (गाथा ५) ..................... २६. समरो नित उठीने सवार... (गाथा ५) ............. १२१ २७. आविया, आविया, आविया रे (गाथा ४) ............ १२२ २८. सिद्धाचलमां आवीने कोइ (गाथा ३) .............. २९. हे सिद्धाचलना स्वामी (गाथा ७) ................. ३०. अलबेला...अलबेला...अलबेला... (गाथा ४) ....... १२४ ३१. विमलाचल गिरिना शरणे जा (गाथा ५)............ ३२. सिद्धाचल का नाथ प्यारा (गाथा ५). ..............१२५ ३३. हे मरूदेवीना जाया (गाथा ३) ...................... ३४. साहिबो, सोरठमां सोहामणो रे... (गाथा ४) ....... ३५. तमे आदिनाथ आदिनाथ (गाथा ५)................. ३६. सिद्धगिरि भेटवा जइए... (गाथा ६)................ ३७. आशिष आपो (गाथा ५) ............ ३८. तमे एकवार पालीताणा आवजो रे... (गाथा ६).... १२९ ३९. मारे रे सिद्धाचल (गाथा ३) ............. ४०. नवरातुं रूडा गिरिराज (गाथा ५)................... ४१. हे विमलाचलना वासी (गाथा ५) ............. ४२. सोना-रूपा फूलडे... (गाथा ५) .................... ४३. मंगलकारी पावनधाम (गाथा ४) . ४४. भक्ति भयुं हैयुं ने... (गाथा ६). ४५. यह है पावन भूमि (गाथा ५) ......... १३ ........... ........... ........... For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org · ४६. जब कोई नही आता... ( गाथा ४ ) ४७. मारो हेलो सांभलो (गाथा ५) ४८. सिद्धाचल का नाथ है हमारा... ( गाथा ५) ४९. आशरा इस जहां का... ( गाथा ४) ५०. आंख मारी उघडे त्यां (गाथा ४) ५१. इतनी शक्ति हमें देना ... ( गाथा ३) ५२. आव्यो दादाने दरबार (गाथा ६) ५३. धून सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय (गाथा ६) ५४. गिरिवर प्यारोने मोतीडे वधावो (गाथा ५) ५५. आज मारा शत्रुंजयमां (गाथा ३) नौ खमासमणों के दोहे (गाथा ९) श्री सिद्धाचलजी के इक्कीस Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *****... खमासमणों के दोहे (गाथा २१) दादा की प्रदक्षिणा के १०८ दोहे (गाथा १०८) श्री भक्तामर स्तोत्रम् (गाथा ४४) चातुर्मासिक नित्य आराधन नव्वाणुं यात्रा विधि यात्रा के पर्व दिन श्री शत्रुंजय महातीर्थ के हुए उद्धार. गिरिराज की गरिमा .... १४ सिद्धगिरि पर मोक्ष गये हुओं की सूची भगवान श्री ऋषभदेव की विविध जानकारी ****.......... १३४ १३५ १३५ १३६ १३७ ...... १३८ १३८ १३९ १४० १४० १४१ For Private and Personal Use Only ******** .... .........● *****--- . १४२ १४५ १५५ १६२ १६४ १६५ १६७ १६८ १७१ . १७२ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सिद्धगिरिराज की स्तुतियाँ ख्यातोष्टापद-पर्वतो गजपदः सम्मेत-शैलाभिधः; श्रीमान् रैवतकः प्रसिद्ध-महिमा शत्रुञ्जयो मण्डपः. वैभारः कनका-चलोर्बुद-गिरि श्रीचित्रकूटादयस्तत्र श्रीऋषभादयो जिनवराः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्. .१ पूर्णानंदमयं महोदयमयं कैवल्यचिद्रुपमयं, रूपातीतमयं स्वरूपरमणं स्वाभाविकी श्रीमयं, ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं स्याद्वाद विद्यालयं, श्री सिद्धाचल-तीर्थराज-मनीशं-वंदेऽहमादीश्वरम् . तीर्थो जगतमा कैंक छे तीर्थोतणो तोटो नथी, शाश्वतगिरि श्री सिद्धगिरि छे क्यांय तस जोटो नथी; क्रोडो मुनि मोक्षे गया लई शरण आ गिरिराजर्नु, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदादार आदि जिणंद है. १ श्री सिद्धगिरि शाश्वतगिरि वली, पुंडरिक गिरि नाम छे, पुष्पदंतगिरिने विमलगिरिवर, सुरगिरि जस नाम छे; गिरिराज श@जय सहित जस एक शत अड नाम छे, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. २ सौराष्ट्रमां गिरिराज छे, गिरिराज पर जिनराज छे, पापी अधम छु तो य मुजने तरी जवानी आश छे; में सांभल्युं छे तीर्थ आ भवजलधिमांहि जहाज छे, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. ३ त्रण भुवनना शणगार एवा, विमलगिरिवर उपरे, For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रण जगतना तारक बिराजे, आदि जिनवर मंदिरे; अद्भुत ज्योति झलहले जे जोई देवो पण ठरे, धरुं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. ४ श्री विमलगिरितीर्थेश, आदिनाथनुं धरे ध्यान जे, षट् महिना लागलगाट पामे दिव्य तेज प्रकाश ते; चक्केश्वरी तस इष्ट पूरे, कष्ट नष्ट करे सदा, धरुं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. ५ भक्तो तणी भीडमां प्रभु मुजने तुं भूली ना जतो, दूरदूरथी तुजने नीरखवा, आश लई हुं आवतो; क्षणवार पण तुज मुखतणां दर्शन थतां हुं नाचतो, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. ६ हे नाथ! तारुं मुखडु जोवा, नयन मारां उल्लसे, हे नाथ! तारां वयण सुणवा श्रवण मारा उल्लसे; हे नाथ! तुजने भेटी पडवा अंग अंग समुल्लसे, धरूं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद हे. ७ कलिकालमां अद्भुत जोई दिव्य तुज प्रभावने, . भगवान मांगु एटलुं भवोभव मलो भक्ति मने; तुज भक्तिथी 'मुक्तिकिरण' नी ज्योत जागो अंतरे, धरुं ध्यान गिरिशणगार जगदाधार आदि जिणंद है. ८ श्री सिद्धाचल नयणे जोतां (राग : अंतरना आ कोडियामां....) श्री सिद्धाचल नयणे जोतां, हैयुं माझं हर्ष धरे, For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महिमा मोटो ए गिरिवरनो, सुणता तनहुं नृत्य करे; कांकरे कांकरे अनंता सिध्या, पावन ए गिरि दुखडां हरे, ते तीरथर्नु शरणुं होजो, भवोभव बंधन दूर करो. ९ दुषमकाले ए महातीरथ, भव्य जीव आधार खरे, जुग जुग जूनां संचित पापो, ते पण जाय दूर खरे; शिवमंदिर चडवा निसरणी, अनंत दुःखनी राश चूरे, नित्य प्रभाते नमीए भावे, अनंत सुखनी आश पूरे. १० सुंदर ढूंक सोहामणी दीपे, नीरखतां पातिकडां टले, आदि प्रभुनु अनुपम दर्शन, करता हैयुं अति उछाले; त्रण भुवनमां घj घणुं जोतां, क्यांय ना एनी जोड मले, द्रव्य-भावथी जो जिन पूजे, तो शिवसुखनी आश फले. ११ श्री पुंडरिकगिरि श्री विमलाचल, श्री सिद्धक्षेत्रने नित्य नमुं, श्री सुरगिरि श्री महागिरि, श्री पुण्यराशिने हुं प्रणमुं: श्री शत्रुजय मुक्तिनिलयगिरि, स्तवतां आतम मारो दमुं, श्री पुष्पदंतगिरि नवमा नामे, वंदी भवथी हुं विरमुं. १२ श्री बाहुबल श्री सिद्धाचल, श्री मरुदेवने नमन करूं, श्री रैवतगिरि ढंकगिरिने, सहसकमलने वंदन करूं; श्री शतकूट कदंबगिरिने लोहितगिरि नमी पाप खपुं, श्री दृढशक्ति तालध्वजगिरि श्री महाबल ए नाम जपुं. १३ एकवीश नामो इम छे जेना ते गिरिराजनी सेवा चहुं. श्वासे श्वासे रोमे रोमे ए गिरिराजनुं ध्यान चहुं; गिरिवर टोचे गिरिवर मंडन श्री आदीश्वर प्रभु सोहे, प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर जोतां त्रिभुवन मन मोहे. १४ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुंडरिकस्वामी मन विसरामी, मुखमुद्रा अद्भुत झलके, पुंडरिकसम श्वास सुगंधी, दिव्य तेजे नयनो चलके; चैत्री पूनमने दिन पुंडरिक, पदवी वरिया सुख छलके, पांच क्रोडशुं सिद्धि वर्या छो, नमन करुं मुज मन मलके.१५ करूणासिंधु, त्रिभुवन नायक, तुं मुज चित्तमां नित्य रमे, चाकरी चाहुं अहोनिश तारी, भवथी माझं मन विरमे; श्री सिद्धाचल मंडन साहिब, तुज चरणे सुरनर प्रणमे, सम्यग् दर्शन हर्षने आपो, विश्वना तारणहार तमे. १६ श्री शत्रुजय तीर्थपति श्री आदिजिन स्तुतियाँ (राग : हरिगीत) जेणे उगायुं विश्वने अज्ञानना अंधारथी, जेणे सजाव्युं विश्वने संस्कारना शणगारथी; जेणे बचाव्युं विश्वने संसार-पारावारथी, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं. जेओ युगादिकालमा पहेला ज राजेश्वर हता, जेओ युगादिकालमा पहेला ज संयमधर हता; जेओ युगादिकालमा पहेला ज तीर्थकर हता, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं. सहजात अवधिज्ञानथी जेणे बधुं जाण्यु अने, स्त्री-पुरुषनी सौ प्रथम दर्शावी कला आ जगतने; ने नीतिमय विश्वस्थिति पाम्युं जगत् जेनी कने, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभाव हुं नमुं. १९ १७ १७ १८ For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० भिक्षा विना दिन चारसो वीत्या छतां धरता प्रशम, स्थाप्युं जगतमा जेमणे श्रीधर्मकल्पतरु परम; ने जेमणे आप्यु जनेताने परम पद सौ प्रथम, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभाव हुं नमुं. ज्यांना कणेकणमां वहे शुभ भावनां आंदोलनो, ना पार को' पामी शके जे क्षेत्रनां माहात्म्यनो, महातीर्थ ते सिद्धाचल छ वास पावन जेमनो, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुं नमुं. जेणे असंख्या भरत महाराजादि तार्या आतमा, जे एकसो ने आठ मुनि साथे वर्या मुक्तिरमा, जेनुं महाशासन रह्यु सौथी वधारे समयमां, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुं नमुं. सौथी ऊंची काया अने सौथी वधु तप आकरो, सौथी अधिक आयुष्यमां सौथी वधु तार्या नरो; ने जेमनी साथे हता सौथी वधारे व्रतधरो, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं. जेना प्रभावे जीवनमा हुं परम शान्ति अनुभवू, जेना प्रभाव वर समाधि मरणमा पामीश हुँ; जेना प्रभावे पवनवेगे 'मोक्ष' मां पहोंचीश हुँ, ते आदिनाथ जिनेन्द्रने पंचांगभावे हुँ नमुं. २२ २४ For Private and Personal Use Only Page #23 --------------------------------------------------------------------------  Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नत्थ सूत्र अन्नत्थ ऊससिएणं, निससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाईएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए १. सुहुमेहिं अंगसंचालेहि, सुहुमेहिं खेलसंचालेहि, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं २. एवमाईएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ३. जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ४. ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ५. (एक लोगस्स 'चंदेसु निम्मलयरा' तक न आये तो चार नवकार का काउस्सग्ग, फिर प्रगट लोगस्स कहना) __ लोगस्स सूत्र लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे, अरिहंते कित्तईस्सं, चउविसंपि केवली. उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च; पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे. सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपूज्जं च; विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि. कुंथु अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च; वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च. एवं मए अभिथुआ, विहुयरयमला पहीण जरमरणा; चउविसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु. कित्तिय-वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा; For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आरुग्गबोहिलाभं, समाहिवर मुत्त मंदिन्तु. चंदेसु निम्मलयरा, आईच्चेसु अहियं पयासयरा, सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु. खमासमण सूत्र इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए मत्थएणं वंदामि. ( इस प्रकार तीन खमासमण देकर ) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं? इच्छं. (कहकर बाँया गोडा उपर करके .) सकल कुशलवल्ली, पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्पवृक्षोपमानः, भवजलनिधि पोतः सर्व संपत्ति हेतु:: स भवतु सततं वः श्रेयसे शांतिनाथः श्रेयसे पार्श्वनाथः. चैत्यवंदन श्री शत्रुंजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे; भावधरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे... अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीर्थनो राय; पूर्व नव्वाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय. सूरजकुंड सोहामणो, कवडजक्ष अभिराम; नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करूं प्रणाम. जंकिंचि सूत्र . जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए, ८ For Private and Personal Use Only १ २ ३ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाई जिण बिंबाई, ताई सव्वाइं वंदामि. नमुत्थुणं सूत्र नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं आईगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससिहाणं, पुरिसवर पुंडरियाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं, धम्मवर चाउरंत चक्कवट्टीणं. अप्पडिहय वरनाण दंसण धराणं, वियट्टछउमाणं, जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं, सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं सिव मयल मरूअ मणंत मक्खय मव्वाबाह मपुणरावित्ति. सिद्धिगई नाम धेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिय भयाणं. जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले, संपई अ वट्टमाणा, सब्बे तिविहेण वंदामि. जावंति चेइआई सूत्र जावंति चेइआई, उड्ढे अ अहे अतिरिअलोए अ, सव्वाई ताई वंदे इह संतो तत्थ संताई. इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएणं वंदामि. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जावंत के वि साहू सूत्र जावंत के वि साहू, भरहेरवय महाविदेहेअ सब्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड विरयाणं. _ नमोऽर्हत् सूत्र नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः स्तवन सिद्धाचलगिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारां; ए गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पार; रायण रूख समोसर्या स्वामी, पूर्व नव्वाणुं वारा रे,धन्य. १ मूलनायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चार; अष्ट द्रव्यशुं पूजो भावे समकित मूल आधारा रे. धन्य. २ भाव भक्तिशुं प्रभु गुण गावे, अपना जन्म सुधारा; यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे. धन्य.३ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा. पतित उद्धारण बिरुद तमारं, ए तीरथ जग सारा रे. धन्य.४ संवत अढार त्यांसी मास अषाढो, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघमें, क्षमारतन प्रभु प्यारा रे. धन्य.५ श्री उवसग्गहरं स्तवनम् उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं; १० For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " विसहर-विस निन्नासं, मंगल-कल्लाण- आवासं. विसहर- फुलिंग- मंतं, कंठे धारेई जो सया मणुओ तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं. चिट्ठउ दूरे मंतो तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई; नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं. तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि- कप्पपायवब्भहिए: पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं. इअ संथुओ महायस, भत्तिब्भर निब्भरेण - हियएण; ता देव दिज्ज बोहिं भवे भवे पास जिणचंद. , ११ ४ जय वीयराय सूत्र " ( ललाट पर दोनों हाथ लगाकर, आ भवमखंडा तक . ) जयवीयराय जगगुरु होउ ममं तुह पभावओ भयवं भवनिव्वेओ मग्गा-णुसारिया इठफल सिद्धि. लोग विरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ परत्थ करणं च सुहगुरु जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंडा. वारिज्जई जईवि नियाण, बंधणं वीयराय तुह समये तहवि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं. दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, समाहि मरणं च बोहिलाभो अ संपज्जउ मह एअं, तुह नाह पणाम करणेणं. सर्व मंगल मांगल्यं सर्व कल्याण कारणं प्रधानं सर्व धर्माणाम्, जैनं जयति शासनम्. ( फिर खड़े होकर ) ३ ४ For Private and Personal Use Only ५ ५ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरिहंत चेइयाणं सूत्र अरिहंत चेईयाणं, करेमि काउस्सग्गं, वंदण वत्तियाए, पूअणवत्तिआए, सक्कारवत्तियाए, सम्माण वत्तियाए, बोहिलाभवत्तया निरुवसग्गवत्तियाए सद्धाए, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए. वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं. अन्नत्थ सूत्र अन्नत्थ ऊससिएणं, निससिएणं, खासिएणं, छीएणं. जंभाईएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिये पित्तमुच्छाए सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं एवमाईएहिं, आगारेहिं, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ताव कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ( फिर एक नवकार का काउस्सग्ग करके नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः कहकर थोय कहनी.) थोय श्री शत्रुंजय तीरथ सार, गिरिवरमां जेम मेरु उदार, ठाकुर राम अपार; मंत्रमांहे नवकार ज जाणुं, तारामां जेम चंद्र वखाणु, जलधर जलमां जाणुं; पंखी माहे जेम उत्तम हंस, १२ For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुलमांहे जेम, ऋषभनो वंश, नाभितणो ए अंश; क्षणावंतमां श्री अरिहंत तपशूरामां मुनिवर महंत, शत्रुजय गिरि गुणवंत. (खमासमण देकर पच्चक्खाण लें.) प्रातःकालीन पच्चक्खाण १. नवकारसी एवं मुट्ठिसहिअं उग्गए सूरे नमुक्कार-सहिअं, मुट्ठि-सहि पच्चक्खाइ चउविहंपि आहारं-असणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ. २. पोरिसी/ साढ-पोरिसी उग्गए सूरे पोरिसिं / साड्ढ-पोरिसिं, मुट्ठि-सहि पच्चक्खाइ, उग्गए सूरे चउव्विहंपि आहारं- असणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसा-मोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्तरा-गारेणं, सब-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. ३. पुरिमड्ढ / अवड्ढ सूरे उग्गए ।पुरिमड्ढ | अवड्ढ मुट्ठि-सहिअं पच्चक्खाइ चउबिहंपि आहारं-असणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसा-मोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. १३ For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. एगासणा / बियासणा उग्गए सूरे निमुक्कार-सहिअं | पोरिसिं /साड्ढ-पोरिसिं/ सूरे उग्गए पुरिमड्ढ | अवड्ढ मुट्ठि-सहि पच्चक्खाइ उग्गए सूरे चउब्विहंपि आहारं- असणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसा-मोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं विगईओ पच्चक्खाइ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसा-गारेणं, लेवा-लवेणं, गिहत्य-संसट्टेणं, उक्खित्त-विवेगेणं, पडुच्च-मक्खिएणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं एगासणं | बियासणं पच्चक्खाइ तिविहंपि आहार- असणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, सागारिया-गारेणं, आउंटण-पसारेणं, गुरु-अब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहलेण वा, ससित्थेण वा असित्येण वा वोसिरइ. ५. आयंबिल / नीवी उग्गए सूरे नमुक्कार-सहि / पोरिसिं / साड्ढ-पोरिसिं । सूरे उग्गए पुरिमड्ढ / अवड्ढ मुट्ठि-सहि पच्चक्खाइ उग्गए सूरे चउब्विहंपि आहारं- असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा गारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसा-मोहेणं, साहु-वयणेणं, महत्तरा-गारेणं, १४ For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं, आयंबिलं । निवि विगईओ पच्चक्खाइ अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, लेवा-लेवेणं, गिहत्थ-संसट्टेणं, उक्खित्त-विवेगेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरा-गारेणं, सब-समाहि-वत्तिया-गारेणं, एगासणं पच्चक्खाइ तिविहंपि आहारं- असणं, खाइमं, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, सागरिया-गारेणं, आउंटण-पसारेणं, गुरु-अब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्येण वा, असित्येण वा वोसिरइ. ६. तिविहार उपवास / पाणहार सूरे उग्गए अब्भत्तठें पच्चक्खाइ तिविहंपि आहारंअसणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पारिट्ठावणिया-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं, “पाणहार पोरिसिं / साड्ढ-पोरिसिं सूरे उग्गए पुरिमड्ढ | अवड्ढ मुट्ठि-सहि पच्चक्खाइ, अनत्थणाभोगेणं, सहसा-गारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसा-मोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरा-गारेणं, सब-समाहि-वत्तिया-गारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्येण वा, असित्येण वा वोसिरइ. (*पाणाहार का पच्चक्खाण यहां से लें.) १५ For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. चउविहार उपवास सूरे उग्गए अब्भत्तठें पच्चक्खाइ चउविहंपि आहारअसणं, पाणं, खाइम, साइम, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, पारिट्ठावणिया-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. सायंकालीन पच्चक्खाण १. पाणहार पाणहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. २. चउविहार उपवास सूरे उग्गए अभत्तठें पच्चक्खाइ चउबिहंपि आहारंअसणं, पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. ३. चउविहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ चउब्बिहंपि आहारअसणं, पाणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा- भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सब-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. १५ For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ----- ४. तिविहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ तिविहंपि आहार-असणं, खाइम, साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि. वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. ५. दुविहार दिवस-चरिमं पच्चक्खाइ दुविहंपि आहारं-असणं, खाइम अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहिवत्तिया-गारेणं वोसिरइ. देसावगासिक देसावगासि उवभोगं परिभोगं पच्चक्खाइ अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं वोसिरइ. भावपूजा की पूर्णाहुति करते... करते... आव्यो शरणे तमारा जिनवर! करजो, आश पूरी अमारी, नाव्यो भवपार म्हारो तुम विण जगमां, सार ले कोण मारी; गायो जिनराज! आजे हरख अधिकथी, परम आनंदकारी, पायो तुम दर्शनासे भवभय भ्रमणा नाथ! सर्वे अमारी. १ भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मांगुं हुं देवाधिदेवा; सामुं जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. २ १७ For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - दूसरे शांतिनाथ प्रभु की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय स्तुति षट्खंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामता, षोडश कषायो परिहरने सोलमां जिन राजता, चोमास रही गिरिराज पर जे भव्यने उपदेशता, ते शांतिजिनने वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. प्रथम इरियावहीयं करके, इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि. (इस प्रकार तीन खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं? इच्छं (कहकर बाँया गोड़ा उपर करके) (सकल कुशलवल्ली) चैत्यवंदन शांति जिनेश्वर सोलमा, अचिस सुत वंदो; विश्वसेन कुल नभोमणि, भविजन सुख कंदो. मृग लंछन जिन आउखुं, लाख वरस प्रमाण; हत्थिणाउपर नयरी धणी, प्रभुजी गुण मणि खाण. २ चालीश धनुषनी देहडी, समचोरस संठाण; वदन पद्म ज्युं चंदलो, दीठे परम कल्याण. (जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, जावंत, नमोऽर्हत्) १८ For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुं. २ لج .لي स्तवन शांति जिनेश्वर साचो साहिब, शांति करण इण कलिमें; हो जिनजी तुं मेरा मनमें तुं मेरा दिलमें, ध्यान धरूं पल पलमें साहेबजी. तुं.१ भवमा भमतां में दरिशन पायो, आशा पूरो एक पलमें हो. निरमल ज्योत वदन पर सोहे, नीकस्यो ज्युं चंद बादलमें हो. मेरो मन तुम साथे लीनो, मीन वसे ज्युं जलमें हो. तुं. ४ जिनरंग कहे प्रभु शांति जिनेश्वर, दीठोजी देव सकलमें हो. तुं. ५ (जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत्) थोय शांति सुंहकर साहिबो, संयम अवधारे, सुमित्र ने घेर पारj, भव पार उतारे, विचरंता अवनी तले, तप उग्र विहारे, ज्ञान ध्यान एक तान थी तिर्यंच ने तारे. तीसरे रायण पादुका की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय स्तुति जेनुं झरंतु क्षीर पुण्ये मस्तके जेने पडे, १९ For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते त्रण भवमा कर्म तोडी सिद्धि शिखरे जई चडे, ज्यां आदि जिन नव्वाणुं पूर्व आवी सुणावता, रायण पगला वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (तीन खमासमण, सकलकुशल०) चैत्यवंदन एह गिरि उपर आदि देव, प्रभु प्रतिमा वंदो; रायण हेठे पादुका, पूजीने आणंदो. एह गिरिनो महिमा अनंत, कुण करे वखाण; चैत्री पूनमने दिने, तेह अधिको जाण. एह तीरथ सेवो सदा, आणी भक्ति उदार; श्री शत्रुजय सुखदायको, दानविजय जयकार. (जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, जावंत, नमोऽर्हत्) स्तवन नीलुडी रायण तरुतले-सुण सुंदरी, पीलुडा प्रभुना पाय रे-गुण मंजरी; उज्जवल ध्याने ध्याईए, सुण एही ज मुक्ति उपाय रे. गुण०१ शीतल छायाए बेसीए, सुण० रातडो करी मनरंग रे, गुण पूजीए सोवन फूलडे, सुण जेम होय पावन अंग रे. गुण० २ खीर झरे जेह उपरे, सुण० २० For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेह धरीने एह रे, गुण श्रीजे भवे ते शिव लहे, सुण० थाये निर्मल देह रे, गुण०३ प्रीत धरी प्रदक्षिणा, सुण दीए एहने जे सार रे, गुण० अभंग प्रीति होय तेहने, सुण० भवोभव तुम आधार रे, गुण० ४ कुसुम पत्र फल मंजरी, सुण० शाखा थड ने मूल रे, गुण देव तणा वासाय छे, सुण० तीरथने अनुकूल रे, गुण० ५ तीरथ ध्यान धरो मुदा, सुण० सेवो एहनी छांय रे, गुण 'ज्ञानविमल' गुण भाखीयो, सुण० शत्रुजय महात्म्य मांय रे. गुण०६ (जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत्) थोय श्री शत्रुजय आदिजिन आव्या, पुरव नव्वाणुं वारजी, अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारजी, विमल गिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी, कांकरे कांकरे, अनंता सिध्या, एक सो आठ गिरि नामजी. २१ For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौथे पुंडरिक स्वामी की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय स्तुति जे आदि जिननी आण पामी सिद्धगिरिए आवता, अणसण करी एक मासनुं मुनि पंचक्रोडशुं सिद्धता, जे नामथी पुंडरिकगिरि एम तिहुं जगत बिरदावता, पुंडरिकस्वामी वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (तीन खमासमण, सकलकुशल) चैत्यवंदन आदीश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवंत; प्रगट नाम पुंडरिक जास, महीमांहे महंत. पंच कोडी साथे मुणींद, अणसण तिहां कीध; शुक्लध्यान ध्याता अमूल, केवल वर लीध. चैत्री पूनमने दिने ए, पाम्या पद महानंद: ते दिनथी पुंडरीगिरि, नाम दान सुखकंद. (जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, जावंत, नमोऽर्हत्) स्तवन एक दिन पुंडरीक गणधरूं रे लाल, पूछे श्री आदिजिणंद- सुखकारी रे; कहीये ते भवजल ऊतरी रे लाल, पामीश परमानंद भववारी रे. कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, २२ For Private and Personal Use Only २ एक० १ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्ञान अने निरवाण जयकारी रे; तीरथ महिमा वाधशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण निरधारी रे. इम निसुणीने तिहां आवीया रे लाल, घाती करम कर्या दूर तमवारी रे; पंच क्रोड मुनि परिवर्या रे लाल, हुआ सिद्धि हजुर भववारी रे. चैत्री पूनम दिन कीजीये रे लाल, पूजा विविध प्रकार दिलधारी रे; फल प्रदक्षिणा काउस्सग्गा रे लाल, लोगस्स थुई नमुक्कार नरनारी रे. दश वीश त्रीश चालीश भला रे लाल, पचास पुष्पनी माल अति सारी रे; नरभव लाहो लीजीये रे लाल, जेम होय 'ज्ञान' विशाल मनोहारी रे. एक० ५ (जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत् ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7 २३ एक० २ थोय पुंडरीक मंडण प्राय प्रणमीजे आदिश्वर जिन चंदाजी, नेम विना वीस तीर्थंकर गिरिचढ्या आणंदाजी. एक० ३ For Private and Personal Use Only एक० ४ आगममांहे पुंडरीक महिमा, भाख्यो ज्ञान दिणंदाजी, चैत्री पुनम दिन देवी, चक्केसरी, सोभाग्य द्यो सुखकंदाजी. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांचवें आदिनाथ प्रभु की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय स्तुति जे राजराजेश्वर तणी अद्भूत छटाए राजता, शाश्वतगिरिना उच्च शिखरे नाथ जगना शोभता, जेओ प्रचंड प्रतापथी जगमोहने विदारता, आदि जिनने वंदता मुज पाप सहु दूरे थता. (तीन खमासमण, सकलकुशल) चैत्यवंदन आदिदेव अलवेसरू, विनीतानो राय; नाभिराया कुलमंडणो, मरूदेवा माय. पांचसे धनुष्यनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल; चोराशी लाख पूर्वनुं, जस आयु विशाल. वृषभ लंछन जिन वृषधरू ए, उत्तम गुणमणि खाण; तस पद 'पद्म' सेवन थकी, लहीए अविचल ठाण. (जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, जावंत, नमोर्हत्) स्तवन माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति मारुं मन लोभापुंजी के मारुं चित्त चोराणुं जी. करुणा-नागर करुणा-सागर, काया- कंचन-वान. धोरी-लंछन पाउले कांई, धनुष पांचसें मान. त्रिगडे बेसी धर्म कहंता, सुणे पर्षदा बार. २४ For Private and Personal Use Only . १ १ माता. १ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योजन गामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार. माता.२ ऊर्वशी रूडी अपछराने, रामा छे मनरंग. पाये नेपूर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ. माता.३ तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुं जग-तारणहार. तुज सरीखो नहि देव जगतमा, अडवडिया आधार.माता.४ तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव. सुर-नर-किन्नर-वासुदेवा, करता तुज पद सेव. माता.५ श्री सिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद. कीर्ति करे माणेक मुनि ताहरी, टालो भव-भय फंद.माता.६ (जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत्) थोय आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया; मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया. जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया; केवल सिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया. घेटी पगला की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय स्तुति दुषम काले ए महा तीरथ, भव्य जीवोनो आधार खरे, जुग जुग जुना संचित पापो, ते पण जाय दूरे दूरे, शिवमंदिरनी चढवा निसरणी, अनंत दुःखनी राशीचूरे, नित्य प्रभाते नमीए भावे, अनंत सुखनी आशा पूरे. २५ For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( प्रथम इरियावहियं करके तीन खमासमण, सकलकुशल) चैत्यवंदन सर्वतीर्थ शिरोमणि, शत्रुंजय सुखकार; घेटी पगलां पूजतां, सफल थाय अवतार. पूर्व नवाणुं पधारीया, जिहां श्री अरिहंत; ते पगलांने वंदीए, आणि मन अहिखंत. चोविहारो छट्ठ करी, घेटी पगले जाय; धर्मरत्न पसायथी, मन वांछित फल थाय. थोय बार पर्षदा बेसे, ईन्द्र इन्द्राणी राय, नवकमल रचे सुर, तिहां ठवता प्रभु पाय, देवदुंदुभि वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुंत, एवा जिन चोवीशे, पूजो एकण चित्त. २६ १ For Private and Personal Use Only २ स्तवन सिद्धाचल वंदो रे नरनारी, नरनारी, नरनारी, नाभिराया मरुदेवा नंदन ऋषभदेव सुखकारी. पुंडरिक पमुहा मुनिवर सिद्धा, आतमतत्त्व विचारी. शिवसुख कारण भवदुःख वारण, त्रिभुवन जन हितकारी . ३ समकित शुद्ध करण ए तीरथ, मोह मिथ्यात्व निवारी ज्ञान उद्योत प्रभु केवल धारी, भक्ति करुं एक तारी. ( जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत्) ४ ५ ३ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | चैत्यवंदन विभाग (१) सिद्धाचल शिखरे चढी सिद्धाचल शिखरे चढी, ध्यान धरो जगदीश मन वच काय एकाग्रशुं, नाम जपो एकवीस. शत्रुजयगिरि दिए, बाहुबली शिवठाम, मरुदेव पुंडरीकगिरि रैवतगिरि विश्राम. विमलाचल सिद्धराजजी, नाम भगीरथ सार; सिद्धक्षेत्र ने सहस्रकमल मुक्तिनिलय जयकार. सिद्धाचल शतकूटगिरि, ढंक ने कोडिनिवास; कदंबगिरि लोहित नमुं, तालध्वज पुन्यराश. महाबल दृढशक्ति सही, ए एकवीशे नाम; साते शुद्धि समाचरी, नित्य कीजे प्रणाम. भरते बिंब भरावीयाए, शत्रुजय गिरिराय; श्री विजयप्रभसूरि तणा, उदयरत्न गुण गाय. (२) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल साचो; आदीश्वर जिनरायनो, जिहां महिमा जाचो. ईहां अनंत गुणवन्त साधु, पाम्या शिववास; एह गिरि सेवाथी अधिक, होय लीलविलास. दुष्कृत सवि दूरे हरे ए, बहु भव संचित जेह; सकल तीरथ शिर सेहरो, दान नमे धरी ने. २७ For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) श्री शत्रुजय महात्म्यनी श्री शत्रुजय महात्म्यनी, रचना कीधी सार; पुंडरीकगिरिनी स्थापना, प्रथम जिन गणधार. एक दिन वाणी जिननी, सुणी थयो आनंद; आव्या शत्रुजयगिरि, पंचक्रोड सह रंग. चैत्री पूनमने दिने ए, शिवशुं कीधो योग; नमिये गिरि ने गणधरूं, अधिक नहि त्रिहुलोग. (४) प्रेमे प्रणमो प्रथम देव प्रेमे प्रणमो प्रथम देव, शत्रुजयगिरि मंडन. भवियण मन आनंदकरण, दुःख दोहगखंडन. सुरनर किन्नर नमे तुज, भगतिशुं पाया, पापकंटक फेडे समत्थ, प्रभु त्रिभुवन राया. ज्ञानविमल प्रभु तुम तणे, चरणे शरणे राखौ; कर जोडीने विनवू, मुक्ति मार्ग मुज दाखो. (५) शत्रुजय शिखरे चढिया शत्रुजय शिखरे चढिया स्वामी, कहीए हुं अर्चिश. रायण तरुवर तले पाय पूजी आणंदे अरचिश. न्हवण विलेपन पूजना, करी आरती उतारीश; मंगल दीपक ज्योति थुति, करी दुरित निवारीश. धन्य धन्य ते दिन माहरोए, गणीश सफल अवतार; नय कहे आदीश्वर नमो, जिम पामो जयकार. २ २८ For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (६) ए तीरथनी उपरे ए तीरथनी उपरे, अनंत तीर्थंकर आव्या; वली अनंता आवशे, समतारस भाव्या. आ चोविसी मांहि एक, नेमीश्वर पाखे; जिन त्रेवीश समोसर्या एम आगम भाखे. गणधर मुनिवर केवली, समोसर्या गुणवंत; प्रेम ते गिरि प्रणमतां, हरखे दान हसंत. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) सिद्धाचल गिरि वंदीए, सिद्धाचल गिरि वंदीए द्रव्य भावथी बेश; द्रव्य भाव गिरि जाणतां, रहे न मनमां क्लेश. सात नयोथी जाणीने, विमलाचल ध्यानार; अवश्य मुक्तिपद लहे, शुद्धातम पद सार. निर्विकल्प स्वभावथी ए, तीर्थज आपोआप; बुद्धिसागर संपजे, रहे न दुविधा ताप. " (८) प्रथम नमुं श्री आदिनाथ प्रथम नमुं श्री आदिनाथ, शत्रुंजय गिरि सोहे; नाभिराय मरुदेवी नंद, त्रिभुवन मन मोहे. लाख चोराशी वरस आयु, सुवर्ण सम काय; राणी सुनंदा सुमंगला, तस कंत सोहाय. लंछन वृषभ विराजतो ए धनुष पांचसो देह; विनीता नगरीनो धणी, रूप कहे गुणगेह. २९ For Private and Personal Use Only २ ३ १ २ ३ २ ३ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९) विमल केवल-ज्ञान कमला विमल-केवल-ज्ञान कमला, कलित-त्रिभुवन-हितकर; सुरराज-संस्तुत-चरणपंकज, नमो आदिजिनेश्वरं, विमलगिरिवर शृंगमंडण, प्रवर गुणगण भूधरं; सुर-असुर-किन्नर कोडी सेवित, नमो आदिजिनेश्वरं. २ करती नाटक किन्नरी गण, गाय जिनगुण मनहरं; निर्जरावली नमो अहोनिश, नमो आदिजिनेश्वरं. ३ पुंडरिक-गणपति सिद्धिसाधी, कोडी पण मुनि मनहरं; श्री विमलगिरिवर शृंग सिद्धा, नमो आदिजिनेश्वरं. ४ निज साध्य साधक सुर मुनिवर, कोडीनंत ए गिरिवरं; मुक्तिरमणी वर्या रंगे, नमो आदिजिनेश्वरं. पाताल नर सुरलोकमाहि, विमलगिरिवर तो परं; नहिं अधिक तीरथ तीर्थपति कहे, नमो आदिजिनेश्वर. ६ ईम विमलगिरिवर शिखरमंडण, दु:खविहंडण ध्याई ए; निज शुद्ध सत्ता साधनार्थ, परम ज्योति निपाई ए. ७ जित मोह कोह विछोह निद्रा, परमपद स्थित जयकरं; गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरं. ८ (१०) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, पुंडरिकगिरि साचो; विमलाचलने तीर्थराज, जस महिमा जाओ. मुक्तिनिलय शतकूट नाम, पुष्पदंत भणीजे; महापद्मने सहस्रपत्र, गिरिराज कहीजे. ३० For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईत्यादिक बहु भातिशू, ए नाम ज्यो निरधार; धीरविमल कविराजनो, शिष्य कहे सुखकार. (१०) सोना-रूपानां फूलडे सोना-रूपानां फूलडे, सिद्धाचल वधावू; ध्यान धरी दादातj, आनंद मनमा लावू. पूजा करी पावन थया, मम मन निर्मल देह; रचना रचुं शुभ भावथी, करुं कर्मनो छेह. अभवीने दादा वेगला, भवीने हैडा हजुर; तन-मन-ध्यान लगन थकी, कीधा कर्म चकचूर. कांकरे कांकरे सिद्ध थया, सिद्ध अनंतनुं ठाम; शाश्वत जिनवर पूजता, जीव पामे विश्राम. दादा दादा हुं करूं, दादा वसीया दूर; द्रव्यथी दादा वेगला, भावथी हैडा हजुर, दुषम काले पूजता, इन्द्र धरी बहु प्यार; ते प्रतिमाने वंदता, श्वासमांहे सो वार. सुवर्ण गुफाए पूजता ए, रत्न प्रतिमा इन्द्र; ज्योतिमा ज्योति मीले पूजे, मीले सवि सुख कंद. ऋद्धि सिद्धि घेर संपजे ए, पहोंचे मननी आश; त्रिकरण शुद्धे पूजतां, ज्ञानविमल सुप्रकाश. (११) नमो आदिदेवं नमो आदिदेवं नमो आदिदेवं. करे सुर असुर भक्तिथी जास सेवं; ७ ३१ For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिदानंद संदोह नीला निधानं, नमो विमलगिरि तीर्थनाथ प्रधानं. नमो सिद्धक्षेत्रं नमो पुंडरीकं, नमो हिमाचलं-सिद्धगिरि भक्ति-छेकं; नमो पुण्यराशिं नमो पर्वतेंद्र, नमो शत्रुजयं देव सयल नतेन्द्रं. नमो मुक्ति-गेहं सुभद्रं नगेन्द्र, दृढशक्ति महातीर्थ हरे कर्म-वृंदं; नमो पुष्पदंतं महापद्मनाभं, धरा पीठ कैलाश नमो मुक्तिधामं. पातालमूलं नमो शाश्वतं च, नमो सर्व कामित-प्रदं मुक्तिदं च; नमो सर्व-तीर्थावतारं सुतारं, नमो मुक्ति-सीमंतिनी वर्णहारं. जे कोई ऊठी प्रभात जिन नाम जंपे, गिरिराज नामे सयल पाप कंपे; गिरिराज उत्तम पद पद्म ध्यावे, चिदानंद निज रूप ते शुद्ध पावे. (१२) आदि जिनेश्वररायना आदि जिनेश्वररायना, छे पगला मनोहार; भाव सहित भक्ति करे, पहोंचाडे भवपार. ३२ For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रायणरुखतले बिराजी, दीये जगने संदेश; भवियण भावे जुहारीये, दूर करे संक्लेश. पगले पडीने विनवुं, पूरजो माहरी आश; ज्ञानतणी विनति सुणी, देजो शिवपद वास. (१३) आदिनाथ अरिहंत जिन आदिनाथ अरिहंत जिन, ऋषभ देव जयकारी; संघ चतुर्विध तीर्थने, स्थाप्युं जग सुखकारी. परमेश्वर परमातमा, तनुयोगे साकार; अष्ट कर्म दूरे कर्या, निराकार निर्धार. साकारी अरिहंतजी ए, निराकारथी सिद्ध; बुद्धि सागर ध्यावतां, प्रगटे आतम ऋद्धि. ३३ For Private and Personal Use Only २ ३ १ २ ३ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तुति विभाग (१) द्रव्यभावथी सिद्धाचलगिरि द्रव्यभावथी सिद्धाचलगिरि, बाहिर अंतर जाणोजी, सात नयोनी सापेक्षाए, समजी मनमा आणोजी; निमित्त कारण उपादानथी, सिद्धाचलने सेवोजी, बुद्धिसागर वीरप्रभुजी, भाखे त्रिभुवनदेवोजी. (इस स्तुति को चार बार बोल सकते है) (२) सिद्धगिरि मंडन रिसह जिणंद (राग : रघुपति राघव राजा राम...) सिद्धगिरि मंडन रिसह जिणंद, पाप तणो उन्मूले कंद; मरुदेवी मातानो नंद, ते वंदु मन धरी आणंद... (३) प्रणमो भविया रिसहजिनेसर (राग : वीर जिनेसर अति अलवेसर) प्रणमो भविया रिसहजिनेसर, शत्रुजय केरो रायजी, वृषभलंछन जस चरणे सोहे, सोवन वरणी कायजी; भरतादिक शतपुत्र तणो जे, जनक अयोध्या रायजी, चैत्री पूनमने दिने जेहना, महोटा महोत्सव थायजी... (४) सीमंधरने पूछे इंदा सीमंधरने पूछे इंदा, विनतडी अवधारो जी, भरतक्षेत्रमा वर्ल्ड कुण तीरथ, ते मुजने निरधारो जी; ३४ For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वलतुं श्रीजिन मुखे ईम भाखे, सुण इंदा मुज वातजी, सकल तीरथमां श्री शेत्रुंजो, तिहां भरतेसर तात जी... (५) श्री विमलाचल गिरिवर श्री विमलाचल गिरिवर कहीए, मोक्षतणो अधिकार जी; इणगिरि हुंता भविजन निश्चे, पाम्या केवलज्ञान जी; कांकरे कांकरे साधु अनंता, सिध्या इण गिरि आया जी, कर्म खपावी केवल पाम्या, थई अजरामर काया जी... (६) श्री शत्रुंजय मंडन श्री शत्रुंजय मंडन, रिसह जिनेसर देव, सुर नर विद्याधर, सारे जेहनी सेव, सिद्धाचल शिखरे, सोहाकर शृंगार, श्री नाभिनरेसर, मरुदेवीनो मल्हार... (७) सवि मलि करी आवो सवि मलि करी आवो, भावना भव्य भावो, विमलगिरि वधावो, मोतियां थाल लावो; जो होय शिव जावो, चित्त तो वात लावो, न होय दुश्मन दावो, आदि पूजा रचावो... (८) वंदु सदा श्री गिरिराज आजे ( राग : कल्लाणं कंदं ...) वंदु सदा श्री गिरिराज आजे, चूडामणि आदिजिणंद गाजे; दुट्ठट्ठ कम्मस्स विरोध भांजे, मानुं शिवारोहण एह पाजे ... ३५ For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९) श्री शत्रुजय मंडन श्री शत्रुजय मंडन ऋषभ जिणंद दयाल, मरुदेवा नंदन वंदन करुं त्रण काल, ए तीरथ जाणी पूर्व नवाणुं वार, आदीश्वर आव्या जाणी लाभ अपार, त्रेवीश तीर्थंकर चढीया ईण गिरिराय, ए तीरथना गुण सुर सुरादिक गाय; ए पावन तीरथ त्रिभुवन नहि तस तोले, ए तीरथना गुण सीमंधर मुख बोले. पुंडरीकगिरि महिमा आगममा प्रसिद्ध, विमलाचल भेटी लहीए अविचल रिद्ध; पंचमी गति पहोंचता मुनिवर क्रोडक्रोड, ईण तीरथे आवी कर्म विपाक विछोड, श्री शत्रुजय केरी अहोनिश रक्षाकारी, श्री आदिजिनेश्वर आण हृदयमां धारी; श्री संघ विघ्नहर कवडजक्ष गणभूर, श्री रविबुधसागर संघना संकट चूर. (१०) श्री शत्रुजय तीरथ सार श्री शत्रुजय तीरथ सार, गिरिवरमा जेम मेरु उदार, ठाकोर राम अपार; मंत्रमाहि नवकार ज जाणुं, तारामा जेम चंद्र वखाj, जलधर जलमां जाणुं; ३६ For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंखीमांहे जेम उत्तम हंस, कुलमांहे जेम ऋषभनो वंश, नाभि तणो ए अंश; क्षमावंतमां श्री अरिहंत, तप शूरा मुनिवर महंत शत्रुंजय गिरि गुणवंत. १ ऋषभ अजित संभव अभिनंदा, सुमतिनाथ मुख पूनम चंदा, पद्मप्रभ सुखकंदा; श्री सुपार्श्व चंद्रप्रभ सुविधि शीतल श्रेयांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्यमति शुद्धि, विमल अनंत धर्म जिन शान्ति, कुंथु अर मल्लि नमुं ए कान्ति; मुनिसुव्रत शुद्ध पान्ति. नमिनेमि पास चीर जगदीश, नेमविना ए जिन त्रेवीश., सिद्धगिरि आव्या ईश. २ भरतराय जिन आगे बोले, स्वामी शत्रुंजयगिरि कुण तोले., जिननुं वचन अमोले. ऋषभ कहे सुणो भरतजी राया, छरी पालंता जे नर जाय., पातिक भूको थाय. पशु पंखी जे इणगिरि आवे, भवत्रीजे ते सिद्ध ज थावे., अजरामर पद पावे. जिनमत में जो वखाण्यो, ते में आगम दिलमांहे आण्यो.. सुणतां सुर ऊर ठाण्यो ३ संघपति भरत नरेसर आवे, सोवनतणां प्रासाद करावे., मणिमय मूरत ठावे. नाभिराया मरूदेवी माता, ब्राह्मी सुंदरी बहेन विख्यात, ३७ For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूर्तिनव्वाणुं भ्राता... गोमुख यक्ष चक्केसरी देवी, शत्रुजयसार करे नितमेवी., तपगच्छ उपर हेवी. श्री विजयसेन सूरीश्वर राया,श्री विजयदेव गुरु प्रणमी पाया; ऋषभदास गुण गाया. ४ (११) सवि मली करी आवो सवि मली करी आवो, भावना भव्य भावो, विमलगिरि वधावो, मोतियां थाल लावो; जो होय शिव जावो, चित्त तो वात भावो, न होय दुश्मनदावो, आदि पूजा रचावो. शुभ केशर घोली, माहे कपूर चोली, पहेरी सित पटोली, वासीये गंध घोली; भरी पुष्पपटोली, टालीये दुःख होली, सवि जिनवर टोली, पूजीये भाव भोली. शुभ अंग अग्यार, तेम उपांग बार, वली मूलसूत्र चार, नंदी अनुयोगद्वार; दशपयन्ना उदार, छेद षट् वृत्ति सार, प्रवचन विस्तार, भाष्य नियुक्ति सार. जय जय जय नंदा, जैन दृष्टि सूरीदा, करे परमानंदा, टालता दुःख दंदा; ज्ञानविमलसूरिंदा, साम्य माकंद कंदा, वर विमल गिरिंदा, ध्यानथी नित्य भद्दा. ३८ For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) श्री शत्रुंजय मंडण आदिदेव श्री शत्रुंजय मंडण आदिदेव, हुं अहोनिशि सारुं तास सेव रायणतले पगला प्रभुतणां, पूजीश सफल फूल सोहामणा. १ वीश तीर्थंकर समोसर्या, विमलाचल उपर गुण भर्या गिरि कंडणे आव्या नेमनाथ, सो जिनवर मेलो मुक्तिसाथ . २ श्री सोहमस्वामी उपदिश्या, जंबू गणधरने मन वस्या; पुंडरीकगिरि महिमा एहमांहि, हुं आगम समरूं मन उच्छांहि. ३ चक्केसरी गोमुख कवड यक्ष, मनवंछित पूर्ण कल्पवृक्ष; सिद्धक्षेत्र सहाई देवता, भणे नंदसूरि तुम पाय सेवता ४ (१३) वंदु सदा शत्रुंजय तीर्थराजे, बंदु सदा शत्रुंजय तीर्थराजे, चूडामणि आदि जिणंद गाजे; दुट्ठ कम्मट्ठ विरोध भाजे, मानुं शिवारोहण एह पाजे. १ देवाधिदेवा कृत देवसेवा, संभारीये ज्युं गज चित्त रेवा; सव्वेवि ते थुत्ति थुया महिया, अणागया संपई जे ( अ ) अईअ. २ जे महोना योध वडा कहाया, चत्तारि दुट्ठा कसिणा कसाया; ते जीतीये आगम चक्खु पामी, संसारपारुत्तरणाय धामी. ३ चक्केसरी गोमुह देवयुत्ता, रक्षा करी सेवय भावपत्ता: दियो सया निम्मल नाण लच्छी, होवे प्रसन्ना शिवसिद्धि लच्छी. ३९ For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) श्री शत्रुजयगिरि सोहे श्री शत्रुजयगिरि सोहे आदिनाथ, मुज मिलीयो अविहड मुगति साथ; जस काया दोई सहस्स हाथ, ते वंदु जोडी दोई हाथ. १ गिरि उपरी आवी समोसर्या, त्रेवीश जिनवर गुण भर्या; नवि चन्या नेमि जिनेसरा, चोवीशे संप्रति सुहकरा. २ शिव पहोंता मुनिवर ईहां अनंत, ईम बोले आगम बहु सिद्धान्त; जस महिमा आदि नहि य अंत, शत्रुजयगिरि सेवो तेह संत. जस सानिधकारी कवडजक्ष, कलिकाले ए छे कल्पवृक्ष; लहे ज्ञानविमल प्रभुता घणी, जिनसेवा छे चिंतामणी. ४ (१५) श्री शत्रुजय आदिजिन आव्या श्री शत्रुजय आदिजिन आव्या, पूर्व नव्वणुंवारजी, अनंत लाभ ईहा जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारजी3B विमल गिरिवर महिमा म्होटो, सिद्धाचल तेणे ठामजी, कांकरे-कांकरे अनंता सिध्या, एकसोने आठ गिरि नामजी.१ पुंडरिक पर्वत पहोलो कहीये, एंशी योजन मानजी, वीश कोडीशुं पांडव सिद्धा, त्रण कोडीसुं रामजी; शांब-प्रद्युम्न साडाआठकोडी सिध्या, दश कोडी वारिखीलजी, पांच कोडीशुं पुंडरीक गणधर, सकल जिननी वाणीजी. २ सकल तीर्थनो राजा ए वली, विमलाचल गिरि कहीएजी, ४० For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सात छठ दोय अट्ठम करीने, अविचल पदवी लहीएजी; छरी पालीने जात्रा करीए, केवल कमला वरीएजी, सकल सिद्धांतनो राजा कहीये, तीरथ हृदयमां धरीएजी. ३ श्री सिद्धक्षेत्र शत्रुंजय जाणीया, श्री आदीश्वर रायाजी, गौमुख यक्ष चक्केसरी देवी, सेवे प्रभुना पायाजी; शासनदेवी समकित धारी, स्नात्र करे संभालीजी, रंगविजय गुरु एणी परे बोले, मेरुविजय जयकारीजी ४ (१६) प्रणमो भवियां रिसहजिनेसर प्रणमो भवियां रिसहजिनेसर, शत्रुंजय केरो राय जी, वृषभ लंछन जस चरणे सोहे, सोनवरणी काय जी; भरतादिक शत पुत्र तणो जे, जनक अयोध्या राय जी; चैत्री पूनमने दिने जेहना महोटा महोत्सव थाय जी. अष्टापदगिरि शिवपद पाम्या, श्री रिसहेसर स्वामीजी, चंपाये वासुपूज्य नरेसर, नंदन शिवगतिगामी जी; वीर अपापापुर गिरनारे, सिद्धा नेमि जिणंदो जी, वीश समेतगिरिशिखरे पहोंता, एम चोवीशे वंदोजी. आगम नोआगम परे जाणो, सवि विषनो करे नासो जी, पापताप विष दूर करवा, निशदिन जेह उपासो जी; ममता कंचुकी कीजे अलगी, निर्विषता आदरीए जी, ईणी परे सहजथकी भव तरीये, जिम शिवसुंदरी वरीये जी. ३ कवडजक्ष प्रत्यक्ष थईने, जेहना परचा पूरे जी, दोहग दुर्गति दुर्जननो डर, संकट सघलां चूरे जी; # २ ४१ For Private and Personal Use Only १ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिन दिन दोलत दीपे अधिकी, ज्ञान विमल गुण नूर जी, जीत तणां निशान वजावो, बोधिबीज भरपूर जी. ४ (१७) ऋषभजिन सुहाया, ऋषभजिन सुहाया, श्री मरुदेवी माया, कनक वरण काया, मंगला जास जाया; वृषभ लंछन पाया, देव नर नारी गाया, पणसय धनु छाया, ते प्रभु ध्यान ध्याया. ए तीरथ जाणी, जिन त्रेवीश उदार, एक नेम विना सवि, समवसर्या निरधार; गिरि कंडणे आवी, पहोंता गढ गिरनार, चैत्री पूनम दिने, ते वंदु जयकार. ज्ञाताधर्मकथांगे, अंतगड सूत्र मझार, सिद्धाचल सिध्या, बोल्या बहु अणगार; माटे ए गिरि, सवि तीरथ शिरदार, जिन भेटे थावे, सुख संपत्ति विस्तार. गोमुख चक्केसरी शासननी रखवाल, ए तीरथकेरी, सांन्निध्य करे संभाल; गिरुओ जस महिमा, संप्रति काले जास, श्री ज्ञानविमलसूरि, नामे लील विलास. (१८) प्रह उठी वंदु प्रह उठी वंदु, ऋषभदेव गुणवंत, ४२ For Private and Personal Use Only १ २ ३ ४ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु बेठा सोहे, समवसरण भगवंत; त्रण छत्र बिराजे, चामर ढाले ईन्द्र, जिनना गुण गावे, सुर नरनारीना वृंद. बार पर्षदा बेसे, ईन्द्र इन्द्राणी राय, नव कमल रचे सुर, तीहां ठवता प्रभु पाय; देव दुंदुभी वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुंत, एहवा जिन चोवीसे, पूजो एकण चित्त. जिन जोजनभूमि, वाणीनो विस्तार, प्रभु अर्थ प्रकाशे, रचना गणधर सार; सहु आगम सुणतां, छेदीजे गति चार, जिन वचन वखाणी, लीजे भवनो पार. जक्ष गोमुख गिरूवो, जिननी भक्ति करेव, तिहां देवी चक्केश्वरी, विघन कोडी हरेव, श्री तपगच्छनायक, विजयसेन सूरिराय, तस केरो श्रावक, ऋषभदास गुण गाय. ४३ १ ३ (१९) जीहां ओगण्योतेर कोडा कोडी जीहां ओगण्योतेर कोडा कोडी, तेम पंचासी लखवली जोडी चुम्मालीश सहस कोडी; समवसर्या तिहां एती वार, पूर्व नव्वाणुं एम प्रकार, For Private and Personal Use Only ४ नाभि नरिंद मल्हार. १ सहस्त्रकुट अष्टापद सार, जिन चोवीस तणा गणधार, Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पगलानां विस्तार; वली जिनबिंब तणो नहि पार, देहरी थंभे बहु आकार, वंदु विमलगिरि सार. २ एंशी सित्तेर साठ पचास, बार जोयण माने जस विस्तार, ईग दुती चउपण सार; मान कह्युं एहनुं निरधार, महिमा एनो आगम अपार, आगम मांहे उदार. ३ चैत्री पूनमदिन शुभभावे, समकित दृष्टि सुरनर आवे, पूजा विविध रचावे; ज्ञानविमलसूरि भावना भावे, दुर्गति दोहग दूर गमावे, बोधबीज जस पावे . ४ (२०) भावानया- नेग-नरिंद-विंद २ भावानया- नेग नरिंद-विंदं, सव्विंद - संपुज्ज -पयारविंदं; वंदे जसो - निज्जिय- चारुचंदं, कल्लाण-कंदं पढमं जिणिदं . १ चित्तेगहारं रिउदप्प - वारं, दुक्खग्गि वारं सम-सुक्खकारं ; तित्थेसरा दिंतु सया निवारं, अपार-संसार-समुद्द-पारं. अन्नाण-सत्तु क्खलणे सुवप्पं, सन्नाय-संहीलिय- कोहदप्पं ; संसेमि सिद्धंतमहो अणप्पं, निव्वाण-मग्गे वरजाण- कप्पं. ३ हंसाधिरूढा वरदाण-धन्ना, वाएसिरी दाण-गुणोव-वण्णा; निच्चंपि अम्हं हवउ प्पसन्ना, कुंदिंदु-गोक्खीर तुसार वन्ना. ४ ४४ For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (२१) भक्तामर प्रणत- मौलिमणि-प्रभाणा भक्तामर - प्रणत- मौलिमणि-प्रभाणा-, मुद्दीपकं जिन ! पदाम्बुज-यामलं ते; स्तोष्ये मुदाह-मनिशं किल मारुदेव, दुष्टाष्ट- कर्मरिपु-मण्डलभित्! सुधीर ! १ श्रीमज्जिनेश्वर-कलापमहं त्रिलोक्या-, मुद्द्योतकं दलित- पापतमो-वितानम्; भव्याम्बु-जात-दिननाथ-निभं स्तवीमि, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्त्या नमस्कृत मर्मत्य - नराधि- राजैः २ वर्यां जिन-क्षितिपते-स्त्रिपदी-मवाप्य, गच्छेश्वरैः प्रकटिता किल वाङ्मुदा या; सम्यक् प्रणम्य जिन-पादयुगं युगादा-, वाढ्या शुभार्थ-निकरैर्भुवि सास्तु लक्ष्म्यै . ३ यक्षेश्वर-स्तव जिनेश्वर ! गोमुखाह्वः, सेवां व्यधत्त कुशल-क्षिति-भृत्पयोदः; त्वत्पाद-पंकज-मधुव्रततां दधानो-, वालंबनं भवजले पततां जनानाम् . ४ ४५ For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्तवन विभाग १. आंखडीए में आज शत्रुंजय दीठो रे आंखडीए में आज शत्रुंजय दीठो रे, सवा लाख टकानो दहाडो रे, लागे मने मीठो रे... सफल थयो रे मारा मननो उमाहो, व्हाला मारा भवनो संशय भांग्यो रे, नरक तिर्यंच गति दूर निवारी, चरणे प्रभुजीने लाग्यो रे. मानवभवनो लाहो लीजे, व्हाला मारा देहडी पावन कीजे रे, सोना रूपाना फूलडे वधावी, प्रेमे प्रदक्षिणा दीजे रे. दूधडे पखालीने केसर घोली, व्हाला मारा श्री आदीश्वर पूज्या रे, श्री सिद्धाचल नयणे जोतां, पाप मेवासी धूज्या रे. श्रीमुखे सुधर्मा सुरपति आगे, व्हाला मारा वीरजिणंद एम बोले रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रण भुवनमां तीरथ मोटु, नहि कोई शत्रुंजय तोले रे. ईन्द्र सरिखा ए तीरथनी, व्हाला मारा चाकरी चित्तमां चाहे रे; ४६ For Private and Personal Use Only १ २ ३ ४ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कायानी तो कासल काढी, सूरजकुंडमां नाही रे. कांकरे कांकरे श्रीसिद्धक्षेत्रे, व्हाला मारा साधु अनंता सिध्या रे, ते माटे ए तीरथ मोटुं, उद्धार अनंता कीधा रे. नाभिराया सुत नयणे जोतां, व्हाला मारा मेह अमीरस वुठया रे, 'उदयरत्न' कहे आज मारे पोते, श्री आदीश्वर तुठया रे. २. सौ चालो सिद्धगिरि जईए सौ चालो सिद्धगिरि जईए, गिरि भेटी पावन थईए; सोरठ देशे जात्रानु मोटुं धाम छे, ज्यां धर्मशालाओ बहु शोभे, महेलातो मनडां मोहे, एवं रूडं पालीताणा गाम छे. ज्यां तलेटी पहेंली आवे, गिरि दर्शन विरला पावे; प्रभुना पगलां पूनित ने अभिराम छे. ज्यां गिरि चढतां समीपे, देवालय दीव्य ज दीपे; बंगाली बाबुनु अविचल ए तो नाम छे. ज्यां कुंड विसामा आवे, थाक्यानो थाक भुलावे; परबो रूडी पाणीनी ठामो ठाम छे. ज्यां हडो आकरो आवे, केडे दई हाथ चडावे; एवी देवी हिंगलाज जेनुं नाम छे. ४७ For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्यां गिरिवर चडतां भावे, रामपोल छल्ले आवे; डोलीवालानुं विसामानुं ठाम छे. ज्यां नदीं शत्रुंजी वहे छे, सूरज कुंड शोभा दे छे; न्हायो नही जे एनुं जीवन बे बदाम छे. ज्यां सोहे शांतिनाथ दादा, सोलमा जिन त्रिभुवन भ्राता; पाले जतां सौ पहेलां प्रणाम छे. ज्यां चक्केश्वरी छे माता, वाघेश्वरी दे सुखशाता; कवडजक्षादी सौ देवता तमाम छे. ज्यां आदीश्वर बिराजे, जे भवनी भावठ भांजे; प्रभुजी प्यारा निरागी निष्काम छे. ज्यां सोहे पुंडरिक स्वामी, गिरुआ गणधर गुणधामी; अंतर जामी आतमना आराम छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्यां रायण छांय निलुडी, प्रभु पगलां परे परे रूडी; शीतलकारी ए वृक्षनो विराम छे. ज्यां नीरखीये नव टुंको, पातिकनो थाये भूको; दिव्य दहेरानी अलौकिक ठाम छे. सौ. ज्यां गृहिलींग अनंता, सिद्धि पद पाम्या संता: पंचम काले ए मुक्तिनुं मुकाम छे. ज्यां कमलसूरि गुण गावे, ते लाभ अनंतो पावे; जात्रा करवा मनडाने मोटी हाम छे. ३. विमलगिरिने भेटता विमलगिरने भेटता सुख पायो रे (३) ४८ For Private and Personal Use Only ६ ८ सौ. ९ १० ११ १२ १३ सौ. १४ सौ. १५ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनंद अति दिल छायो हां रे नमता ए गिरिराज (२). १ मूल मंदिर प्रभु ऋषभनी, अति प्यारी सोहे मूरति मोहनगारी, जस महिमा छे अतिभारी हां रे मानु मोहनवेल (२). २ आसपास जिनबिंबने दिल धरीए, रायण पगला न विसरीए, पुंडरिक गणधर गुण वरीए हां रे करीए जन्म पवित्र (२).३ ऋषभ प्रभुजी आव्या दिलधारी, ईहां पूर्व नव्वाणुं वारी, मुनि ध्यान धर्यु अतिभारी, हां रे तीर्थ नमुं गुणखाण (२).४ पुंडरिकगिरि नामथी ओलखायो ज्ञातासूत्रमा तीर्थ बताव्यो, सीमंधर मुखसे गवायो हो रे नाम लीये सुख थाय. ५ तीर्थ प्रतापथी भेटीया मनोहारी रूप देश सोरठ शणगारी, सौभाग्य विजय दिल प्यारी हां रे नमीए वारंवार. ६ ४. मारुं मन मोर्खा रे माझं मन मोडं रे, श्री सिद्धाचले रे, देखीने हरखित होय; विधिशुं कीजे रे, यात्रा एहनी रे, भवभवनां दुःख जाय. मारुं०१ पंचम आरे रे, पावन कारणे रे, ए समो तीरथ न कोय; मोटो महिमा रे, जगमां एहनो रे, आ भरते ईहां जोय. मारुं० २ ईण गिरि आव्या रे, जिणवर गणधरा रे, सिध्या साधु अनंत; कठण करम पण ए गिरि फरसतां रे, होवे करम निशांत. मारुं०३ ४९ For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन धर्म ते साचो जाणीए रे, मानुं तीरथ स्तंभ; सुरनर किन्नर नृप विद्याधरा रे, करता नाटारंभ. मारुं० ४ धन्य धन्य दाडो रे, धन्य वेला घडी रे, धरीए हृदय मोझार; 'ज्ञानविमलसूरि' गुण एहना घणा रे, कहेता नावे पार. मारुं०५ १. ५. वंदना वंदना वंदना रे वंदना वंदना वंदना रे, गिरिराज कुं सदा मोरी वंदना रे; वंदना ते पाप निकंदना रे, आदिनाथ कुं सदा मोरी वंदना; जिनको दरिशन दुर्लभ देखी, कीधी ते कर्मनिकंदना रे. १ विषय कषाय ताप उपशमीए, जिम मिले बावन चंदना रे; धन धन ते दिन कबहु होशे, थाशे तुम मुख दर्शना रे. २ तिहां विशाल भाव पण होशे, जिहां प्रभु पदकज फरसना रे; चित्त माहेथी कबहु न विसरु, प्रभु गुणगणनी ध्यावना रे.३ वली वली दरिशण वहेलुं लहीए, एहवी रहे नित्य भावना रे; भवोभव एहीज चित्तमां चाहुं, मेरी ओर नही विचारणा रे.४ चित्र गयंदना महावतनी परे, फेर न होय उतारणा रे; ज्ञानविमल प्रभु पूर्ण कृपाथी, सुकृत सुबोध सुवासना रे. ५ ६. तुमे तो भले बिराजोजी... तुमे तो भले बिराजोजी, श्री सिद्धाचल के वासी, साहिब भले बिराजोजी, तुमे तो० मरुदेवीनो नंदन रूडो, नाभिनरिंद मल्हार; युगला धर्म निवारण आव्या, पूर्व नव्वाणुं वार. तुमे तो० ५० For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मूल देवने सन्मुख राजे, श्री पुंडरिक गणधार; तुमे तो० पंच क्रोडशुं चैत्री पूनमे, वरीया शिववधु नार. सहस कूट दक्षिण बिराजे, जिनवर सहस चोविस; चउदसे बावन गणधरना, पगलां पूजो जगीश. तुमे तो० प्रभुनां पगलां रायण हेठे, पूजी परमानंद; अष्टापद चौविश जिनेश्वर, सम्मेत वीस जीणंद तुमे तो० मेरु पर्वत चैत्य घणेरा, चउमुख बिंब अनेक; बावन जिनालय देवल निरखी, हरख लहुं अतिरेक. तुमे तो० सहस्रफणा ने शामला पासजी, समवसरण मंडाण ; छीपावसीने खरतर वसी कोई, प्रेमावसी परमाण. तुमे तो० संवत अढार ओगण पचाशे, फागण अष्टमी दिन; उज्ज्वल पक्षे उज्ज्वल हुओ, गिरि फरस्या मुज मन तुमे तो० ईत्यादिक जिन बिंब निहाली, सांभली सिद्धनी श्रेण; उत्तम गिरिवर एनी परे विसरे, पद्मविजय कहे तेम. तुमे तो० ७. ते दिन क्यारे आवशे... · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( राग सोना रूपा के फूलडे ...) ते दिन क्यारे आवशे, श्री सिद्धाचल जाशुं; ऋषभ जिणंद जुहारीने सुरजकुंडमां न्हाशुं . समवसरणमां बेसीने, जिनवरनी वाणी; सांभल साचे मने, परमारथ जाणी. समकित व्रत सुधा धरी, सद्गुरुने वंदी; पाप सर्व आलोईने, निज आतम निंदी. ५१ For Private and Personal Use Only १ २ ३ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिक्कमणा दोय टंकना, करशुं मन कोडे; विषय कषाय विसारीने, तप करशुं होडे. व्हालने वैरी विचे, नवि करशुं वहेरो; परना अवगुण देखीने, नवि करशुं चहेरो. धर्मस्थानक धन वापरी, षट्कायने हेते; पंचमहाव्रत लेईने, पालशुं मन प्रीते. कायानी माया मेलीने, परिसहने सहीशुं; सुख दुःख सर्वे विसारीने, समभावे रहे\. अरिहंत देवने ओलखी, गुण तेहना गारों उदयरत्न एम उच्चरे, त्यारे निर्मल थाशुं. ८. आवी रूडी भगति में... आवी रूडी भगति में पहेला न जाणी(२) प्रभुजी संसारनी मायामां में वलोव्युं पाणी. शत्रुजय गिरिवर जईए नव्वाणुं वहीए, आतम शुद्ध करीने ए तो पावन थईए. ऋषभ जिणेसर स्वामी मारा भेटवा भले भावे, नाभिनरेसर नंदन दीठा हरख्यो ते वारे. चोरासीलाख जीवयोनिमा भमियो काल अनंता, तिहां भावमित्तने नवि पेख्यो एवा अरिहंता. काम क्रोध मान माया लोभे अति रडवडीयो, एकेन्द्रिय बेईन्द्रिय तेन्द्रि माहे तुं नवि पेख्यो. ज्ञानविमलसूरि ईम जंपे मुने एहवा हेवा, मोक्षमार्गना स्वामी आपो मुजने मेवा. ५२ For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९. श्री आदीश्वर अंतरजामी (राग : अंतरजामी सुण अलवेसर) श्री आदीश्वर अंतरजामी जीवन जगत आधार, शांत सुधारस ज्ञाने भरियो सिद्धाचल शणगार, रायणरूडी रे जीहां प्रभु पाय धरे(२) विमलगिरि वंदो रे देखत दुःख हरे(२) पुण्यवंता प्राणी रे प्रभुजीनी सेवा करे. गुण अनंता गिरिवर केरा सिद्धा साधु अनंता(२) वली रे सिद्धशे वार अनंती एम भाखे भगवंता(२) भवोभव केरा रे पातिक दूर टले. वावडीयु रस कुंपा केरी मणि माणेकनी रे खाण(२) रत्लखाण बहु राजे हो तीरथ एहवी श्री जिनवाणी(२) सुखना स्नेही रे बंधन दूर करे. पांच कोडीशुं पुंडरिक सिध्या त्रण कोडीशुं राम(२) वीश कोडीशुं पांडव मुक्ति सिद्धक्षेत्र सिद्धधाम(२) मुनिवर मोटां रे अनंता मुक्ति वरे. ऐसो तीरथ और न जगमें भाखे श्री जिनभाण(२). दुर्गति कापे ने पार उतारे व्हालो आपे केवलनाण(२) भविजन भावे रे जे एन ध्यान धरे. द्रव्य भावशुं पूजा करता पूजे श्री जिनपाय(२) चिदानंद सुख आतम वेदी ज्योति से ज्योति मिलाय(२) किर्ती एहनी रे माणेकमुनि करे. ३ ५३ For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०. शोभी शी कहुं रे शोभा शी कहुं रे, शेत्रुंजा तणी, जीहां बीराजे प्रथम तीर्थंकर देव जो, रूडी रे रायण तले ऋषभ समोसर्या, चोसठ सुरपति सारे प्रभुनी सेव जो. निरख्यो रे नाभिराया केरा पुत्रने, माता मरुदेवी केरा नंद जो, रूडी रे विनीता नगरीनो धणी, मुखडुं सोहिये शरद पूनमनो चंद जो. नित्य उठीने नारी कंतने विनवे, पियुडा मुजने पालीताणा देखाडजो, ए गिरिए पूर्व नव्वाणुं समोसर्या, माटे मुजने आदीश्वर भेटाडजो. मारे मन जावानी घणी होंश छे, क्यारे जावुं ने क्यारे करूं दर्शन जो, ते माटे मन मारुं तलसे घणुं, नयणे निहालुं तो ठरे मारा लोचन जो. एवी ते अरज अबलानी सांभलो, हुकम करो तो आवुं तमारी पास जो, महेर करीने दादा दरिशन दीजीए, श्री शुभवीरनी पहोंचे मननी आश जो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ For Private and Personal Use Only १ २ ३ ४ ५ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११. प्यारो लागे सारो लागे... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्यारे लागे सारो लागे आछो लागे राज, ऋषभ जिणंद मने प्यारो लागे राज, प्यारो लागे सारो लागे नीकोलागे राज, मरुदेवीनो जायो मने प्यारो लागे राज. नाभिराय फूलचंद ऋषभ जिणंद, दीपे दीपे दुनियामां दिस्यो रे दिणंद. टाल्यो टाल्यो मिथ्यात्व कियो रे उद्योत, जागी जागी भविजन अंतरंग ज्योत. पाम्यो पाम्यो हवे तुज चरणोनी वास, अधिक अधिक प्रभु पूरो मारी आश. धर्म चतुर्विध कीयो रे प्रकाश, आपो आपो अनुभव ज्ञान प्रकाश. भम्यो भम्यो हतो एता दिवस अजाण, सुणी नहि शुभ चित्ते प्रभु मुखवाण. आपो आपो हवे मुज ज्ञान प्रकाश, ज्ञानविमल प्रभु पुरो मारी आश. मांगु मांगु महानंद पद मोरा देव, सारो चित्त देजो साहिब चरणनी सेव. १२. आज मारा नयणा सफल थया... आज मारा नयणा सफल थया श्री सिद्धाचल निरखी, गिरिने वधावुं मोतीडे मारा हैयामां हरखी. ५५ For Private and Personal Use Only १ २ ३ ५ ६ ७ ८ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य धन्य सोरठ देशने जिहां ए तीरथ जोडी, विमलाचल गिरनारने वंदु बे कर जोडी. साधु अनंता ईणगिरि सिध्या अनशन लेई, राम पांडव नारद ऋषि बीजा मुनिवर केई. मानवभव पामी करी, नवि ए तीरथ भेट्यो, पाप करम जे आकरा कहो केणी पर मेट्यो ? तीर्थराज समरुं सदा सारे वांछीत काज, दुःख दोहग दूरे करी आपे अविचल राज. सुख अभिलाषी प्राणिया, वंछे अविचल सुखडा, माणेकमुनि गिरि ध्यानथी भांगे भवोभव दुःखडा . १३. श्री आदिश्वर साहिबा हुं केम... श्री आदीश्वर साहिबा हुं केम आवुं तुम पास, सिद्धगिरि भेटी अमे हवे तोडीशुं भवना पास, चालो सिद्धाचल जईए. धवल देवलियाना उंचा शिखरे घुंघरीया बहु घमके, दर्शन पामी गिरिराज हुं भवियण मुखडा मलके. नित्य उठी हुं रोज सवारे बनतो तुजमां मगन, क्यारे सिद्धाचल भेटशुं मने लागी एक लगन. स्वामी सीमंधर निज मुखे जश वरणवे महिमा अपार, तीन भुवनमां नहीं कोई तीरथ ए सम तारणहार. छरी पालता ईण गिरि आवे भरतादिक नरराय, गिरिवर पूजा रयणे वधावी पामे भवनो पार ५६ For Private and Personal Use Only ४ ५ ६ ५ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम तीर्थंकर आदि प्रभुना पुंडरिक गणधार, सिद्ध हुआ ईण गिरिवरे तिणे पुंडरिक गिरिनाम. एकऋत आठ नामे पूजो सिद्ध गिरिवर सुजाण, दास ऋषभ गिरि पसाये थाये कोडी कल्याण. १४. सिद्धगिरि ध्यावो भविका! सिद्धगिरि ध्यावो भविका! सिद्धगिरि ध्यावो; घेर बेठां पण बहु फल पावो, भविका! बहु फल पावो. १ नंदीश्वर जात्राये जे फल होवे, तेथी बमणेरुं फल कुंडलगिरि होवे. भ.कुं.२ त्रिगणुं रुचकगिरि चोगणुं गजदंता, तेथी बमणेरुं फल जंबू महंता. भ.ज.३ षट्गणुं घातकी चैत्य जुहारे; छत्रीश गणेकै फल पुक्खलविहारे. भ.पु.४ तेथी शतगणुं फल मेरु चैत्य जुहारे; सहसगणेरुं सम्मेतशिखरे. भ.स.५ लाखगणेरुं फल अंजनगिरि जुहारे; दश लाख गणेरुं फल अष्टापद गिरनारे. भ.अ.६ क्रोडगणेरुं फल श्री सिद्धाचल भेटे, जेम रे अनादिनां दुरित उमटे. भ.दु.७ भाव अनंते अनंत फल पावे, ज्ञानविमलसूरि ईम गुण गावे. भ.ई.८ ५७ For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५. सिद्धगिरि मंडन पाय नमीजे सिद्धगिरि मंडण पाय नमीजे रिसहेसर जिनराय, नाभिभूप मरुदेवा नंदन जगत जंतु सुखदाय रे! हो स्वामी मोरा! तुम दरिशन सुखकार, तुम दरिशनथी समकित प्रगटे निजगुण ऋद्धि उदार रे.१ भारे कर्मी पण ते तार्या, भवजलिथी उगार्या; मुज सरीखा किम नवि संभार्या, चित्तथी केम उतार्या. २ पापी अधम पण तुम सुपसाये, पाम्या गुण समुदाय; अमे पण तरशुं शरण स्वीकारी, म्हेर करो महाराय रे. ३ तरण तारण जगमांहि कहावो, हुं धुं सेवक तारो; अवर आगल जईने केम याचुं, महिमा अधिक तुमारो रे.४ मुज अवगुण सामुं न जुओ, बिरुद तुमारु संभालो; पतित पावन तुमे नाम धरावो, मोह विडंबना टालो रे. ५ पूर्व नव्वाणुं वार पधारी, पवित्र कर्यु शुभ धाम; साधु अनंता कर्म खपावी, पहोंच्या शिवपुर ठाम रे. ६ श्री नय विजय विबुध पद सेवक, वाचक जश कहे साचु; विमलाचल भूषण स्तवनाथी, आनंद रसभर माचुं. ७ १६. प्रीतलडी बंधाणी रे विमलगिरीन्द शुं... प्रीतलडी बंधाणी रे विमल गिरिंदशु, निशपति निरखी हरखे जेम चकोर जो; कमला गौरी हरिहरथी राची रहे, जलधर जोई मस्त बने वनमोर जो. ५८ For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदीश्वर अलवेसर आवी समोसर्या, पुन्य भूमिमा पूर्व नव्वाणुं वार जो; अरिहंत श्री अजितेश्वर शांतिनाथजी, रह्या चोमासु जाणी शिवपुर द्वार जो. सूर्यवंशी सोमवंशी यादव वंशना, नृप गण पाम्या निर्मल पद निर्वाण जो; महा मुनीश्वर ईश्वर पद पूरण वर्या, शिवपुर श्रेणी आरोहण सोपान जो. त्रण भुवनमा तीरथ तुज सम को नहि, एम प्रकाशे सीमंधर महाराज जो; तारा शरणे आव्यो हुँ उतावलो, तार तार ओ गिरिवर गरीब निवाज जो. हुं अपराधी पापी मिथ्याडंबरो, फोगट भूल्यो भवमां तुम विना एक जो; हवे न मूकुं मोहन मुद्रा ताहरी, ए मुज मोटी वंशनालनी टेक जो. पल्लो पकडी बेठो बापजी लांघवा, आप आप तुं भक्त वत्सल भगवान जो; अंते पण देवू रे पडशे साहिबा, शी करवी हवे खाली खेचताण जो? मल निक्षेपने आवरण त्रिक दूरे करी, छेल छबीला आव्यो आप हजूर जो; आत्म समर्पण कीर्छ अति उमंगथी, ५९ For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेम पयोनिधि प्रगट्यो अभिनव पूर जो. श्री सिद्धाचल गिरिवर मंडन शेखरा, परमकृपालु पालक प्राण आधार जो; विछोडशो नहि क्यारे प्यारा प्राणथी, रसिया करजो धर्मरत्न विस्तार जो. १७. तीरथनी आशातना नवि करीए ... तीरथनी आशातना नवि करीए, हांरे नवि करीए रे. (२) धुपध्यान घटा अनुसरिये, हांरे तरीये संसार. आशातना करता थका धन हाणी, १ हांरे भूख्याने न मले अन्न पाणी (२). काया वली रोगे भराणी आ भवमां एम. परभव परमाधामीने वश पडशे, वैतरणी नदीमां बलशे; अग्निने कुंडे बलशे नही शरणुं कोई . ३ पूर्व नव्वाणुं नाथजी ईहां आव्या, साधु केई मोक्षे सिधाव्या; श्रावक पण सिद्धि सुहाव्या जपतां गिरि नाम. अष्टोत्तर शतकुट ए गिरि ठामे सौंदर्य यशोधर नामे प्रीति मंडण कामुक कामे वली सहजानंद. ५ महेन्द्र ध्वज सरवारथ सिद्ध कहीए प्रियंकर नाम ए लहीए गिरि शीतल छांय रहीये नित्य धरीए ध्यान. ६ पूजा नव्वाणुं प्रकारनी एम कीजे नरभवनो लाहो लीजे वली दान सुपात्रे दीजे चढते परिणाम. सेवनफल संसारमां करे लीला रमणी धन सुंदर बाला ६० For Private and Personal Use Only ४ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री शुभवीर विनोद विशाला मंगल शिवमाला. १८. सिद्धाचल शिखरे दीवो रे... सिद्धाचल शिखरे दीवो रे, आदीश्वर अलबेलो रे, जाणे दर्शन अमृत पीवो रे, आदीश्वर अलबेलो रे, शिव सोमयशानी लारे रे, आ. तेर कोडी मुनि परिवारे रे. आ. करे शिवसुंदरीनुं आणुं रे, आ. नारदजी लाख एकाणुं रे.आ. वसुदेवनी नारी प्रसिद्धि रे, आ. पात्रीस हजार ते सिद्धि रे.आ. लाख बावनने एक कोडी रे, आ. पंचावन सहसने जोडी रे.आ. सातसे सत्योतेर साधु रे, आ. प्रभु शांति चोमासु कीधुं रे.आ. तव ए वरिया शिवनारी रे, आ. चौद सहसमुनि दमितारी रे. आ. प्रद्युम्न प्रिया अचंभी रे, आ. चौआलीससे वैदर्भी रे. आ. थावच्चा पुत्र हजारे रे, आ. शुक परिव्राजक ए धारे रे.आ. सेलग पणसय विख्याते रे, आ. सुभद्र मुनि सय साते रे.आ. भव तरीया तेणे भवतारण रे, आ. राजचंद्र महोदय रे.आ. सुरकांत अचल अभिनंदो रे, आ. सुमति श्रेष्ठा भयकंदो रे.आ. ईहां मोक्ष गया केई कोटि रे, आ. अमने पण आशा मोटी रे. आ. श्रद्धा संवेगे भरियो रे, आ. में मोटो दरियो तरियो रे. आ. श्रद्धा विण कुण ईहां आवे रे, आ. लघु जलमां केम तराय रे. आ. ६१ For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तिणे हाथ हवे प्रभु झालो रे, आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुभवीरने हईडे वहालो रे. आ. १९. विमलाचल नितु वंदीए... विमलाचल नितु वंदीए, कीजे एहनी सेवा, मानुं हाथ ए धर्मनो, शिवतरु फल लेवा. उज्ज्वल जिन गृह मंडली, तिहां दीपे उत्तंगा, मानुं हिमगिरि विभ्रमे, आई अंबर गंगा. कोई अनेरुं जग नहि, ए तीरथ तोले, एम श्री मुख हरि आगले, श्री सीमंधर बोले. जे सघला तीरथ कह्यां, यात्रा फल कहीए, तेहथी ए गिरि भेटतां, शत गुणुं फल लहीए. जन्म सफल होय तेहनो, जे ए गरि वंदे, सुजश विजय संपद लहे, ते नर चिर नंदे. २०. बापलडां रे पातिकडा... (राग - मेरा जीवन) बापलडां रे पातिकडां, तमे शुं करशो हवे रहीने रे, श्री सिद्धाचल नयणे निरख्यो, २ For Private and Personal Use Only ३ ४ ५ दूर जाओ तमे वहीने रे. काल अनादि लगे तुम साथे, प्रीत करी निरवहीने रे, आज थकी प्रभु चरणे रहेवुं, एम शिखवीयुं मनने रे. दुःषमकाले ईण भरते, मुक्ति नहीं संघयणने रे, पण तुम भक्ति मुक्तिने खेंचे, चमक उपल जेम लोहने रे. ३ ६२ २ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ शुद्ध सुवासन चूरण आप्युं, मिथ्या पंक शोधनने रे, आतमभाव थयो मुज निर्मल, आनंदमय तुम भजने रे. अखय निधान तुज समकित पामी, कुण वंछे चल धनने रे, शांत सुधारस नयन कचोले, सींचो सेवक तनने रे. ५ बाह्य अभ्यंतर शत्रु केरो, भय न होवे मुजने रे, सेवक सुखीयो सुजश विलासि, ते महिमा प्रभु तुजने रे. ६ नाममंत्र तुमारो साध्यो, ते थयो जगमोहनने रे, तुज मुखमुद्रा निरखी हरखुं, जिम चातक जलधरने रे. ७ तुजविण अवरने देव करीने, नवि चाहु फरी फरीने रे ज्ञानविमल कहे भवजल तारो, सेवक बाह्य ग्रहीने रे. २१. शेत्रुंजा गढना वासी रे... शेत्रुंजा गढना वासी रे, मुजरो मानजो रे, सेवकनी सुणी वातो रे, दिलमां धारजो रे, प्रभु में दीठो तुम देदार, आज मने उपन्यो हरख अपार, साहिबानी सेवा रे, भव दुःख भांगशे रे, एक अरज अमारी रे, दिलमां धारज्यो रे. चोराशी लाख फेरा रे, दूर निवारज्यो रे, प्रभु मने दुर्गति पडतो राख, दरिशन वहेलुं रे दाख दोलत सवाई रे, सोरठ देशनी रे, बलिहारी हुं जाउं रे, प्रभु तारा वेशनी रे, प्रभु तारुं रूडुं दीतुं रूप, मोह्या सुरनर वृन्द ने भूप. तीरथ को नहि रे, शत्रुंजय सारीखुं रे, ६३ For Private and Personal Use Only ८ २ ३ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन पेखीने कीधु में पारखं रे, ऋषभने जोई जोई हरखे जेह त्रिभुवन लीला पामे तेह. ४ भवोभव मांगु रे, प्रभु ताहरी सेवना रे, भावठ न भांजे रे, जगमा जे विना रे, प्रभु मारा पूरो मनना कोड, ईम कहे उदयरत्न कर जोड.५ २२. सिद्धाचलनो वासी प्यारो... सिद्धाचलनो वासी प्यारो लागे मोरा राजींदा, विमलाचलनो वासी प्यारो लागे मोरा राजींदा, ईण रे डुंगरीयामां झीणी झीणी कोरणी, उपर शिखर बिराजे मोरा राजींदा... काने कुंडल माथे मुगट बिराजे, बाहे बाजुबंध छाजे मोरा राजींदा. चौमुख बिंब अनुपम छाजे, अद्भूत दीठे दुःख भांजे मोरा राजींदा. चुवा चुवा चंदन और अगरजा, केसर तिलक बिराजे मोरा राजींदा. ईण गिरि साधु अनंता सिध्या, कहेता पार न आवे मोरा राजींदा. ज्ञानविमल प्रभु एणी पेरे बोले, आ भव पार उतारो मोरा राजींदा. २३. मनना मनोरथ सवि फल्या ए... मनना मनोरथ सवि फल्या, ए सिध्या वांछित काज, पूजो गिरिराजने रे, ६४ For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राये ए गिरि शाश्वतो ए, भवजल तरवा जहाज. मणि माणेक मुक्ताफले ए, रजत कनकनां फूल. पूजो० केसर चंदन घसी घणां ए, बीजी वस्तु अमूल. पूजो. २ छठे अंगे दाखीओ ए, आठमे अंगे लाख. पूजो० स्थिरावलि पयन्ने वरणव्यो ए, ए आगमनी साख. पूजो. ३ विमल करे भवि लोकने रे, तेणे विमलाचल जाण. पूजो० शुक राजाथी विस्तों ए, शत्रुजय गुणखाण. पूजो..४ पुंडरिक गणधरथी थयो ए, पुंडरिकगिरि गुणधाम. पूजो० सुरनर कृत एम जाणी ए, ए उत्तम एकवीश नाम.पूजो. ५ ए गिरिवरना गुण घणाए, नाणीए नवि कहेवाय. पूजो० जाणे पण कही नवि शके, ए मूक गुडने न्याय. पूजो. ६ गिरिवर फरसन नवि को ए, ते रह्यो गरभावास. पूजो० गमन दर्शन फरशन कोए, पूरे मननी आश. पूजो. ७ आज महोदय मे लह्यो, ए पाम्यो प्रमोद रसाल. पूजो० मणि उद्योत गिरि सेवतां, ए घेर घेर मंगल माल. पूजो.८ २४. सिद्धाचलना वासी सिद्धाचलना वासी, विमलाचलना वासी, जिनजी प्यारा आदिनाथने वंदन हमारा; प्रभुजी- मुखडु मलके, नयनोमांथी वरसे, अमी रसधारा आदिनाथ ने वंदन हमारा. जिनजी. १ प्रभुजीनुं मुखडुं छे मनक मिलाकर, दिलमें भक्तिकी ज्योत जलाकर; For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भजीले प्रभुने भावे, दुर्गति कदी न आवे. जिनजी. २ भमीने लाख चोरासी हुं आव्यो, पुण्ये दरिसन तुमारा हुं पायो; धन्य दिवस मारो, भवना फेरा टालो. जिनजी. ३ अमे तो मायाना विलासी, तुमे तो मुक्ति पुरीना वासी; कर्मबंधन कापो, मोक्ष सुख आपो. जिनजी.४ अरजी उरमा धरजो अमारी, अमने आशा छ प्रभुजी तमारी; कहे हर्ष हवे, साचा स्वामी तमे, पूजन करीए अमे. जिनजी. ५ २५. ऋषभजिन! तुं त्रिभुवन सुखकार... तुं त्रिभुवन सुखकार, ऋषभजिन! तुं त्रिभुवन सुखकार. शत्रुजयगिरि शणगार, ऋ० भूषण भरतमोझार, ऋo आदि पुरुष अवतार, ऋ० तुम चरणे पावन कर्यु रे, पुर्व नव्वाणु वार; तेणे तीरथ समरथ थयुं रे, करवा जगत उद्धार. अवर ते गिरि पर्वते वडा रे, एह थयो गिरिराज सिद्ध अनंता ईहां थया रे, वली आव्या अवर जिनराज ऋ० सुंदरता सुरसद नथी रे, अधिक जिहां प्रासाद; बिंब अनेके शोभतो रे, दीठे टले विखवाद भेटण काजे उमट्या रे, आवे सत्व भवि लोक; ऋ० ऋo For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलिमल तस अडके नहि रे, ज्युं सोवनधन रोक ऋ० ज्ञानविमल प्रभु जस शिरे रे, तस खसे भव परवाह; करतलगत शिवसुंदरी रे, मले सहज उच्छाह. ऋ० २६. विमलाचल विमला पाणी... विमलाचल विमला पाणी, शीतल तरु छाया ठराणी; रस वेधक कंचन खाणी, कहे ईन्द्र सुणो ईन्द्राणी. सनेही संत ए गिरि सेवो, चौद क्षेत्रमा तीरथ न एवो, सनेही०१ छहरी पाली उल्लसी, छट्ठ अट्ठम काया कसीए; मोहमल्लनी सामा धसीए, विमलाचल वेगे वसीए, सनेही०२ अन्य स्थाने कर्म जे करीए, ते हिमगिरि हेठा हरीए: पाछल प्रदक्षिणा फरीए, भवजलनिधि हेला तरीए, सनेही०३ शिव मंदिर चढवा काजे, सोपाननी पंक्ति बिराजे चढतां समकिती छाजे, दुरभव्य अभव्य ते लाजे, सनेही०४ पांडव पमुहा केई संता, आदीश्वर ध्यान धरंता; परमातम भाव भजंता, सिद्धाचल सिध्या अनंता, सनेही०५ षट्मासी ध्यान धरावे, शुक राजा ते राज्यने पावे; बहिरंतर शत्रु हरावे, ६७ For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुजय नाम धरावे, सनेही०६ प्रणिधाने भजो गिरि साचो, तीर्थंकर नाम निकाचो; मोहरायने लागे तमाचो, शुभ वीर विमलगिरि जाओ, सनेही०७ २७. विमलाचल गिरि भेटो... विमलाचल गिरि भेटो भवियण भावशू, जेथी भवोभव पातक दुर पलाय जो; । निकाचित बांध्या जे कर्म ज आकरां, गिरि भेटता क्षणमा सवि क्षय थाय जो. विमला०१ साधु अनंता ईण गिरि पर सिद्धि वर्या, राम भरत त्रण कोडी मुनि परिवार जो; पांचसे साथे शीलंगे शिवपद लीधुं, पांडव पांचे पाम्या भवनो पार जो. विमला० २ नमि विनमि आदि बहु विद्याधरा, वली थावच्चा अईधुत्ता अणगार जो; शुकराज वली सुख ते गिरि पर पामीया, बाह्य अभ्यंतर शत्रु कीधा छार जो. विमला०३ युगला धर्म निवारण ईण गिरि आवीया, ऋषभ जिणंदजी पुरव नव्वाणुं वार जो; कांकरे कांकरे साधु अनंता सिद्धिया, माटे निशदिन सिद्धाचल मन धारजो. विमला०४ गिरि पागे चढता तन मन उल्लसे, ६८ For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव संचित सवि दुष्कृत दुर पलाय जो; सूरजकुंडे नाहि निर्मल थाईये. जिनवर सेवी आतम पावन थाय जो. विमला० ५ जात्रा नवाणुं करीये तन मन लग्नथी, धरीये शील समता वली व्रत पच्चक्खाण जो; गणीए गणणुं दान सुपात्रे दीजीए, द्वेष तजी धरो शत्रु मित्र समान जो. विमला०६ ए गिरि भेटे भव त्रीजे शीवसुख लहे, पांचमे भव तो भवियण मुक्ति वराय जो; सूरि धनेश्वर शुभ ध्याने ईम भाखीये, पापी अभवीने गिरि नवि फरसाय जो. विमला० ७ २८. गिरिवर दरशन विरला पावे... गिरिवर दरिशण विरला पावे, पूरव संचित कर्म खपावे; गि०१ ऋषभ जिनेश्वर पूजा रचावे, नव नव नामे गिरिगुण गावे; सहस्रकमल ने मुक्ति निलय गिरि सिद्धाचल शतकूट कहावे; गि०२ ढंक कदम्बने कोडी निवासो, लोहित तालध्वज गुण गावे, गि०३ ढंकादिक पंच ढूंक सजीवन, सुरनर मुनि मली नाम धरावे. गि०४ For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रयण खाण जडीबुट्टी गुफाओ, रस कुंपिका गुरु ईहां बतलावे. पण गुणवंता प्राणी पावे; पुन्य कारण प्रभु पूजा रचावे. दस कोटी श्रावकने जमाडे, जैन तीरथयात्रा करी आवे. तेथी एक मुनि दान दीयंता, लाभ घणो सिद्धाचल थावे. चंद्रशेखर निज भगिनी भोगी, ते पण ए गिरि मोक्ष जावे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार हत्यारा नर परदारा, देव गुरु द्रव्य चोरणहारा. चैत्र- कार्तिकी पूनम यात्रा, जप-तप-ध्यानथी पाप जलावे. ऋषभसेन जिन आदि असंख्या, तीर्थकर मुक्तिसुख पावे. शिववधू वरवा मंडप ए गिरि; श्री शुभवीर वचन रस गावे. गिरिवर. २९. चालो सोरठ देश ( राग : तप करीए समता राखी घटमां) चालो सोरठ देश दिखावो रसीया (२) सोरठ देशमां दोय मोटा तीरथ (२) गढ गिरनार शत्रुंजय गिरिया. ७० For Private and Personal Use Only गि० ५ गि० ६ गि० ७ गि० ८ गि० ९ गि० १० गि० ११ गि० १२ गि० १३ चालो० १ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रैवत गिरिपर उडुपतिकेरा (२) दिक्षा केवल ज्ञान रसीया. राजुलनार नेमीश्वर साथे (२) संजम लई भवोदधितरीया. शत्रुंजय उपर ऋषभ जिनेश्वर ( २ ) पूर्व नव्वाणुं वार समोसरीया. तिहां अणगार अनंत अपार (२) अणसण ग्रही शिवसुख वरीया. नाभीरायाने करु जुहार (२) पावन करु सब मोह परीया. हीणा अवतार न होत लगीरा ज्ञान विमल प्रभु सीर धरीया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेठ आवे हाथी घोडे, राजा आवे चडे पलाणे; हुं आवुं पगपाले, दादाने दरबार... ७१ चालो० २ चालो० ३ ३०. दादा आदीश्वरजी दादा आदीश्वरजी दूरथी आव्यो, दादा दरिसन द्यो, कोई आवे हाथी घोडे, कोई आवे चडे पलाणे; कोई आवे पगपाले, दादाने दरबार... कोई मूके सोना रूपा, कोई मूके महोर; कोई मूके चपटी चोखा, दादाने दरबार... चालो० ४ चालो० ५ हां हां दादाने दरबार. १ चालो० ६ चालो० ७ For Private and Personal Use Only हां हां दादाने दरबार. २ हां हां दादाने दरबार. ३ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेठ मूके सोना रुपा, राजा मूके महोर; हुं मूकुं चपटी चोखा, दादाने दरबार... हां हां दादाने दरबार. ४ कोई मांगे कंचनकाया, कोई मांगे आंख; कोई मांगे चरणोनी सेवा, दादाने दरबार... हां हां दादाने दरबार. ५ पांगलो मांगे कंचनकाया, आंधलो मांगे आंख; हुं मांगुं चरणोनी सेवा, दादाने दरबार... हां हां दादाने दरबार. ६ हीरविजय गुरु हीरलो ने, वीर विजय गुण गाय; शत्रुजयनां दर्शन करता, आनंद अपार... हां हां आनंद अपार.७ ३१. प्रथम जिनेश्वर प्रणमिए प्रथम जिनेश्वर प्रणमीये, जास सुगंधी रे काय; कल्पवृक्ष परे तास इंद्राणी नयन जे, भृगपरे लपटाय. १ रोग उरग तुज नवि नडे अमृत जेह आस्वाद; तेहथी प्रतिहत तेह मानुं कोई नवि करे, जगमां तुमशुं रे वाद. २ वगर धोई तुज निर्मली, काया कंचन वान; नहि प्रस्वेद लगार तारे तुं तेहने, जे धरे ताहरु ध्यान, ३ रागगयो तुज मन थकी, तेहमां चित्र न कोई, रुधिर आमिषथी राग गयो तुज जन्मथी, दूध सहोदर होय. ४ ७२ For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्वासोश्वास कमलसमो, तुज लोकोत्तर वात. देखे न आहार निहार चरम चक्षु धणी, एहवा तुज अवदात. ५ चार अतिशय मूलथी, ओगणीश देवना कीध, कर्म खप्याथी अग्यार, चोत्रीश एम अतिशया, समवायांगे प्रसिद्ध. ६ जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग, पद्म विजय कहे एह समय प्रभुपालजो, जिम थाउं अक्षय अभंग. ७ ३२. जग जीवन जग वालहो जग जीवन जगवालहो, मरुदेवीनो नंद लाल रे; मुख दीठे सुख उपजे, दरिशन अतिहि आनंद लाल रे०१ आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशिसम भाल लाल रे; वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिहि रसाल लाल रे.जग०२ लक्षण अंगे विराजतां, अडहिय सहस उदार लाल रे; रेखा कर चरणादिके, अभ्यंतर नहि पार लाल रे. जग० ३ इंद्र चंद्र रवि गिरि तणां, गुण लई घडीयुं अंग लाल रे; भाग्य किंहा थकी आवियु, अचरिज एह उत्तंग लाल रे. ४ गुण सघला अंगीकर्या, दूर कर्या सवि दोष लाल रे; वाचक यशविजये थुण्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे.जग० ५ ३३. में भेट्या नाभिकुमार में भेट्या नाभिकुमार, में भेट्या मरुदेवानंद ७३ For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ मेरी अखीयां सफल भये, मेरे नयना सफल भये. तीरथ जगमा छे घणां रे, तेहमां एह छे सार शत्रुजय समो तीरथ नहीं रे, तुरत करत भवपार, युगलाधर्म निवारीयो रे, प्रभु त्रण भुवननो सार सोवनवी देह छे रे, ऋषभ लंछन मनोहार. सोरठ मंडण तुं धणी रे, सकल कर्म करे दूर केवल लक्ष्मी पामवा रे, वांछीत लीलानूर. सूरत नीरखी ताहरी रे, प्रभु आनंद अधिक अपार उज्वल गिरिराज प्रभु रे, आवागमन निवार. गिरिवर फरस्यो भावशुं रे, सफल कीधो अवतार श्री जिनहरख पसायथी रे, संघ सदा सुखकार. माघ मास सोहामणो रे, सुद बीज ने रविवार सन अढार बासठ मा रे, यात्रा करी सुखकार. घणा दिवसनी चाहना रे प्रभु, देखवा तुम देदार रत्नसुंदर पाठक कहे रे, वो जय जयकार. . ३४. मोरा आतमराम मोरा आतमराम, कुण दिन शेजेजे जाशं; शेजूंजा केरी पाजे चढंता, ऋषभतणा गुण गाशुं. ए गिरिवरनो महिमा सुणीने, हियडे समकित वास्यु; जिनवर भावसहित पूजीने, भवे भवे निर्मल थाशं. मन वचन काय निर्मल करीने, सूरजकुंडे नहाशुं; मरुदेवीनो नंदन नीरखी, पातिक दूरे पलाशुं. इणगिरि सिद्ध अनंत हुआ, ध्यान सदा तस ध्याशु; १ (७४ For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सायं. ५ सकल जनममां ए मानवभव, लेखे करीय सराशुं. ४ सुरवरपूजित पदकज रज, मिलवट तिलक चढावशुं; मनमा हरखी डुंगर फरसी, हैडे हरखित था|. समकितधारी स्वामी साथे, सद्गुरु समकित लाशें, छ'री पाली, पाप पखाली, दुर्गति दूरे पलाशें; श्री जिननामी समकित पामी, लेखे त्यारे गणाशें, ज्ञानविमल कहे धन धन ते दिन, परमानंद पद पाशुं. ७ ३५. गिरिवरियानी टोचे रे गिरिवरियानी टोचे रे, जगगुरु जई वस्या, ललचावो लाखोने लेखे न कोई रे; आवी तलाटीने तलीये टलवलुं एकलो, सेवक पर जरा महेर करीने देखो रे, हाम-धाम ने दाम नथी हुं मागतो, मांगु मांगण थईने चरण हजुर जो; काया निर्मल छे ते प्रभुजी जाणजो, आप पधारो दिलडे दिलडां पूरजो. जन्म लीधो तें दुःखियानां दुःख टालवा, ते टालीने सुखिया कीधा नाथ जो; तुम बालकनी पेरे रे हुं पण बालुडो, नमि-विनमि ज्युं धरजो मारो हाथ जो. जेम तेम करी पण आ अवसर आवी मल्यो, स्वामी-सेवक सामासामी थाय जो; ७५ For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वखत जवानो भय छें मुजने आकरो, दर्शन द्यो तो लाखेणो कहेवाय जो. पंचमे आरे प्रभुजी मलवां दोहिलां, तो पण मलीया भाग्यतणो नहीं पार जो; उवेखो नहीं थोडा माटे साहिबा, एक अरजने मानी लेजो हजार जो. सुरतरु नाम धरावे पण ते हुं शुं करूं, साचो सुरतरु तुं छे दीनदयाल जो; मनगमतुं दई दान ने भवभय वारजो, साचा थाशो षट्काय प्रतिपाल जो. करगरुं तो पण करुणा जो नहीं लावशो, लंछन लागे संघपति नाम धरावी रे; पाये वलग्या ते सविने सरखा कर्या, धीरज आपो अमने भक्त ठरावी रे, नाभिनरेश्वर नंदन आशा पूरजो, रहेजो हृदयमां सदा करीने वास जो; कांतिविजयनो अंतिम पण अभिराम छे, सदा सोहागण मुक्ति थाय विलास जो. ३६. ऋषभ जिणंदने वंदीए रे ४ For Private and Personal Use Only ५ ६ ७ ऋषभ जिणंदने वंदीए रे, सिद्धाचल शणगार सलूणा; मरुदेवाना नंदने रे, भेटता परमानंद सलूणा... जिम जिम प्रभु गुण गाईए रे, तिम तिम सुख अपार सलूणा. १ ७६ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अविनाशी अरिहंतजी रे, विमलाचल शणगार सलूणा; सुर-नर जस सेवा करे ए; पामता सुख अपार सलूणा. २ दीक्षा लई प्रभु आदर्यो रे, वरसीतप गुणखाण सलूणा; अंतराय उच्छेदीने रे, पाम्या केवलज्ञान सलूणा. ३ पूर्व नवाणु आवीया रे, कंचनगिरि पर नाथ सलूणा; तेहथी ए गिरिराजनो रे, महिमा थयो विख्यात सलूणा. ४ विमलाचल गिरि मंडणो रे, ऋषभ जिणंद दयाल सलूणा; रायणतले प्रभु शोभता रे, चरण-कमलनी जोड सलूणा. ५ तरण-तारण तुमे देव छो रे, तारजो मुजने देव सलूणा; शत्रुजय गिरि भेटता रे, पाप सवि पलाय सलूणा. ६ भवोभव तुम पद सेवना रे, आपजो दीनदयाल सलूणा; रंगविजय कहे प्रेमशुं रे, शरणागत प्रतिपाल सलूणा. ७ ३७. भवजल पार उतार | (राग : रंगाई जाने रंगमा) भवजल पार उतार, ऋषभ जिन भवजल पार उतार मुज पापीने तार, ऋषभ जिन भवजल पार उतार, श्री सिद्धाजल तीर्थ के राजा, तीन भुवनमे सार पूर्वनवाणुं वार शत्रुजय, आव्या श्री नाभिकुमार. आज अमारे सुरतरूं प्रगट्यो, दीठो तुम देदार भवोभव भटकी शरणे आव्यो, राखो लाज अपार. भरतादिक असंख्यने तार्या, तिम प्रभु मुजने तार माता मरुदेवाने दीधुं, केवलज्ञान उदार. ७७ For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षायिक समकित मुजने आपो, एही ज परम आधार दीनदयालु दरिशन दिजे पाय पडु सो वार. सेवक समजीने अरज सुणो प्रभु विनतडी अवधार क्षमाविजयना बाल सिद्धिना, आवागमन निवार. ३८. प्रभु ऋषभस्वामी ( राग : माढ) प्रभु ऋषभस्वामी, अंतरयामी मोक्षना गामी वंदु वारंवार ... प्रभु हाथ ज जोडी. मान ज मोडी, काया संकोडी वंदु वारंवार ... ..१ सिद्धाचल पर आप बिराजो, प्रथम ऋषभ जिणंद रिपु अरिष्टनो क्षय करीने कीधा कर्म निकंद रे. विनीता नगरीने विशे रे जन्म लीयो भगवान नरक निगोदे हुं घणुं भमीयो काल तणुं नहीं मान रे. शशीनी पेरे शीतलकारी नाभिराया तुज तात सहस अष्टोत्तर लक्षण तमारा मरूदेवा भली मात रे. कषाय दंडी बंधन छंडी आप थया छो दूर शिवनारीना प्रथम स्वामी आव्यो छं आप हजूर रे. कमल विजय गुरु पसाये लाभ विजय गुण गाय श्री विमलाचल वासीने नीरखी हैडे हर्ष न माय रे. ३९. भवि आवोने भवि आवोने (२) शेत्रुंजय भेटीये श्री आदीश्वर जिनराय ७८ ६ For Private and Personal Use Only ३ ४ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य ए गिरि (२) नयणे नीरखता, सवि पातिक दूर पलाय गिरि उपर आदि जिणंदनी सोहे मूरति मोहनवेल प्रह उठीने भावे पूजता, नित्य वाघे घरे रंगरेल माझं मन मोह्यु ईण गिरिवरे, जाणुं नितनित कीजे जात्र वर सूरजकुंडमां नाहीने, निज निर्मल कीजे गात्र... भले भावे आदि जिन पूजीया, मुज फलिया मनोरथ आज मुज भवोभव ए गिरिवर तणुं दरिशन होजो महाराज महामहिमावंत मनोहरु, रूडो शत्रुजय गिरिराय जे भेटे ते शिवसुख लहे, एम केशरविमल गुणगाय... ४०. भरतनी पाटे भूपति रे भरतनी पाटे भूपति रे, सिद्धि वर्या एणे ठाम सलुणा, असंख्याता तिहां लगे रे, हुआ अजित जिनराय.सलुणा. १ जेम जेम ए गिरि भेटीए रे, तेम तेम पाप पलाय स. अजित जिनेश्वर साहिबो रे, चोमासुं रही जाय. सलुणा. २ सागरमुनि एक कोडीशुं रे, तोड्या कर्मना पास स. पांचकोडी मुनिराज शुं रे भरत लह्या शिववास. सलुणा. ३ आदीश्वर उपकारथी रे, सत्तर कोडी साथ स. अजितसेन सिद्धाचले रे, झाल्यो शिववहु हाथ. सलुणा. ४ अजितनाथ मुनि चैत्रनी रे, पूनमे दश हजार. स. आदित्ययशा मुक्ति वर्या रे, एक लाख अणगार. सलुणा. ५ अजरामर क्षेमकरू रे, अमरकेतु गुणकंद स. सहसपत्र शिवंकरु रे, कर्मक्षय तमोकंद. सलुणा. ६ राजराजेश्वर ए गिरि रे, नाम छ मंगलरूप स. ७९ For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गिरिवर रज तरूमंजरी रे, शीश चढावे भूप. सलुणा. ७ देवयुगादि पूजतां रे, कर्म होय चकचूर स. श्री शुभवीरने साहिबो रे, रहेजो हईडा हजुर. सलुणा. ८ ४१. हुं तो पायो प्रभुना पाय रे... हुं तो पायो प्रभुना पाय रे, आण न लोपु रे (२) प्रभु सांभली तारा वेण रे, कानमा रोपुं रे. (२). १ जन्म जन्मना फेरा फरता, (में तो) ध्याया न देवाधिदेवा रे, कुगुरु कुशास्त्र तणा उपदेशे, कीधी नहि प्रभु सेवा रे. (२) कनक कथीरनो भेद न जाण्यो, काच मणि सम तोल्या रे विवेकतणी में वात न जाणी विष अमृत करी घोल्या रे... हुं तो. ३ समकितनो लवलेश न समज्यो, (हुं तो) मिथ्यामतमां खूच्यो रे, मायातणा पंथे परिवरीयो, विषये करी विलुध्यो...रे ४ कोई पूरवना पुन्य संयोगे, आरज कुल अवतर्यो रे, आदीश्वर साहिब मुज मलीयो, तारक भवजल तरीयो रे.५ एटला दिन में वात न जाणी, तुजथी रहीयो अलगो रे, उदयरतन कहे आज थकी हुं, तारे पाये वलग्यो रे. हुं तो पायो.६ ४२. जिणंदा प्यारा... जिणंदा प्यारा, मुणिंदा प्यारा, देखो रे जिणंदा भगवान, देखो रे जिणंदा प्यारा... सुंदर रूप स्वरूप विराजे (२), जगनायक भगवान देखो रे...१ ८० For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दरस दरस निरख्यो जिनजीको (२), दायक चतुर सुजाण देखो रे...२ शोक संताप मिट्यो अब मेरो (२), पायो अविचल भाण देखो रे...३ सफल भई मेरी आजकी घडीयां (२) सफल भये नैनुं प्राण देखो रे...४ दरिसण देखत मिट्यो दुःख मेरो (२) आनंदधन अवतार. देखो रे...५ ४३. रूडा आदीश्वर विना... .. रूडा आदीश्वर विना मुज दिलडा सुना कोण तारे, मुज पापीने कोण उगारे. मारूं हैयुं प्रीतथी डोले, मुज अंतर वेदनाथी बोले; दुःखथी करूं हुं पोकार, तेथी आव्यो तारे द्वार. मुज जीवनमां वहेती नदीओ, मोह ममतानी जालनी कडीओ; गावे ध्यावे तुजने, तारो सेवक पुकारे. मुज आव्या नयनोमां तारा मुज मनडामां तुज सितारा; दुःख भंजन मनोहारा, साचा तुमे तारणहारा. क्रोध काजलना कष्टोथी पीडायो, लोभे मुजने घणो सताव्यो; तारी ज्योतिने देखी, मारूं मनडुं ज पेखी. तारा वियोगे वहाणा ज वाया, ८१ For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वर्ष वित्या तारा विरहे हजारा; ठाम ठेकाणुं तारूं, क्यां जईने पूछें. सूर्यने पूछें तोये जवाब न मले, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवलख तारलीया त्यां बोले; एक अंतरमां वसनारा, प्यारा आदीश्वर. सुंदर तारूं छे पालिताणा धाम, प्राण समो तुज बालक तार; निशदिन देजे टकोरो, मुज पापना पतंगो. अंतरनी आशाए तुजने विनववा, ज्ञानविमलनी ज्योत प्रगटाववा; नेह नजरे निहालो, तारा सेवकने तारो. ८२ ४४. आनंदकी घडी आई... आनंद की घडी आई सखी री आज आनंद की घडी आई करके कृपा प्रभु दरिसण दीनो, भवकी पीड मीटाई, मोह निद्रासे जागृत करके, सत्य की सान सुनाई, हो... तन मन हर्ष न माई, सखी री. नित्यानित्य का भेद बताकर, मिथ्यादृष्टि हराई, सम्यग् ज्ञान की दिव्यप्रभाको, अंतर में प्रगटाई, हो... साध्य साधन दीखालाई सखी री. त्याग वैराग्य संयम के योगसे, निःस्पृह भाव जगाई, सर्वसंग परित्याग कराकर, अलख धून मचाई, हो... अपगत दुःख कहेलाई सखी री. ७ For Private and Personal Use Only १ ३ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ا م به अपूर्वकरण गुणस्थानक सुखकर, श्रेणी क्षपक मंडवाई, वेद तीनों का छेद कराकर, क्षीण मोही बनवाई, हो... जीवन मुक्ति दिलाई सखी री. भक्तवत्सल प्रभु करुणासागर, चरण शरण सुखदाई, जश कहे ध्यान प्रभु का ध्यावत, अजरअमर पद पाई, हो... द्वंद सकल मिट जाई सखी री. ४५. जब जिनराज कृपा करे... जब जिनराज कृपा करे, तव शिवसुख थावे, अक्षय अनोपम संपदा, नवनिधि घर आवे. ऐसी वस्तु न जगतमें, दिल शाता आवे, सुरतरू रवि शशि प्रमुख, जे जिन तेजे छीपावे. जन्म जरा मरण तणा, दुःख दुरित गमावे, मनवनमां जिन ध्याननो, जलधर वरसावे. चिंतामणि रयणे करी, कुण काग उडावे, तिम मूरख जिन छोडीने, कुण अवरकुं ध्यावे. ईली भ्रमरी संगथी, भमरी पद पावे, ज्ञानविमल प्रभु ध्यानथी, जिन उपमा आवे. ____४६. ऋषभ जिनराज मुज आज दिन... ऋषभ जिनराज, मुज, आज दिन अति भलो, गुणनीलो जेणे तुज नयण दीठो; दुःख टल्या, सुख मल्या, स्वामी तुज निरखतां, सुकृत संचय हुओ पाप नीठो. ऋषभ.१ سه » تم ८3 For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पशाखी फल्यो, कामघट मुझ मल्यो, आंगणे अमीयनो मेह वुठ्यो मुज महीराण मही भाण तुज दर्शने, क्षय गयो कुमति अंधार जूठो. कवण नर कनक मणि छोडी तृण संग्रहे, कवण कुंजर तजी तरह लेवे; कवण बेसे तजी कल्पतरू बावले, तुज तजी अवर सुर कोण सेवे. एक मुज टेक सुविवेक साहिब सदा, तुज विना देव दुजो न ईहुँ; तुज वचन राग सुखसागरे झीलतो, कर्मभर भ्रम थकी हु न बीउं. कोडी छे दास विभु ताहरे भलभला, माहरे देव तुं एक प्यारो; पतितपावन समो, जगत उद्धारक, महेर करी मोहे भवजलधि तारो. मुक्तिथी अधिक तुज भक्ति मुज मन वसी, जेहशुं सबल प्रतिबंध लागो, चमक पाषाण जिम लोहने खेंचशे, मुक्तिने सहज तुज भक्ति रागो. धन्य ते काय जेणे पाय तुज प्रणमीया, तुज थुणे जेह धन्य धन्य जीहां, For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य ते हृदय जेणे तुज सदा समरतां, धन्य ते रात ने धन्य दिहां. गुण अनंता सदा तुज खजाने भर्या, एक गुण देत मुज शुं विमासो, रयण एक देत शी हाण रयणायरे, लोकनी आपदा जेणे नाशो. गंग सम रंग तुज कीर्ति कल्लोलीनी, रवि थकी अधिक तप तेज ताजो, नयविजय विबुध सेवक हुं आपनो, जश कहे अब मोहे भव निवाजो. ४७. विमलाचल जई वसीये... विमलाचल जई वसीये चालोने सखी! (२) आदि अनादि निगोदमां वसीयो पुन्य उदेय निकस्यो, चार गतिमां भ्रमण करीने लाख चोराशी फस्र्यो. देव नारकी तिर्यंच मांही वली दुःख सह्यां अहनिशीये, पुन्य प्रभावे मनुष्यभव पामी देश अजरामरमां वसीये. देव गुरूने जैन धर्म पामी आतम ऋद्धि उल्लसीये, श्री सिद्धाचल नयणे निहाली पाप तिमिरथी खसीये. काल अनादिना मोहरायनां मसी लईने मुख घसीये, श्री आदीश्वर चरण पसाये क्षमा खड्ग लई धसीये. मोहने मारी आतम तारी शिवपुरमां जई वसीये, जिन उत्तम पद रूप निहाली केवल लक्ष्मी फरसीये. ८५ For Private and Personal Use Only ८ ያ २ ३ ५ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८. ऋषभदेव हितकारी ऋषभदेव हितकारी, परमगुरु ऋषभदेव हितकारी, प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति व्रतधारी. वरसीदान देई तुम जगमें, ईलति ईति निवारी; ऐसी कांई करता नाही करूणा, साहिब बेर हमारी . २ मांगत नहि हम हाथी घोडे, धन कन कंचन नारी: दीयो मोहे चरण कमलकी सेवा, याही लागत मोहे प्यारी. ३ भव लीला वासित सुरडारे, तुम पर सबही उवारी, मे मेरो मन निश्चय कीनो, तुम आणा शिरधारी. ऐसो साहिब नही कोउ जगमें, यासु होय दिलधारी, दिल ही दलाल हे प्रेम के बीचे, तिहां हठ खेंचे गमारी. ५ तुमहो साहिब मे हुं बंदा, या मत दियो विसारी, श्री नयविजय विबुध सेवक के, तुम हो परम उपकारी. ६ ४९. ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा ४ ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा, तुम दरिशन होवे परमानंदा, अहनिश ध्याउं तुम दिदारा, महेर करीने करजो प्यारा. १ आपणनी पूठे जे वलग्या, किम सरश्ये एने कीधा अलगा, अलगा कीधा पर रहे वलग्या, मोर पीछ परे न होये उभगा . २ तुम पण अलगे थये केम सरशे, भक्ति भली आकर्षी लेशे, गगने उडे जेम दूर पडाई, दोरी बले हाथे रहे आई. ३ मुज मनडुं छे चपल स्वभावे, तोये अंतमूहर्त प्रस्तावे, तुं तो समय समय बदलावे, एम केम प्रीति निवाहो थावे . ४ ८६ For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते माटे तुं साहेब मारो, हुंछ सेवक भवोभव तारो, एह संबंधमां न होशो खामी, वाचक मान कहे शिरनामी.५ ५०. तुम दरिशन भले पायो... तुम दरिशन भले पायो, प्रथम जिन! तुम दरिशन भले पायो, नाभि नेरशर नंदन निरूपम, माता मरूदेवी जायो. १ आज अमीरस जलधर वुल्यो, मानुं गंगाजले नाह्यो, सुरतरू सुरमणि प्रमुख अनुपम, ते सवि आज में पायो. २ युगला धर्म निवारण तारण, जग जस मंडप छायो, प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंतर वैरी हटायो. ३ कुदेव कुगुरू-कुधर्मनी वासे, मिथ्यामतमें फसायो, में प्रभु आजथी निश्चय कीनो, सवि मिथ्यात्व गमायो. ४ बेरबेर करूं विनंती ईतनी, तुम सेवा रस पायो, ज्ञानविमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो. ५ ५१. जगचिंतामणि जगगुरू... (राग : जगजीवन जगवाल हो) जगचिंतामणि जगगुरू, जगतशरण आधार लाल रे; अढार कोडाकोडी सागरे, धर्म चलावण हार लाल रे. जग०१ अषाढ वदी चोथे प्रभु, स्वर्गथी लीए अवतार; चैतर वदी आठमदिने, जन्म्या जगदाधार लाल रे. जग०२ पांचशे धनुषनी देहडी, सोवन वरण शरीर लाल रे; ८७ For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैतर वदी आठम लीये, संजम महावडवीर लाल रे. जग०३ फागण वदी अग्यारशे, पाम्या पंचम नाण लाल रे; महावदि तेरसे शिव वर्या, योगनिरोध करी जाण लाल रे. जग०४ लाख चोराशी पूरवतणुं, जिनवर उत्तम आय लाल रे; पद्मविजय कहे प्रणमतां, वहेलुं शिवसुख थाय लाल रे. जग०५ ५२. मन मोहन तुं साहिबो... मनमोहन तुं साहिबो, मरूदेवी मात मल्हार लाल रे; नाभिराया कुलचंदलो, भरतादिक सुत सार लाल रे.मन० १ युगलाधर्म निवारणो तुं मोटो महाराज लाल रे; जगत दारिद्र्य चूरणो, सारो हवे मुज काज लाल रे.मन० २ ऋषभ लंछन सोहामणो, तुं जगनो आधार लाल रे; भवभय भीता प्राणीने, शिवसुखनो दातार लाल रे. मन० ३ अनंत गुण मणि आगरूं, तुं प्रभु दीनदयाल लाल रे; सेवक जननी विनति, जन्ममरण दुःख टाल लाल रे.मन० ४ सुरतरू चिंतामणी समो, जे तुम सेवे पाय लाल रे; ऋद्धि अनंति ते लहे, वली कीर्ति अनंती थाय लाल रे. मन०५ ५३. मैं सिद्धाचलकी भक्ति... मैं सिद्धाचलकी भक्ति रचा सुख पालुं रे, ८८ For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कर आदिनाथ को चंदन पाप पखालुं रे. जो मोर कहीं बन जाउं प्रभु आगे नृत्य रचाउं, रावण की तरह तिर्थकर पद की पूंजी एक कमालूं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवसुख पालुं रे. १ 1 जो कोयल में बन जाउं प्रभुजी के गाने गाउं, मैं दिनानाथ को रीझा रीझाकर अपना भाग्य जगालुं. शिवसुख. २ ईस गिरि का एक एक कंकर, हीरे से मोल है बढकर, कोई चतुर जहौरी अगर मिले तो सच्चा मोल करालुं. शिवसुख. ३ समता का द्वार बनालु, तप की दीवार चीनालुं, जहां रागद्वेष नहीं घुसने पाये ऐसा महल बनालुं. शत्रुंजय शत्रु विनासे, आत्मा की ज्योत प्रकाशे, मैं भावभक्ति के रंगमें अपना जीवनवस्त्र रंगालुं. ५४. आदि जिणंदा माता आदि जिणंदा माता मरूदेवी नंदा, तुम पर वारी जाउं बोल बोल रे, कार्तिक पूनम दिन आवे, मन यात्रा को हुलसावे, मैं रामधर्म का नीर सिंचकर आतम बाग खिलालुं. ८९ शिवसुख. ४ For Private and Personal Use Only शिवसुख. ५ शिवसुख. ६ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दरवाजा तेरा खोल खोल रे, हम दरीशन आये दोड दोड रे, दरवाजा.१ पूजा करूंगा में तो धूप धरूंगा, फूल चढाउंगा मोल मोल रे. दरवाजा.२ थे मेरा ठाकर में तेरा चाकर, एकवार माशुं बोल बोल रे. दरवाजा.३ शत्रुजय मंडन सुंदर मूरत मुख९ ते झाकम झोल झोल रे. दरवाजा.४ रूप विबुधनो मोहन पभणे, रंग लाग्यो चित्तमां चोल चोल रे. दरवाजा.५ ५५. मनवसी मनवसी मनवसी... मनवसी मनवसी मनवसी रे, प्रभु तारी मूर्ति माहरे मन वसी रे. जिम हंसा मन वाहली गंग, जिम चतुर मन चतुरनो संग, जिम बालकने मात उछंग, तिम मुजने प्रभु साथे रंग, मन वसी.१ मुख सोहे पूनमनो चंद, नयन कमल दल मोहे इंद, अधर जिस्या परवाला लाल, अर्ध राशि सम दीपे भाल, मन वसी.२ बाह्यडी जाणे नाल मृणाल, प्रभुजी मेरो परम कृपाल, जोतां को नही प्रभुनी जोड, पूरे त्रिभुवन केरा कोड. मन वसी.३ For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सागरथी अधिको गंभिर, सेव्यो आपे भवनो तीर, सेवे सुरनर क्रोडाक्रोड, करम तणा मद नाखे मोड. मन वसी. ४ भेट्यो भावे आदि जिणंद, मुज मन वाध्यो परमानंद, विमल विजय वाचकनो शिष्य, राम कहे मुज पूरो जगीश. मन वसी.५ ५६. आदिजिनं वन्दे गुणसदनं आदिजिनं वन्दे गुणसदनं सदनन्तामलबोधं रे; बोधकतागुणविस्तृतकीर्ति कीर्तित-प्रथमविरोधं रे आदि०१ रोध-रहित विस्फुरदुपयोगं योगं दधतमभङ्गं रे; भङ्ग नय-व्रजपेशल-वाचं वाचंयमसुखसङ्गं रे आदि० २ संगत-पद-शुचि-वचन-तरङ्ग रङ्गं जगति ददानं रे; दान-सुर-द्रुम-मंजुल-हृदयं हृदयंगमगुणभानं रे आदि०३ भाऽऽनन्दित-सुरवर-पुन्नाग नागर-मानस-हंसं रे; हंसगतिं पंचम-गति-वासं वासवविहिताशंसंरे आदि०४ शंसंतं नय-वचनमनवमं नव-मङ्गल-दातारं रे; तार-स्वरमघ-घन-पवमानं मान-सुभट जेतारं रे आदि० ५ (वसन्ततिलका छन्द) इत्थं स्तुतः प्रथमतीर्थपतिः प्रमोदाच्छ्रीमद्यशोविजयवाचकपुङ्गवेन; श्री पुण्डरीक-गिरिराज-विराजमानो, मानोन्मुखानि वितनोतु सतां सुखानि. ९१ For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७. ऋषभजिनेश्वर! वंदना ऋषभजिनेश्वर! वंदना, होशो वारंवार; पुरुषोत्तम भगवान निराकार संत छो, गुणपर्यायआधार. उत्पत्ति-व्यय ध्रुवता, एक समयमांही जोय; पर्यायार्थिकनयथी व्यय-उत्पत्ति छे, द्रव्यथकी ध्रुव होय. ऋ० १ सत् करतां सामर्थ्यना, होय पर्याय अनन्त; अगुरूलघुनी शक्ति ते तेहमां जाणीए, अनन्त शक्ति स्वतंत्र.ऋ० २ परमभाव ग्राहक प्रभु, तेम सामान्य विशेष; ज्ञेय अनन्तनुं तोल करे प्रभु! ताहरो, क्षायिक एक प्रदेश. ऋ० ३ स्थिरता क्षायिकभावथी, मुखथी कही नहि जाय; अनन्तगुण निज कार्य करे लही शक्तिने, उत्पत्ति-व्यय पाय. ऋ०४ गुण अनन्तनी ध्रुवता, द्रव्यपणे छे अनादि; गुणनी शुद्धि अपेक्षी पर्याये करी, भंगनी स्थिति छ सादी. ऋ० ५ सादि अनंति मुक्तिमां, सुख विलसो छो अनंत; सुख ज्ञेयादिक ज्ञानमां ज्ञाता जगगुरु, ज्ञान अनंत वहंत. ऋ०६ रागद्वेष-युगल हणी, थईया जग महादेव ९२ For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिसागर अवसर पामी भक्तिथी, पामे अमृतमेव ऋ० ७ ५८. सिद्धाचल गिरिराज वंदो (राग : आदिते अरिहंत अम घेर आवो रे) सिद्धाचल गिरिराज वंदो भावे रे, भवोभवनां पातिक जाय शिवसुख पावे रे; शाश्वतगिरि ए प्राय भरत मझारे रे, पंचम आरे भवि प्राणीने झट तारे रे. पूर्व नवाणुं वार प्रथम जिणंदरे, समवसर्या हितकार भव दुःख अंत रे. पंचकोड मुनि साथ पुंडरिक आवे रे, पुंडरिकगिरि नाम प्रसिद्ध भविजन ध्यावे रे; आदिनाथ भगवंत गिरिवर राया रे, माता मरूदेवानंद पुण्ये पाया रे. नाभिराया कुल दिनमणि गुण दरिया रे, भवि प्राणि थोकाथोकने उद्धरिया रे; पाप अनंता में कर्या नहि खामी रे, ९३ सिद्धाचल. १ For Private and Personal Use Only सिद्धाचल. २ भव भ्रमण कर्या में अनंत सुण मुज स्वामी रे. सिद्धाचल. ४ तारणहारो तुं मल्यो भवपार रे, तारक बिरूद जो साधुं तो मुज तार रे; सुखसागर गुरूराय प्रणमी पाय रे, बुद्धिसागर सुख पाय प्रभु गुण गाय रे. सिद्धाचल. ३ सिद्धाचल. ५ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९. श्री सिद्धाचल नयणे निरखी (राग : अब तो पार भये हम साधु) श्री सिद्धाचल नयणे निरखी, सिद्धाचल मुज रूप लमुरी; भवभयभ्रमणा भ्रान्ति भागी, शत्रुजयगिरि नाम ग्रह्युरी. श्री०१ कर्माष्टक शत्रु भयभंजन, विमलाचल मनमांहि वस्योरी; हुं तुं भेद भाव दूर जातां, ध्याताथी नहि दूर खस्योरी. श्री०२ स्थिरपणे तुं हृदये भास्यो, तुज दर्शनथी हर्ष भयोरी; अजरामर दुःखवारक दर्शन, करता मोह ते दूर गयोरी. श्री०३ सर्व तीर्थनो नायक तारक, कर्मनिवारक सिद्ध खरोरी; अज अविनाशी शुद्ध शिवंकर, विश्वानन्द शुभ नाम धर्योरी. श्री०४ अनहद आनंददायक निर्मल, तुज प्रदेशो शास्त्रे कह्यारी; जे देखे ते तुजथी न जूदो, आपोआप स्वभाव रह्यारी. श्री०५ स्थावर तीरथ निश्चय तुं छे, त्रस प्राणी तुज दर्शन करे री; स्थावर तीरथ पोते कौतुक, संगत तेहq रूप धरेरी.श्री०६ जंगम तीरथ गुरूमुखवाणी, सुणतां महातम चित्त ग्रह्योरी; निशदिन तुहि तुहि रटण करूं हुं, मनमन्दिरमा तुहि रह्योरी. श्री०७ तीरथ तीरथ करतो भटक्यो, पण नहि आतम शान्त थयोरी; २४ For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुक्तिराज शाश्वतगिरि देखी, भवदावानल दूर गयोरी. श्री० ८ पापी अभवी दुरभवी प्राणी, दर्शन स्पर्शन कदि न करेरी; सहजानन्द तीरथ ए फरशी, भवपाथोधि भव्य तरेरी श्री० ९ द्रव्य भावथी तीरथ समजी, सेवो भावो ध्यान धरीरी; सिद्धाचल आदीश्वर पूजी, बुद्धिसागर शान्ति वरीरी. श्री० १० ६०. डुंगरे डुंगरे ताहरा देहरा डुंगरे डुंगरे ताहरा देहरा, डुंगरा उपर कीधो तमे वास रे, आदिश्वर दादा, चढती राखो ने जैन धर्मनी. नाभिरायानो कुलचंदलो, मरूदेवा छे तमारी मातरे. आदि० १ आदि० २ भरतजी राजपाट भोगवे, ऋषभजी चाल्या वनवास रे. आदि० ३ ब्राह्मी सुंदरी बे बेनडी, आवी वनमां कीधी तमने जाण रे. आदि० ४ पालीताणा नगर सोहामणो, पर्वत उपर कीधो तमे वास रे. आदि० ५ आठे टूंको त्यां रलियामणी, नवमी ढूंके कीधो तमे वार रे. आदि० ६ सूरजकुंड सोहामणो, चक्केसरी देवीने करीए प्रणाम रे. आदि० ७ ९५ For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ww Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केसर चंदनना भर्या वाटका, पुष्पो चढाउ प्रभुजीने आज रे. आदि०८ हीरविजय गुरुहीरलो, वीरविजय गुण तमारा गाय रे. आदि०९ ६१. मनना मनोरथ सवी फल्या मनना मनोरथ सवी फल्या, श्री सिद्धाचल देखी; अनुभव आनंद उछल्यो, अन्ध श्रद्धा उवेखी. मन० १ सहजानन्द श्रीनाथजी, विश्वानन्द वखाणो; शत्रुजय शाश्वतगिर्, त्रण्य भुवननो राणो. मन०२ मुक्तिराज विजयी सदा, अजरा सुखवासी; विमलाचलने वन्दतां, मटे सकल उदासी. मन०३ पापी दुरभवी प्राणिया, देखे नहि शुद्धि स्थान; गुरु भक्तिमंत प्राणिया पामे अमृतपान. मन०४ द्रष्टा दृश्यपणुं वरे, थाय पूजक पोते; रत्नचिन्तामणि हस्तमां, क्या तुं परमां गोते. मन०५ दर्शन दुर्लभ ताहरां; विरला कोई पामे; बुद्धिसागर ध्यावतां, मलिया निश्चय ठामे. मन०.६ ६२. सिद्धाचल यात्रा करो सिद्धाचल यात्रा करो, भवी साचा भावे; शत्रुजयने सेवतां, रोग शोक न आवे. सिद्धाचल० १ द्रव्यथी शत्रुजयगिरि, भावे आतम पोते; ध्यानसमाधियोगथी, मलो ज्योतिज्योते. सिद्धाचल० २ For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुजयगिरि नाम सहु, आतमनां प्रमाणो; द्रव्य ते भावनो हेतु छे, एवो निश्चय आणो. सिद्धाचल० ३ आत्मा असंख्यप्रदेश छे, तेम गिरि प्रदेशो; समकित प्रगटे आदिमां, आदिनाथ महेशो. सिद्धाचल० ४ द्रव्य ने भाव सापेक्षथी, जेवा भावे भक्ति; तेवा फलने पामशो, तेवी थाशे व्यक्ति. सिद्धाचल० ५ औदयिकभावथी सेवता, कोई उपशम भावे; क्षयोपशम क्षायिकथी, भाव समफल पावे. सिद्धाचल०६ द्रव्य तीर्थ जेथी थयां, भाव तीर्थाधार; विमलाचल वेगे वसो, ज्ञानी थै नरनार. सिद्धाचल०७ आत्मिक शुद्धोपयोगथी, पोते तीर्थ छे देहे; बुद्धिसागर तीर्थ छे, शुद्ध आतमस्नेहे. सिद्धाचल०८ ६३. श्री सिद्धाचल श@जय. श्री सिद्धाचल शत्रुजय, सिद्धक्षेत्र अभिराम; दर्शन करतां दुरगति त्रूटे, छुटे बंध निदान; श्री रिसहेसर पट्ट धुरंधर, असंख्यात नरराय; श्री आदित्ययशाथी यावत्-अजित जिनेश्वर ताय. चउदश इग इग चउ दश इण विध, थई श्रेणि असंख्यात; सिद्धदंडिका मांहे सघलो, एह अछे अवकात; सर्वार्थसिद्ध ने शिवगति विण, त्रीजी. गति मवि पामी; तिणे पण ए तीरथ फरस्यो, वंदो भवि शिर नामी. २ नमि विनमि विद्याधर नायक, दो कोडी मुनि संघाते; ९७ For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए गिरि सेव्याथी शिवगति पाम्या, सकल कर्म निपाते; श्री आदीश्वर सुतना नंदन, द्राविड वारिखिल जाण; कार्तिक पूनम दिन दश कोडी, ऋषि युत लहे निर्वाण. ३ अष्टादश अक्षौहिणी दलना, चूरक जे बलवंत; गोत्र निकंदन करीने संच्यो, जेणे पाप अनंत; ते पण एह ज तीरथ उपरे, करी अणसण उच्चा; उत्तम नर ते पांचे पांडव, पाम्या भवजल पार. त्रण कोडी ने लाख एकाj, ऋषि युत राम मुणींद; तिम नारदादिक साधु अनंता, पाम्या पद महानंद; ते माटे ए गिरिनुं साधु, सिद्धक्षेत्र इति नाम; श्री विजयराज सूरीश्वर विनयी, दान करे गुणग्राम. ६४. भाव भगति भविजन धरी भाव भगति भविजन धरी, भेटो ए गिरिराय रे; ए तीरथ वारूं, अतिशय गुण ए गिरि तणा, - एक मुखे न कहेवाय रे; ए तीरथ वारूं. १ जोयण दश जस चूलिका, पचास जोयण विस्तार रे; एक आठ जोयण उन्नतपणे, एह मान ऋषभने वारे रे. ए० २ इण ठामे आदिसरू, साथे बहु परिवार रे; ए. रायण रूख समोसा, पूर्व नवाणुं वार रे.३ थावच्चा सुत मुनिवरू, तिम शुकराज मुनीश रे. ए० पंथग शेलग इण गिरि, आप थया जगदीश रे. ए० ४ शांब प्रद्युम्न आदि जिहां, असंख्यात मुनिराय रे; ए. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए० ६ शाश्वत सुख पाम्या सही, वंदु तेहनां पाय रे . ए० सीमंधर स्वामी उपदिशे, परषद बार मझार रे. इंद्र प्रते कहे भरतमां, एक शत्रुंजय सार रे. ए० इम निसुणी ए गिरि नमी, आव्या कालिकसूरि पास रे; ए० पूछी विचार निगोदना, बात कही तव खास रे. ए० प्रतिमा चैत्य थयां इहां, तिम असंख्य उद्धार रे; ए० चैत्री पूनम दिन एहनो, महिमा भांख्यो अपार रे. ए० चैत्री उत्सव जे करे, ते लहे भवदुःख भंग रे; ए० श्री विजयराजसूरीसरू, दान अधिक उछरंग रे. ए० ६५. ऐसी दशा हो भगवन (राग : मैं कही कवि न बन जाउं ) ऐसी दशा हो भगवन, जब प्राण तनसे निकले, गिरिराज की हो छाया, मन में न होवे माया, उरमें न मान होवे, दिल एक तान होवे, ९९ तपसे हो शुद्ध काया. १ संसार दुःख हरणां, जैन धर्मका हो शरणां, ८ ९ तुम चरण ध्यान होवे. २ हो कर्म मर्म खरणां. ३ अनशनको सिद्ध वट हो, प्रभु आदिदेव घट हो, गुरूराज भी निकट हो. ४ यह दान मुजको दीजे, इतनी दया तो कीजे, अरजी सेवक (तिलक) की लीजे. ५ For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १ ६६. सांभली जिनवर मुखथी सांभली जिनवर मुखथी साचुं, पुंडरीक गणधार रे; कोडी मुनिवरशुं इण गिरि, अणसण कीधुं उदार रे. नमो रे नमो श्री शत्रुंजय गिरिवर, सकल तीरथमांही सार रे; दीठे दुरगति दूर निवारे, उतारे भवपार रे. नमो० २ केवल लही चैत्री पूनम दिन, पाम्या मुगति सुठाम रे; तदाकालथी पुहवी प्रगट्यु, पुंडरीकगिरि नाम रे. नमो० ३ नयरी अयोध्या विहरता पहोता, तातजी ऋषभ जिणंद रे; साठ सहस सम षट् खंड साधी, घरे आव्या भरत नरींद रे. नमो० ४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घेर जई मायने पाये लागी जननी द्ये आशीष रे; विमलाचल संघाधिप केरी, पहोंचजो पुत्र जगीश रे. . नमो० ५ भरत विमासे आठ सहस सम साध्यां देश अनेक रे; हवे हुं तात प्रत्ये जई पुछु संघपति तिलक विवेक रे. नमो० ६ समवसरणे पहोंता भरतेसर, वांदी प्रभुना पाय रे; इंद्रादिक सुर नर बहुं मलीया, देशना दे जिनराय रे . नमो० ७ शत्रुंजय संघाधिप यात्रा, फल भाखे श्री भगवंत रे; तव भरतेसर करे रे सजाई, जाणी लाभ अनंत रे. नमो० ८ ६७. आवी रूडी भगति में आवी रूडी भगति में पहेलां न जाणी, पहेला न जाणी रे प्रभुजी, पहेला न जाणी; १०० For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसारनी मायामां में वलोव्युं पाणी. आवी०१ शत्रुजय गिरिवर जईए, नवाणुं वहीए; आतमशुद्ध करीने ए तो, पावन थईए. आवी०२ ऋषभ जिणेसर स्वामी मारा, भेटवा भले भावे; नाभिनरेसर नंदन दीठा, हरख्यो ते वारे. आवी० ३ चोराशी लाख जीवायोनिमां, भमियो काल अनंता; तिहा भावमित्तने नवि पेख्यो, एवा अरिहंता. आवी०४ काम क्रोध मान माया लोभे, अति रडवडीयो; एकेन्द्रिय बेइन्द्रिय तेइन्द्रियमांहे, तुं नवि पेख्यो. आवी०५ ज्ञानविमलसूरि इम जंपे, मुने एहवा हेवा; मोक्ष मार्गना स्वामि आपो, मुजने मेवा. आवी०६ ६८. सिद्धाचल गुण गेह सिद्धाचल गुण गेह, भवि प्रणमा धरी नेह; आजहो सोहे रे मन मोहे, तीरथ राजीयोजी. आदीश्वर अरिहंत, मुक्ति वधूनो कंत; आजहो पूरववार नवाणुं, आवी समोसर्याजी. सकल सुरासुरराज, किन्नरदेव समाज; आजहो सेवा रे सारे, ते करजोडी करीजी. दर्शनथी दुःख दूर, सेवे सुख भरपुर; आजहो एणे रे कलिकाले, कल्पतरू अछेजी. पुंडरीकगिरि ध्यान, लहिये बहु यश मान; आजहो दीपे रे अधिकी तस, ज्ञानकला घणीजी. १०१ For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९. मारा प्राणना आधार ( राग : विमलाचलना वासी) मारा प्राणना आधार, मारा हैयाना हार; सिद्धगिरि प्यारा, गिरिराजने वंदन हमारा, सर्व तीर्थोमां मोटुं छे एह, प्राये शाश्वतगिरि छे जेह; शत्रुंजय नाम छे सार, जेथी थाय भवपार. सि० गि० १ कांकरे कांकरे सिध्या अनंता, जिन गणधर मुनि महासंता; अष्टोत्तर शत नाम, सिद्धाचल गुणधाम. सि० गि० २ दादा पूर्व नवाणुं इहां आव्या, पुंडरीक गणधर साथे लाव्या; कापी कर्मजंजीर, शिव पाम्या वडवीर. सि० गि० ३ ज्ञान ध्यानमां रहे सदा लीन, तप जपथी जाये कर्म कठीन; भवि रत्नत्रयी पामे, भव दुःखडाने वामे. जेना नामथी नव निधि थाय, जेना दर्शनथी तीर्थ भक्तिमा एकतान, पामे मुक्ति निदान. सि० गि० ४ दूरित पलाय; सि० गि० ५ श्री अजितनाथ भगवान के चैत्यवंदन, स्तवन, थोय अजितनाथ प्रभु अवतर्या, विनीताना स्वामी, जितशत्रु विजया तणा, नंदन शिवगामी. बहोंतेर लाख पूरव तणुं, पाल्युं जिणे आय, गजलंछन लंछन नहीं, प्रणमे सुरराय. साडा चारशें धनुषनी ए, जिनवर उत्तम देह, पादपद्म तस प्रणमीये, जिम लहीए शिव गेह.. १०२ For Private and Personal Use Only १ २ ३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन अजितजिनेश्वर सेवनारे, करतां पाप पलाय; जिनवर सेवो. सेवो सेवोरे भविकजन! सेवो, प्रभु शिवदुखदायक मेवो, प्रभु सेवे सिद्धि सुहाय. जिनवर. मिथ्या-मोह निवारीने रे, क्षायिक-रत्न ग्रहाय; चारित्र-मोह हठावतारे, स्थिरता क्षायिक थाय. जिनवर० १ क्षपक-श्रेणि आरोहीने रे, शुक्ल-ध्यानप्रयोग; ज्ञानावरणीयादिक हणीरे, क्षायिक नवगुण-भोग.जिनवर०२ अष्टकर्मना नाशथीरे, गुण-अष्टक प्रगटाय; एक समय समश्रेणीए रे, मुक्तिस्थान सुहाय. जिनवर० ३ नात्यंताभाव मुक्तिनोरे, जडिममयी नहि खास; व्योमपरे नहि व्यापीनीरे, नहि व्यावृत्ति-विलास. जिनवर० ४ सादी अनंत स्थितिथीरे, सिद्ध बुद्ध भगवंत; झलहल ज्योति ज्यां झगमगेरे, शेयतणो नहि अंत.जिनवर०५ परज्ञेय ध्रुवता त्रिकालमारे, उत्पत्ति-व्ययसाथ; .. निजज्ञेय ध्रुवता अनन्तनोरे, पर्यायसह शिवनाथ.जिनवर०६ पर जाणे परमां न परिणमेरे, अशुद्धभाव व्यतीत; बुद्धिसागर ध्यानथीरे, थावे ध्यानी अजित. जिनवर० ७ थोय विजया सुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणंदो, शीतलताए चंदो, धीरताए गिरींदो; मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरिंदों, लहो परमाणंदो, सेवतां सुख कंदो. १०३ For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री पार्श्वनाथ भगवान के चैत्यवंदन, स्तवन, थोय आश पूरे प्रभु पासजी, तोडे भव पास. वामा माता जनमीया, अहि-लंछन जास. अश्व सेन सुत सुख-करु, नव हाथनी काया. काशी देश वाराणसी, पुण्ये प्रभु आया. एक सो वरसन आउखुं ए, पाली पार्श्व-कुमार. पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार. स्तवन ॐ नमो पार्श्वप्रभु पंकजे, विश्वचिंतामणी रत्न रे, ॐ ह्रीं धरणेन्द्र पद्मावती वैरुट्या करो मुज यत्न रे १ अब मोहे शांति तुष्टि महापुष्टि, धृति किर्ति कांति विधायी रे ॐ ह्रीं अक्षर शब्दथी आधि व्याधि सब जायरे ॐ ह्रीं श्री प्रभु पार्श्वजी, मुलना मंत्रनुं बीज रे पार्श्वथी सवि दुरित टले, आवी मिले सवि चीज रे ३ ॐ ह्रीं असिआउसा नमो नमः तुं ही त्रैलोक्य नो नाथ रे चोसठ इंद्रो टोले मली, सेवे प्रभु जोडी हाथ रे ४ ॐ अजिता दुरिआ तथा, अपराविजया जया देवी रे दश दिशीपाल गृह यक्ष ए, विद्यादेवी प्रसन्न होय सेवी रे ५ गोडी प्रभु पार्श्वचिंतामणी, थंभणो अहि छतो देव रे जगवल्लभतुं जग जगतो, अंतरिक्ष वरकाणा करु सेव रे ६ श्री शंखेश्वर पुरी मंडणो, पार्श्व जिन प्रणत तरु कल्प रे वारजो दुष्टना वृंदने सुजस सौभाग्य सुख कंद रे ७ १०४ For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थोय शंखेश्वर पासजी पूजीए, नर भवनो लाहो लीजिए. मन वांछित पूरण सुर-तरु, जय वामासुत अलवेसरु. भक्ति गीत विभाग १. आदेश्वर अरज सुणो... ( राग एक बार मुखडो बताओ दीनानाथजी,) एक बार मुखडो बताओ दीनानाथजी, थारी मोहनी मूरत लागे प्यारी, आदेश्वर अरज सुणो, सिद्धाचल रा राजा थे, तो, विमलाचल रा राजा; मेरूदेवी रा लाडका लाल, आदेश्वर अरज सुणो. युगला धर्म निवारक दादा, भव तारक भगवान रे; मारा वालाजी सुनंदा रा कंत, आदेश्वर अरज सुणो एक० बाहुबलीजी तार्या दादा, भरतजी तार्या; मारी नाव लगावो भवपार टेश्वर अरज सुणो, एक० दादा थाने मालुम होवे, थारे शरण आया हो; नहिं भूलांला थारो उपकार, आदेश्वर अरज सुणो, एक० कोयलडी बोले मीठा मोरलियाजी बोले हो; थांरा 'भक्तो' करे रे पुकार, आदेश्वर अरज सुणो. एक० २. नाम है तेरा तारणहार... नाम है तेरा तारणहारा, कब तेरा दर्शन होगा, जिनकी प्रितमा इतनी सुंदर, वो कितना सुंदर होगा, १०५ For Private and Personal Use Only १ एक० Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरवर मुनिवर जीनके चरणे निशदिन शिश झुकाते है, जो गाते है प्रभुकी महिमा वो सबकुछ पा जाते है, अपने कष्ट मीटाने को तेरे चरणो में वंदन होगा. तुमने तारे लाखों प्राणी यह संतों की वाणी है, तेरी छबी पर मेरे भगवन् यह दुनिया दिवानी है, झुमझुम तेरी पूजा रचाउं जीवन में मंगल होगा, तीन लोक का स्वामी तु है, तुं जगत का दाता है, जनम जनम से ए मेरे भगवंत तेरा मेरा नाता है, भवसे पार उतरनेको तेरे गीतों का सरगम होगा. ३. दादा रे... तारा दर्शन (राग - बेना रे ) दादा रे...तारा दर्शन विना मारू हैयुं वलोवाय, आदिनाथ दादा प्यारा लागे, शुं शुं मने थाय, कही ना शकाय, आदीनाथ. तारा दर्शन विना मारू, जीवन सुनुं सुनुं (२) तारी याद आवे ने बनतुं हैयुं भीनुं भीनुं (२) दादा रे... उंचा डुंगर जईने बेठा केम करी अवाय, आदीनाथ. आवुं तलेटी त्यारे उमंगे डुंगर चढवा दोडुं (२) मनने मनावी तनने रोकी, भक्तिमां दीलडुं जोडुं दादा रे... वहेला वहेला दर्शन आपो. ठंडक थोडी थाय. आदीनाथ. १०६ For Private and Personal Use Only नाम० नाम० नाम० Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु० प्रभु० प्रभु० ४. प्रभु ए विनंती हवे तो स्वीकारो, (राग - रहे ज्यां भलाइ...) नथी गमतु भवमा हवे तो उगारो. कदी क्रोधना तो वादल चढे छे, समजना सूरजने तो ए आवरे छे, समीर थइ क्षमाना हवे तो पधारो. कदी मान हाथी आवी चढे छे, विनयना शिखरेथी गबडावी दे छे, समर्पणनी सरगम बनीने पधारो. कदी तो कपटना कांटा उगे छे, निखालस विचारोना फूलोने वींधे छे, माली बनीने हवे तो पधारो. लालसानो सागर तुफाने चढे छे, त्याग तपस्याना वहाणो डूबे छे, सुकानी बनीने हवे तो पधारो. आत्मकमलमां जो तुं पधारे, जीवननी नैया पहोंचे किनारे, सारथी बनीने हवे तो पधारो. छेल्ली विनंती प्रभुजी तमोने, विसारी ना देशो तुम सेवकने, श्वासोनी सरगम बनीने पधारो. ५. अमी भरेली नजरूं राखो... अमी भरेली नजरूं राखो, शत्रुजय ना दादा रे, १०७ प्रभु० प्रभु० प्रभु० For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दरिशन आपो दुःखडा कापो, शत्रुजय ना दादा रे, चरण कमलमा शिश नमावी, दर्शन करूं आदिनाथ रे, दया करीने भक्ति देजो, श@जय ना दादा रे, हुं दुःखीयारो तारे द्वारे आवी उभो आदिनाथ रे, आशिष देजो उरमा लेजो, शत्रुजय ना दादा रे, तारे भरोसे जीवन नैया, हांकी रह्यो श्री आदिनाथ रे, बनी सुकानी पार उतारो, शत्रुजय ना दादा रे, भक्तो तमारा करे विनंती, सांभलजो श्री आदिनाथ रे, सागर मंडलनी अरजी सुणजो, शत्रुजय ना दादा रे. ६. मूरति जोउं जोउं ने गमी । (राग - ओढणी ओढु ओदु ने उडी जाय) मूरति जोउं जोउं ने गमी जाय(२) मारा मनडामां माय, मारा हैया हरखाय, हे तारा दरशनथी पाप पलाय...मूरति हो...रे... (२)व्हाला मरूदेवीना नंद, हो...रे..(४) लागुं पाय(२) तारो महिमा गवाय, तारी आंगी रचाय(२) हे.. तारी आंगीन रूप सोहाय...मूरति हो...रे... (२)व्हाला शत्रुजय ना नाथ, हो...रे... (४) पकडो हाथ(२) तारी पूजा भणाय, तारी भक्ति कराय, हे तारा भक्तो गुणला गाय...मूरति __ १०८ For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. मारी आंखोमां आदिनाथ (राग मारी आंखोमां आदिनाथ.) मारी आंखोमां आदिनाथ आवजो रे, हुं तो पापणना पुष्पे वधावू. मारा हैयानां हार बनी आवजो रे हुं तो.... तमे मरूदेवीना जाया, त्रणलोकमां आप छवाया, मारा मनना मंदिरमां पधारजो रे हुं तो.... भवसागर छे बहुभारी, झोला खाती आ नावलडी मारी, नैयाना सुकानी बनी आवजो रे हुं तो..... मने मोहराजाए हराव्यो, मने मारग तारो भूलाव्यो, जीवनना सारथि बनी आवजो रे हुं तो.... मारा दिलमा रह्या छो आप, मारा मनमां चाले तारो जाप, मारा मनना मयूर बनी आवजो रे...। ८. कृपा करो, कृपा करो (राग - कोण भरे, कोण भरे) कृपा करो, कृपा करो, कृपा करो रे, आदिनाथ दादा आज कृपा करो रे, तारी कृपाथी मारा काज सरो रे... शत्रुजय गिरिना सांइ सोहामणा, देवाधिदेव करो दिलमां पधरामणा, अंतर पधारी मारूं श्रेय करो रे... भवनी गलीनो हुं तो मँडो भिखारी, १०९ For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूडा हे नाथ तारी करूं आज यारी, शिवपुरना वासी मने याद करो रे... तारे ने मारे नाथ अंतर जाजेरूं, आवो अंतर तो मारा पापो विखेळं, पाप विखेरी दिल आवी मलो रे... तारो विरह मारा दिलडामा डंखतो, तेथी तमाळं दर्श दिलथी हुं झंखतो, मोघेरी झंखनाने पूर्ण करो रे... मंथन स्वरूप तारा यात्राना दावथी, टलशे वियोग तारो मारा सद्भावथी, मलवा एकांत मन मारूं भरो रे... ९. वरसे भले वादलीने वायु भले... वरसे भले वादलीने वायु भले वाय, दादा तारो दीवडो कदी न बुझाय, एने बुझववा आवे असुरो, ए पण हारीने चाल्या जाय... दरियामां उछले मोजा तोफानी, भलेने झंझावात झींकाय.. आवे भले ने राहू ने केतु, एनो प्रभाव पण पाणी थाय.. अलबेला आदिनाथ उपर बिराजे, जात्रा करवा सहु दोडी दोडी जाय... दर्शन करवा सहु दोडी दोडी जाय... १०. शब्दमां समाय नहि.... शब्दमां समाय नहि एवो तुं महान, ११० For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केम करी गाउं प्रभु तारा गुणगान? गजु नथी मारूं एवं कहे आ जबान... हो..फूलडाना बगीचामां खीले घणा फूलो, सुंघवा आवेलो पेलो भ्रमर पडे भूलो, एम तारी सुरभि भूलावे मने भान... हो.. अंबरमां चमके छे असंख्य सितारा, पार कदी पामे नहीं एने गणनारा, गुण तारा झाझाने थोडं मारूं ज्ञान... हो.. वणथंभ्या मोजा आवे सागर किनारे, जोता जोता मनडुं धराय ना लगीरे, एक थकी एक तारा उंचा परिणाम... हो. उंचा पहाडमांथी वहे मीटुं झरj, तरस्यानी तृषाने शांति ए आपतुं, अमीभरी वाणीना कराव्या छे पान... हो.. अज्ञानी भक्तो प्रभु तारा गुण गावे, तारा प्रदेशने जोवाने चाहे, देजो प्रभु भक्तोने मुक्तिना धाम... ११. पाप मारा त्यां बधा धोवाय (राग - आंखडी मारी प्रभु हरखाय छे) पाप मारा त्यां बधा धोवाय छे, ज्यां मने ऋषभना दरिशन थाय छे.. मुक्तिनो मारग मने जडतो नथी, १११ For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धगिरिमा मारग साचो देखाय छे... जीवनगृहमां अंधारा व्यापी रह्यां, शत्रुजयमां आशाओ बंधाय छे... जीवन मारूं जानवर जेवू बन्युं. कदंबगिरिमां मानवता सर्जाय छे... जीवननी सरिता जाणे क्या वही रही, सागर सरीखा प्रभुमा ए समाय छे... १२. सेवा हो, मुक्ति मेवा (राग - सेवा हो, मुक्ति मेवा) सेवा हो, मुक्ति मेवा(२) हो...मारी हैयानी सेवा स्वीकारो प्रभु! मने मुक्तिना मेवा चखाडो प्रभु(२)सेवा... आपु जनमो जनमथी परीक्षा, हवे परिणामनी छे प्रतीक्षा, मारा जन्मोनो अंत, क्यारे आवशे भगवंत, मोटी मनडानी चिंता मटाडो प्रभु(२) सेवा... में तो राखी नथी कोइ खामी, तो ये रीझ्या नहीं केम स्वामी, मारो शुं छे अपराध, हुं तो गोतु दिनरात, मारी भक्तिनी खामी सुधारो प्रभु(२) सेवा... बोजो भवनो घणो में उपाड्यो, लांबो मारग प्रभु में खुटाड्यो, हवे लागे छे थाक, थोडो लंबावो हाथ, मारे माथेथी बोजो उतारो प्रभु(२) सेवा... ११२ For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३, नित्य गमे, नित्य गमे (राग - कोण भरे, कोण भरे, कोण भरे रे) नित्य गमे, नित्य गमे, नित्य गमे रे, आदिनाथ दादा मने नित्य गमे रे, जेना दर्शनथी मारा पाप शमे रे... आदिनाथ० रूडु रलियामणुं पालिताणा गाम छ, मनने लोभवनारूं सिद्धगिरि धाम छ, गिरिवरनी शोभा जोइ शिश नमे रे... आदिनाथ० जलथी भरेला कुंडो सोहामणा, गगने अडेला शिखरो रलियामणा, ऋषभने जोता मारुं चित्त रमे रे... आदिनाथ० गिरिवरना गुणला जे कोइ गावे, कारज सघला तेना सफल थावे, सहुने गमनारा ऋषभ गमे रे... आदिनाथ० आशा भरेला कुंडो निहालजो, बालक जाणी रे करूणा लावजो, मोक्ष जवानी एक आशा मने रे.... आदिनाथ० १४, पहोंचाय ना सिद्धशीलानी (राग - पारेवडा जाजो वीराना देशमां) पहोंचाय ना सिद्धशीलानी गोखमां, आव्या छे सिद्धिगिरि चोकमां... आदीश्वरादाद अलबेला शोभता, ११३ For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बेठा छे राजाना रोफमां... माथे मुगट कंठे हीरानो हंसलो, अमृत झरे शांतिनाथ दादाने पुंडरिक स्वामी, महिमा गाजे त्रण लोकमां ... रायण पगले वंदन करता, कर्मो खपे छे थोकमां ... कांकरे कांकरे सिद्ध अनंता, आव्यो छं मुक्तिनी शोधमां... कृपा करीने सेवकने तारजो, पद्म खीले पुरजोरमां... सागर मंडल जिन गुणगावे, समजी जावो ने कोलमां... १५. अलबेला आदीनाथ डुंगरे बीराजे, - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( राग चपटी भर चोखाने घीनो छे दीवडो) अलबेला आदीनाथ डुंगरे बीराजे, महिमा जगमां गाजे रे, हालो हालो ने सिद्धगिरि जइए रे... हालो हालो ने आदिनाथ भेटीये रे... पुंडरिक स्वामीने शांतिनाथ दादा, रायण पगलांनी जोडी रे... पंचम आरे मोक्षनी गाडी, चालोने टीकीट लइए रे... हर्षधरीने आव्या तलेटी, मुक्ति मेलववा मोटी रे... सोना रूपाना फूलडे वधावो, फूलोनी माला लइए रे.... झरमर झरमर मेहूलीयो वरसे, अंतरना मेलने धोवा रे.... सागर मंडल तुजने विनवे, भक्तिभावे गुण गाइने रे... १६. भवोभव मलजो सिद्धाचल धाम ११४ तुज नेणमां... (राग - भक्ति करता छुटे मारा प्राण...) भवोभव मलजो सिद्धाचल धाम प्रभुजी एवं मागं छं. . For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनमा रहेजो ऋषभर्नु ध्यान, प्रभुजी एवं मागुं छु. ज्यां ज्यां नयना मारी फरती रहे, त्यां त्यां ऋषभना दरिशन करती रहे, तारा चरणोमां करवो आवास... कर्म तोडवा सुंदर साधन मल्युं पुण्य भरवा सिद्धाचल धाम मल्यु, रहेजो ऋषभना चरणे प्राण... पुण्यकारक गिरिवर शोभी रह्यो, पाप हारक डुंगर डोली रह्यो, नयने रहेजो ऋषभनी छाप... ए गिरिराजने टगमग जोया करूं, मारा भवोभवना पापने धोया करूं, तरवो संसार सागर अगाध... १७. सिद्धाचलनो महिमा कोने (राग - वीरकुंवरनी वातलडी कोने कहीए रे) सिद्धाचलनो महिमा कोने कहीये रे(३) गिरिभेटी पावन थइए हारे लहीए अवचिल धाम... आगममांहे महिमा जेनो भाख्यो शे@जय कल्पे दाख्यो, मन मोरलो सुणतां नाच्यो शाश्वत ए गिरिराज... वीस कोडिशुं पांडव मुक्ति पाया पुंडरिक गणधर पण आया, पुंडरिक गिरि नाम धराया पांच करोड परिवार... गिरिवर चढतां आनंद मारो वधतो ऋषभना गीतो गातो, दर्शन करता हरखातो धन्य मारो अवतार... ११५ For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे नर भावे यात्रा नव्वाणुं करशे सूरजकुंटमा जे न्हाशे, तेनो पातिक भूक्को थाशे वरशे मुक्ति माल... फागण केरी फेरी फरवा आवे फेरा चोराशी मीटावे, पूनमनो महिमा जगावे चक्केश्वरी सुखकार... सूरजकुंडनी शोभा लागे न्यारी नवढेको मन गमनारी, दादा पर जाउं वारी उपन्यो हरख अपार ... १८. आq रूडु रे मजार्नु तीरथ नही रे (राग - आवो रूडो रे मजानो अवसर नहि रे) आq रूडु रे मजानुं तीरथ नही रे मले, गिरवरमां गिरिराज, वंदन करीए रे आज... भवोभवना पुण्यनो संचय थाये, गिरिवर दरिसन त्यारे थाये, मानव जन्म मारो धन्य दिन मारो... ए गिरिराजनो हुँ छु प्रवासी, तारा जेवा बनवानो हुं अभिलाषी, तारो साथ मांगु, तारो हाथ चाहुं... पशु पंखी इण गिरि यात्राए आवे, भव त्रीजे ते परमपद पावे, महिमा अपरंपार, तारा गुणो अपार... मरूदेवीनंदन ऋषभ बिराजे, गिरिवरनो महिमा जगमा गाजे, आq तीर्थ न मले, जगमा जोड़ न जडे... ए गिरिवरनी छायामां वसीये, ११६ For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तप जप ध्यानथी कायाने कसीये, कर्मने दूर करो, मुक्ति वहेली वरो... १९. आ दुनियामां तरवा माटे सिद्धाचल (राग - दीन दुःखीयानो तुं छे बेली) आ दुनियामां तरवा माटे सिद्धाचल छे धाम, जेनो महिमा अपरंपार (२) देवो पण यात्राए आवे, जीवननैया पार लगावे, जे आरती गिरिनी करता, ए अरति कदी न पावे, अनंत सिध्या ए गिरिधामे, वंदन वारंवार ... वीर जिनेश्वर गिरिपर आया, देवोए गढ त्रण रचाया, दर्शन पूजन वंदन करो ए, गिरिना गुणला गाया, इन्द्रो पण गुण गातां गातां धरता हर्ष अपार ... वीस कोडिशुं पांडव मुक्ति दिलमां धरतां तीरथ भक्ति, पंचक्रोडशुं पुंडरिक आव्या कर्म खपावी पाम्या मुक्ति, अचिंत्य महिमा ए गिरिवरनो सुणतां भवनो पार ... " २०. रंगाइ जाने रंगमां... (राग - रंगाइ जाने रंगमां) रंगाइ जाने रंगमां...तुं रंगाइ जाने रंगमां श्री सिद्धाचलना संगमां, प्रभु आदिनाथना रंगमां, अमने प्यारूं, तमने प्यारुं, सहुने मन गमनाएं (२) सर्व तीरथमां महिमावंतु जगमां तीरथ न्यारूं (२) शाश्वत गिरिवर भेटीये रे, उमंग आणी मनमां... ११७ For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सिद्धाचल, श्री विमलाचल, मुक्तिनिलय गिरि नाम(२) इम शतअष्ट नाम धरीने करजो सघला काम(२) पापी मटीने पावन थइए, भेटीए गिरिराज... भव सागरने तरवा माटे कलिकाले छे जहाज(२) थइ सुकानी उपर बेठा त्रण भुवन शिरताज(२) वहेला मोडा तारजो रे देइ समकित दानमा... श्री सीमंधर महिमा भाखे महिमावंतुं धाम(२) कांकरे कांकरे सिध्या अनंता श्री सिद्धाचल धाम(२) गिरिवरने वंदता रे वर्ते आनंद अंगमां... २१. परमपुरूषनो पंथ मल्यो छे.... परमपुरूषनो पंथ मल्यो छे, मनगमतो भगवंत मल्यो छे, चालो पावन थइए, चालो आपणे जइए. सिद्धाचलनी जात्रा करवा, चालो आपणे जइए. कांकरे कांकरे सिध्या अनंता, थाशे भावि अनंत, त्रिकरण योगे पूजा करशुं करीशुं भवनो अंत, जगनो साचो संत मल्यो छे, मनगमतो भगवंत मल्यो छे २ सिद्धाचल सोहामणु तीर्थ, सहु तीरथ शीरताज, अलबेलो आदीश्वर गाजेसाहिब गरीब निवाज. कलियुगनो ए कल्प मल्यो छे; जगनो साचो संत मल्यो छे, शीतल छायडे रहीए त्रणे लोकमां तीरथ न एवं श्री सीमंधर बोले; मानव त्यां जइ देव बने पण, साचु अंतर खोले कला : ११८ For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाभाग्य भगवंत मल्यो छे, मनगमतो अरिहंत मल्यो छे; चालो आपणे जइए, सिद्धाचलनी जात्रा करवा, चालो आपणे जइए.... २२. तमे वहेला सिद्धाचल आवजो रे, (राग - तमे जो जो ना वायदा वीतावजो...) तमे वहेला सिद्धाचल आवजो रे, भवि कर्म पुराणा खपावजो... तमे...१ आदि जिनेश्वर जग परमेश्वर, पूजीने जीवन दीपावजो रे.. तमे ..२ कांकरे कांकरे सिध्या अनंता, ए स्थानमा दिलने रमावजो रे.. तमे..३ रायण रूडी शोभे नीलुडी, प्रथम जिणंद पद ध्यावजो रे.. तमे..४ दान-शीयल तप रूडां आराधी, भावना सुंदर भावजो रे.. तमे..५ आत्म कमलमां गिरिगुण गातां, लब्धिसूरि दिल लावजो रे.. तमे..६ २३. धन्यावतारा... मारो धन्य बन्यो आजे अवतार, के मल्या मने परमात्मा हो..करूं मोंघो ने मीठो सत्कार..के मल्या... श्रद्धाना लीलुडा तोरण बंधावु(२) भक्तिना रंगोथी आंगण सजावू(२) ११९ For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हो.. सजे हैयुं सोनेरी शणगार के मल्या... प्रीतीना मघमघता फुलडे वधावु(२) संसारे झलहलता दीवडा प्रगटार्बु(२) हो.. करे मननो मोरलीयो टहुकार के मल्या... उरना आसनीये प्रभुने पधरावु(२) जीवन आर्खा एना चरणे बिछावु(२) हो..हवे थाशे आतमनो उद्धार के मल्या... २४. चालो सिद्धाचल जइए रे (राग - धुन जगावो अरिहंतनी रे) चालो सिद्धाचल जइए रे। चालो सिद्धाचल जइए रे हो यात्राना रसिया(२) यात्राना रसिया हो शिवसुख रसिया चालो सिद्धाचल(२) डग-डग भरता कष्ट उठावो, कष्ट उठावो ने कर्म खपावो, कर्म खपावी सुख पामीए रे, हो यात्राना रसिया चालो सिद्धाचल० सिद्धाचल तीर्थनो महिमा छे भारी, ___ पावन ए तीरथ छे मनोहारी, भेटतां भवदुःख हरीए रे, हो यात्राना रसिया चालो सिद्धाचल० आदिश्वर दादानुं ध्यान धरता, चातुर्मास जे नर करतां, दुःख तेना दूर थाशे रे, हो यात्राना रसिया, चालो सिद्धाचल० १२० For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कांकरे कांकरे श्री सिद्धक्षेत्रे, अनंत आत्मा मुक्तिने पामे, चरणोमां वंदन करीए रे, हो यात्राना रसिया चालो सिद्धाचल० २५. सिद्धाचलना वासी, (राग - हे शंखेश्वरना वासी) सिद्धाचलना वासी, मारा हैये करजो वास(२) हैये करजो वास, मारा दिलडे करजो वास, सिद्धाचलना वासी मारा हैये करजो वास, मारा दीलडामां गाजे छे, तारी भक्ति तणो रणकार. तारी भक्ति करवा काजे, आव्यो तुज दरबार, विमलाचलनी सेवा करतां, आनंद उपजे अपार, मरूदेवीनो नंदन प्यारो, वंदन वार हजार. त्रणलोकमां तीरथ न एवं, महिमा अपरंपार तारी भक्ति करता करतां, करवो भवनो पार. २६. समरो नित उठीने सवार... (राग - समरो मंत्र भलो नवकार) समरो नित उठीने सवार... समरो नित उठीने सवार, प्यारं विमलगिरिनुं नाम, जेनो महिमा अपरंपार, थातां इच्छित सर्वे काम, समरो. देवो आवे दानव आवे, आवे नर ने नारी, संघ लइने संघवी आवे, भावना उत्तम सारी, समरो. पर्षदामाही महिमा गाता, सीमंधर भगवान, १२१ For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रण लोकमां तीरथ न एवं आ छे मुक्तिधाम. समरो. सिद्ध अनंतनुं ध्यान धरीने, स्तवना एनी करजो, सिद्धिगिरिनी यात्रा करता, भव्यनी छाप धरजो. समरो. पांडव राम नारद ऋषि ने शांब प्रद्युम्ननी जोडी, कर्म खपावी मुक्ति पाम्या, सेवक नमे कर जोडी. समरो. २७. आविया, आविया, आविया रे आविया, आविया, आविया रे० अमे नव्वाणुं करवा आविया रे लाविया, लाविया, लाविया रे, अमे भावनाना पुष्पो लाविया रे, अमे नवाणुं करवा आविया रे० आराधनानी साथे एकासणा करता, रोज रोज पूजाओ भणावता रे, गुरुदेवनी छे अमृतवाणी, सुणीने तत्वो पामीया रे, अमे नव्वाणुं करवा आविया रे० भूली गया अमे संसारनी माया, देव-गुरु-धर्म मन लगाविया रे. अमे नव्वाणुं करवा आविया रे० २८. सिद्धाचलमां आवीने कोइ (राग-तारे द्वारे आवीने कोइ) सिद्धाचलमा आवीने कोइ, भवरणमा भटकाय ना, विमलाचल नाम, सिद्धाचल धाम. १२२ For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलाचल तो नाम ज एवं, आतम विमल करतुं, शत्रुजयनुं ध्यान धरतां, दोषो जीवनना हरतुं; ज्यां ज्यां नजरूं मारी फरती, अभवी देखाय ना. विमला० त्रण भुवनमा सहुने प्यारो, ऋषभ डुंगरे बिराजे, भवमां पडताने ते झीले, महिमा जगमां गाजे; सुखदुःख वच्चे रहे समाधि, मन मारूं मुझायनां विमला० २९. हे सिद्धाचलना स्वामी (राग - हे करूणाना करनारा) हे सिद्धाचलना स्वामी, तारा महिमानो कोइ पार नथी, कोइ मुक्ति पाम्या गामी, तारा महिमानो कोइ पार नथी कोइ ऋषभ ऋषभ करी आवे, प्रभु चरणे शीष नमावे, भक्तोने सुख देनारा.२. तारा...० कोइ संघ लइने आवे, भक्तिना भेटणां लावे, संघवी पदवी देनारा..२. तारा.... कोइ यात्रा नव्वाणुं करता, मनमां ऋषभने धरतां, आनंद मंगल करनारा..२. तारा.... कोइ अभिषेक तारा करावे, कोइ पूजा आंगी रचावे, समाधि मरण देनारा..२. तारा.... कोइ चातुर्मास करता, तप जपथी मनने दमता, दुःख शंकटने हरनारा..२. तारा.... कोइ हाथी घोडे आवे, पगपाला संघ आवे, प्रभु जगना तारणहारा..२.तारा.... कोइ सोनारूपा लावे, कोइ चपटी चोखा धरावे, १२३ For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु मरूदेवीना दुलारा..२. तारा.... ३०. अलबेला...अलबेला...अलबेला... (राग-ढोलीडा ढोल धीमो धीमो वगाड मा) अलबेला...अलबेला...अलबेला... अलबेला आदिनाथ जोजे भूलाय ना, यात्रा करवानो रंग जोजे वही जाय ना. अलबेला० सोरठ देशमां बेठो किरतार, दादाना नामथी करता रे प्यार, डुंगराने चढता(२)जोजे थकाय ना. यात्रा करवानो० पूनमना चंद जेवू मुख छ मनोहर, दिलडाने गमी-गमी करतो टहुकार; दादाने जोता जोता कदीये धराय.ना. यात्रा करवानो० काने कुंडल गले हीरलानो हार, माथे मुगट शोभे झाकझमाल, सिद्धिगिरि मंडनने कदीये भूलाय ना. यात्रा करवानो० ३१. विमलाचल गिरिना शरणे जा (राग - जा संयम पंथे दीक्षार्थी) विमलाचल गिरिना शरणे जा, जा तारो जरूर भवपार थशे. प्रभु आदीश्वरना चरणे जा, जा तारो जरूर भवपार थशे. तारी आ नश्वर काया छे, जे चार दिवसनी माया छे; ते माया प्रभु पर धरतो जा. जा तारो० अज्ञानी बनीने पाप कर्या, कुलने लाजे तेवा काम कर्या, १२४ For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ते पापो प्रभुने कहेतो जा. दुःखोथी भारे दोषो छे, जेने तुं निशदिन पोषे छे, ते दोषो प्रभुने कहेतो जा. दुनियामां एक शरणुं साचुं, अरिहंत तणी भक्ति याचुं, तारा भक्तने चरणे धरतो जा. जा तारो० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे मरूदेवीना जाया, मांगु तारी माया, १२५ ३२. सिद्धाचल का नाथ प्यारा सिद्धाचलका नाथ सबको प्यारा लगता है ... सिद्धाचल का नाथ सबको प्यारा लगता है, सब तरी में यह तीरथ तो न्यारा लगता हैं; तुं है नायक, तुं है रक्षक, तुं तो मालिक है. सिद्धाचल का० तेरे सिवा इस दुनियामें कौन पालक है, सभी नाम में तेरा नाम प्यारा लगता है, सिद्धाचल का० सबको प्यारी, जगमें न्यारी, मूर्ति सुहानी है, तेरे नाममें सारी दुनिया, कैसी दिवानी है. सिद्धाचल का० इस तीरथमें आकर मुझको, अच्छा लगता है, तेरे शरणे जो भी आये, मुक्ति पाते है. मेरे जैसे तेरे शरण में, गीत गाते है, तेरी भक्ति करना मनको, सुंदर लगता है. सिद्धाचल का० ३३. हे मरूदेवीना जाया ( राग हे त्रिशलाना जाया) जा तारो० For Private and Personal Use Only जा तारो० सिद्धाचल का० Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारा नामनी आ दुनियामां, वर्ते शीतल छाया.२ तारी भक्ति दिलमां धरीने, तारा शरणे आव्या, आंगी तारी सुंदर रचवा, मोंघा फूलो लाव्या; अलबेला आदीश्वर प्यारा(२) विमलगिरिना राया. हे मरूदेवी० दीक्षा ग्रहीने प्रथम दिनथी, तमे रह्या उपवासी, एक वरस ने अधिक महिनो, तो पण नहि उदासी; वर्षीतपनो महिमा न्यारो, श्रेयांस सुख पाया है.हे मरूदेवी० पूर्व नव्वाणुं वार पधारी, पावन कीधुं धाम, सिद्धि अनंती आ तीर्थमा, श्री सिद्धाचल नाम; भक्त तणो पोकरा सुणीने, दरिशन दो जिनराया. हे मरूदेवीना जाया० ३४. साहिबो, सोरठमां सोहामणो रे.... साहिबो, सोरठमां सोहामणो रे, हे व्हालो मारो, सुनंदानो भरथार० साहिबो... साहिबो, विमलाचलमा राजतो रे, हे व्हालो मारो, मरूदेवीनो दुलार० साहिबो... साहिबो पूर्व नव्वाणुं आवीयो रे, हे व्हालो मारो करूणारस भंडार० साहिबो... साहिबो दुःखीयाना दुःख भांगतो रे, हे व्हालो मारो जगनो छे किरतार० साहिबो... १२६ For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५. तमे आदिनाथ आदिनाथ (राग - ताली पाडी अरिहंत) तमे आदिनाथ आदिनाथ बोलजो रे, तमे प्रेमे विमलगिरि भेटजो रे० तमे सोरठ देशमां आवजो रे, मारा दादाना गीतो गावजो रे० तमे नव्वाणुं यात्रा करजो रे, पछी कर्मोना डेरा काढजो रे० मोटा संघ लइने आवजो रे, सोनारूपाथी गिरि वधावजो रे० दादा सेवकनी अरजी धारजो रे, तारा भक्तोने पार उतारजो रे० ३६. सिद्धगिरि भेटवा जइए... (राग-प्यारो प्यारो रे पास जिणंद मने प्यारो) सिद्धगिरि भेटवा जइए... चालो चालो रे(२) सिद्धगिरि भेटवा जइए, मरूदेवी मातानो नंद बिराजे, महिमा जगमां गाजे रे० कामी कपटीने केइ पापी, आ तीस्थमां आव्या, मुक्ति निलयगिरि दरशन करता, झटपट मुक्ति पाम्या रे० श्री सीमंधर महिमा भाखे, शत्रुजय गुण बोले, त्रण भवनमा तीरथ न आएँ, कुण शत्रुजय तोले - रे० १२७ For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करूणारसथी नयनो छलके देखी मनडु मलके, मनमोहन आदीश्वर भेटी, आनंद सागर छलके केडे हाथ दइने चढशुं, यात्रा नव्वाणुं करशुं, जीवशुं मरशुं इण गिरिधामे, ध्यान ऋषभर्नु धरशुं २० विविध प्रकारी पूजा रचावी, प्रेमे प्रदक्षिणा देशु, रायणतले ध्यान लगावी, पुंडरिक गणधर वंदशुं रे० ३७. आशिष आपो (राग - तुं प्रभु मारो) आशिष आपो, दुःख मारा कापो, मरूदेवी नंदन दरिशन आपो... द्राविडने वारिखिल्ल मुनिवर, सिद्धाचलमां थया रे शिवधर दुर्गति कापो, समकित थापो... करूणा करीने उपदेश आप्यो, गणधर पुंडरिक शिवपुर थाप्यो, जगमां तुं साचो, दिलमांहे राचो.... तारा शरणे जे कोइ आव्या, करूणा आणी भवथी छोडाव्या; शिवपद आपो, संसार कापो... विमलाचल भूषण आदीश्वर, प्रथम नरेसर, प्रथम जिनेश्वर; सिद्धगिरि साचो, मोहने तमाचो... १२८ For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८. तमे एकवार पालीताणा आवजो रे.... (राग - पेला शेत्रुंजयना डुंगरावाला) तमे एकवार पालीताणा आवजो रे, तमे आवीने आदिनाथ भेटजो रे० सोरठ देशमां पालीताणा गाम छे, शेत्रुंजी नदीना तीरे ए धाम छे; हे तमे आदिनाथ आदिनाथ बोलजो रे० सिद्धशिलानी बेटी तलेटी छे, बाबुना देरानी ज्योति तो मोटी छे; हे तमे श्रीफलनी जोड साथे लावजो रे० देश विदेशोथी यात्रालु आवता, आदिनाथ दादाना गुणला गावता; हे तमे सूरजकुंडमां नाहजो रे० रायणवृक्ष नीचे पगलां सोहामणा, पुंडरिक गणधरना दर्शन लोभामणा; हे तमे शांतिनाथ दादाने देखजो रे० नवनिधि करती नव दूंको छे सारी, घेटीना पगले मूर्ति छे मनोहरी; हे तमे मोतीशानी ट्रंके आवजो रे० ३९. मारे रे सिद्धाचल ( राग प्रभु तारुं गीत मारे) मारे रे सिद्धाचल जावुं छे, १२९ For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ऋषभनुं मुखडुं जोवुं छे. मारे रे... जगमां तारी शीतल छाया, सहुने लागी तारी माया. भक्तिनी सरितामां न्हावुं छे. मारे रे... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उंचा उंचा डुंगर डोले, आदीश्वर दादा त्यां झुले; दादाजीना जेवुं मारे थावुं छे. मारे रे... भाव धरीने यात्रा करवी, बार छ गाउनी फेरी करवी; तलेटीनी पूजा करवी छे. मारे रे.... पूनम भरवा कंइक आवे, रत्न घरेणां मोघां लावे, गिरिराजनी छायामां मारे रहेवुं छे. मारे रे.... ४०. नवरावं रूडा गिरिराज ( राग मारो धन्य बन्यो ) हे नवरावं रूडो गिरिराज, हैया सहुना हेले चढ्या; हे, आजे आनंद उपन्यो अपार, हैया... गंगा जमनाना पाणी मंगावं, पद्मसरोवरनी रचना करावं; हो... तेमां भाव रेडावुं अपार ... फूलोना रंगथी तलेटी सजावुं; डुंगर गुलाबी रंगे रंगावं. हों सोनाथी मढावुं दरबार... आदिनाथ दादाने हार चढावुं, हीरा जडेला मुगट मंगादु; हो... सजु राजा केरो शणगार ... - १३० For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारा दादाजीने प्रेमे नवरावं, अंतरना मेल धोइ पावन था; हो दर्शन देजो भक्तने एकवार. ४१. हे विमलाचलना वासी (राग - हे शंखेश्वर स्वामी) हे विमलाचल वासी, तारा दरिशननो प्यासी, वंदन तुजने करीए, शिवपुरना वासी, हे विमलाचल... कांकरे कांकरे अनंत सिध्या, सिद्धसे भावि अनंत, वदंन मारा होजो, कोटी वार हजार... हे विमलाचल.... त्रण लोकमां महिमावंतु; तीरथ छे आ महान, तीरथ गुण गाता, करीए भवनो पार. हे विमलचल... नव टुंकोनी शोभा न्यारी, सूरजकुंड मनोहर, मंदिरमाही बेठा, जगना तारणहार. हे विमलाचल... भक्ति तारी करवा माटे, आवे लोक अपार, भक्तने वहेला तारो, मुक्तिना दातार. हे विमलाचल.. ४२. सोना-रूपा फूलडे..... (राग • आजनो चांदलियो मने) सोनारूपना(२) फूलडे वधावं, लाल गुलाबनी आंगीए करूं ए, गरवो गिरिराज मने लागे बहु प्यारो, दादा आदिनाथ भवथी उगारे, पापी अभव्य नजरे न देखे, १३१ For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एवो तुज महिमा ज्ञानीओ भाखे, सिद्धाचल भेटी भव्य पद पाउं, गिरि गुण गाता अति हरखावु, कामी कषायी दुराचारी बने छे शिवसुखना अधिकारी, प्रभाव तारो एवो छे न्यारो, ण जगने उद्धारनारी. सीमंधरस्वामी एम ज बोले, कोइ तीरथ नहीं सिद्धाचल तोले. आदिनाथ आदिनाथ धून हुं जगाउं, मेला आतमनो मेल धोवराउं; दर्शन पायो श्री संघ साथे, मुक्तिनुं तिलक करो निज हाथे . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३. मंगलकारी पावनधाम (राग - रघुपति राघव ) मंगलकारी पावनधाम ! तारुं नाम छे हे भगवान, तारुं नाम छे हे भगवान, पापोनुं ते पूर्ण विराम. रखडी रझली जे कोइ आवे, भाव धरीने शीश नमावे, आपे छे तेने आराम, तारूं नाम छे हे भगवान, मंगल० १ कृत्य करेल जे छुपावे, रडता हैयै जो बतावे, कापे तेना कर्म तमाम ! तारुं नाम छे हे भगवान, मनमांथी जे मदने त्यागे, नम्र बनीने शरणुं मांगे, मंगल० २ १३२ For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपे तुज चरणोमां स्थान, तारुं नाम छे हे भगवान मंगल० ३ जगने भूली जे जीव आवे, मस्त बनीने तुजने ध्यावे, आपे तेने अक्षय धाम, तारुं नाम छे हे भगवान, मंगल० ४ ४४. भक्ति भर्यु हैयुं ने ... (राग - चपटी भर चोखाने) भक्ति भर्यु हैयुंने शुद्ध करी भावना, जीवन सफल करी, चालो रे चालो सिद्धाचल जइए रे. दादाना देहरा शोभे, डुंगरीये वंदन करवा जइए रे. चालो . पतित पावन भूमि सिद्धिगिरराजनी, ध्यान हृदय धरी लइए रे... चालो . कण कण जेनो शक्ति देनारो, भावे भक्ति करी लइए रे... चालो . शाश्वत तीरथ शोभे जगतमां, दर्शनथी निर्मल थइए रे... चालो . भावथी आवे ते कर्म खपावे, उज्जवल मन करी लइए रे... चालो भक्तो तमारा गीतडा गावे, गिरिवर शरणे जइए रे.. चालो . ४५. यह है पावन भूमि यह है पावन भूमि, यहां बार बार आना, 1 आदिनाथ के चरणों में आकर के झूक जाना. तेरे मस्तक में मुगट है... तेरे कानोमें कुंडल है, १३३ For Private and Personal Use Only यह० Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुं तो करुणा सागर है, मुज पर करुणा करना. यह० तुं जीवन स्वामी है, तुं अंतर्यामी है, मेरी बिनती सुन लेना, भव पार तु कर देना. . यह० तेरी सावली सूरत है, मेरे मनको लुभाती है, मेरे प्यारे प्यारे आदिनाथ, युग-युग में अमर रहना. यह० तेरा शासन सुंदर है, सभी जीवों का तारक है, मेरी डूब रही नैया, नैया पार लगा देना. यह० ४६. जब कोई नही आता... जब कोई नहीं आता, मेरे दादा आते है, मेरे दुःख के, दिनो में वो बडे याद आते है. जब कोई. मेरी नैया चलती है, पतवार नहीं चलती, किसी और की अब मुजको, दरकार नहीं होती, मैं डरता नहीं जगसे, प्रभु साथ होते हैं.मेरे दु:ख के०...१ कोई याद करे इनको, दुःख हलका हो जाये, कोई भक्ति करे इनकी, वो इनके हो जाये, ये बिन बोले कुछ भी, पहचान जाते हैं. मेरे दुःखके०...२ ये इतने बड़े होकर, भक्तों से प्यार करे, अपने भक्तों के दुःख को, ये पल में दूर करे, अपने भक्तों का कहना, प्रभु मान जाते हैं.मेरे दुःखके०...३ मेरे मनके मंदिर में, दादा का वास रहे, कोई पास रहे ना रहे, मेरे दादा पास रहे, मेरे व्याकुल मनको, प्रभु जान जाते हैं. मेरे दुःखके०...४ १३४ For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७. मारो हेलो सांभलो शत्रुजयना राजा, नाभिरायाना बेटा, माता मरूदेवीना नंद... मारो हेलो सांभलो हो...जी हुकम करो तो दादा जात्राए आवं, भवोभवना कर्म खपावी, मोक्षपुरीमां जावं... मारो हेलो सांभलो हो...जी उंचा उंचा डुंगरोने, वसमी छे वाट, केम करीने आवू दादा, पकडो मारो हाथ... मारो हेलो सांभलो हो...जी नर अने नारी तारी जात्राए आवे, जनमो जनम ना कर्म खपावी, मोक्षपुरीमा जावे... मारो हेलो सांभलो हो...जी आदिश्वर दादा अद्भूत लीला तारी, आ सेवकनो हाथ पकडी, लई लो तमे उगारी... मारो हेलो सांभलो हो...जी ४८. सिद्धाचल का नाथ है हमारा... सिद्धाचल का नाथ है हमारा तुम्हारा...(२) इस तीरथ में जो भी आये मिले न जनम दुबारा... सिद्धाचल का. कान में कुंडल डोले... मस्तक मुगट सुहाये कैसी सुंदर काया... भक्तों के मन भाये मन की इच्छा पूरी होवे... आये द्वार तिहारा...सिद्धाचल का. १३५ For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुक्ति से भक्ति प्यारी... कहते ज्ञानी ध्यानी इसके चरणकमल में... बीते सारी जिंदगानी सच्चे दिलसे ध्यान लगा दो... होवे वारा न्यारा... सिद्धाचल का. इस तीरथ के कंकर... पथ्थर हम बन जाये भक्त हम पे चलकर ... दर्शन तेरा पाये अंतिम इच्छा पूरी होवे... जीवन हो सुखकारा... सिद्धाचल का. सिद्धाचल का आदिनाथ लीला अजब दीखाता इसके चरण में जो भी आये, बेडा पार लगाता राय और रंक को भी तारे जग के तारण हारा... For Private and Personal Use Only सिद्धाचल का. ४९. आशरा इस जहां का... आशरा ईस जहां का मिले ना मिले मुज को तेरा सहारा सदा चाहिये... यहां खुशीयाँ है कम और ज्यादा है गम जहां देखो वहां है भरम ही भरम मेरी महेफील में (२) शमां जले ना जले मुजको तेरा उजाला सदा चाहिये मेरी धीमी है चाल और पथ है विशाल हर कदम पर मुसीबत है... अब तो संभाल : पैर मेरे थके है... (२) चले ना चले... मुजको तेरा इशारा सदा चाहिये १३६ आशरा. आशरा. आशरा. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आशरा. कभी वैराग है कभी अनुराग है जहां बदलते है माली वो ही बाग है मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे मेरे दिल में बसेरा तेरा चाहिये... ५०. आंख मारी उघडे त्यां आंख मारी उघडे त्यां सिद्धाचल देखुं मंदिरमा बेठा मारा आदिनाथ देखं आदिनाथ देखू तो मन हरखातु धन्य धन्य जीवन मारुं कृपा एनी लेखें अंतरनी आंखोथी दरिशन करतां नयणा अमारा निशदिन ठरतां तारी रे मूरतीये मारुं मन ललचाणुं नवण करावीने अंतर पखालुं केशर चढावी मारा कर्मोने बालुं चंदन चढावी मनने शीतल बनाएं सोना रूपाना फूलडे वधावू अंतरथी हुं तारी आरती उतारूं भवोभव मारे शरणुं तमारं निशदिन तारा गुणला हुं गावं शिव मस्तु सर्वनी भावना हुं भावु ज्यारे ज्यारे याद करूं तुजने हुं देखें धन्य धन्य... धन्य धन्य... धन्य धन्य... धन्य धन्य... १३७ For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१. इतनी शक्ति हमें देना... इतनी शक्ति हमें दे ना दाता मन का विश्वास कमजोर हो...ना . हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना... दूर अज्ञान के हो अंधेरे तूं हमें ज्ञान की रोशनी दे हर बुराई से बचकर रहे हम जितनी भी दे भली जिंदगी दे... वैर हो ना किसी का किसीसे भावना मन में बदले की हो ना... हम न सोचें हमें क्या मिला है हम ये सोचे किया क्या है अर्पण... फूल खुशियों के बाटे सदा हम सबका जीवन बन जाये मधुवन अपनी करुणा का जल तूं बहा के कर दे पावन हर इक मन का कोना... ५२. आव्यो दादाने दरबार आव्यो दादाने दरबार, करो भवोदधि पार, खरो तुं छे आधार, मोहे, तार, तार, तार.... आत्मगुणनो भंडार, ताहरा महिमा नो नहीं पार, देख्यो सुंदर देदार करो पार, पार, पार... १३८ For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारी मूर्ति मनोहार, हरे मन ना विकार, खरो हैयानो हार, वंदू वार, वार, वार.... आव्यो सिद्धाचल मोझार, कर्यो आदिनाथ जुहार, प्रभु, चरण आधार, खरो सार, सार, सार... आत्म कमल सुधार, ताहरी लब्धि छे अपार, एनी खुबीनो नहीं पार, विनंती धार, धार, धार... ५ बुद्धि-किर्ति-कैलास-कल्याण-पद्म ने तु तार, वर्धमान ने वधार, विनती धार, धार, धार... ५३. धून - सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय नमो नमः तीर्थ सिद्धाचलाय सिद्धगति दायक सिद्धाचलाय, पाप पखालन सिद्धाचलाय सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय नमो नमः तीर्थ सिद्धाचलाय नित सुमराय सिद्धाचलाय, नित वंदनाय सिद्धाचलाय सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय, नमो नमः तीर्थ सिद्धाचलाय मंगलकारी सिद्धाचलाय, भवदुःख वारण सिद्धाचलाय सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय, नमो नमः तीर्थ सिद्धाचलाय ए गिरी शाश्वत सिद्धाचलाय, तीर्थ शिरोमणि सिद्धाचलाय सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय, नमो नमः तीर्थ सिद्धाचलाय समकित दायक सिद्धाचलाय, भवभयभंजन सिद्धाचलाय सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय, नमो नमः तीर्थ सिद्धाचलाय वंदो वंदो सिद्धाचलाय, पापनिकंदन सिद्धाचलाय सिद्धाचलाय नमो सिद्धाचलाय, नमो नमः तीर्थ सिद्धाचलाय १३९ For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४. गिरिवर प्यारोने मोतीडे वधावो गिरिवर प्यारोने मोतीडे वधावो सोनारूपाने फूलडे वधावो.... इण गिरिवरना स्पर्शन करता भवोभव केरा पाप ने खपावो. ईण गिरिवरिये सिद्धा अनंता सोना रूपानी आंगीओ रचावो. ईण गिरिवरखें ध्यान धरता आंतर बाह्य शत्रुओ हरावो.... सीमंधर स्वामी महिमा भाखे त्रण भुवनमां तीरथ नहि आवो.... ५५. आज मारा शत्रुजयमां (राग - आज मारा देरासरमां) आज मारा शत्रुजयमा(२), मोती लइने वरस्या रे, ए गिरिवरने जोतां जोता(२) हैया सहुना हरख्या रे. आज मारा० थाल भरीने चोखा लइने, सिद्धाचलमां आव्या रे, प्यारो प्यारो गिरिराज वधावी(२) आनंदसागर उमट्यो रे. आज मारा० मोंघा मूला मोती लइने, ए गिरिवर वधाव्या रे, ए तीरथनी यात्रा करता(२) हैया पावन थाय रे. आज मारा० १४० For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नौ खमासमणों के दोहे सिद्धाचल समरुं सदा, सोरठ देश मोझार मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार... सोरठ देशमां संचर्यो, न चढ्यो गढ गिरनार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेत्रुंजी नदी नाह्यो नहि, एनो एले गयो अवतार... शेत्रुंजी नदीए नाहीने, मुख बांधी मुखकोश देव युगादि पूजीए, आणी मन संतोष.... एकेकुं डगलुं भरे, शत्रुंजय सामु जेह ऋषभ कहे भव क्रोडना, कर्म खपावे तेह... शत्रुंजय समो तीरथ नहि, ऋषभ समो नहि देव गौतम सरिखा गुरु नहि, वली वली वंदु तेह... जगमां तीरथ दो वडा, शत्रुंजय गिरनार एक गढ ऋषभ समोसर्या, एक गढ नेमकुमार ... सिद्धाचल सिद्धिवर्या, मुनिवर कोडि अनंत आगे अनंता सिद्धशे, पूजो भवि भगवंत... शत्रुंजय गिरिमंडणो, मरूदेवानो नंद युगलाधर्म निवारणो, नमो युगादि जिणंद .... तन-मन-धन- -सुत-वल्लभा, स्वर्गादिक सुख भोग वली वली ए गिरि वंदता शिवरमणी संयोग... I १४१ For Private and Personal Use Only १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ९ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || श्री सिद्धाचलजी के इक्कीस खमासमणों के दोहे || सिद्धाचल समरूं सदा, सोरठ देश मोझार; मनुष्य जन्म पामी करी वंदु वार हजार. अंग वसन मन भूमिका, पूजोपगरण सार; न्यायद्रव्य विधिशुद्धता, शुद्धि सात प्रकार. कार्तिक सुदि पूनम दिने, दशकोटी परिवार; द्राविड वारिखिल्लजी, सिद्ध थया निरधार. तिण कारण कार्तिक दिने, संघ सयल परिवार; आदि जिन सन्मुख रही, खमासमण बहु वार; एकवीश नामे वर्णव्यो, तीहां पहेलुं अभिधान; (शत्रुजय) शुकराजथी, जनक वचन बहुमान, (सिद्धाचल समरूं सदा, यह दोहा संपूर्ण बोलकर खमासमण देना) सि.१ समोसर्या सिद्धाचले, श्री पुंडरिक गणधार; लाख सवा महातम कर्दा, सुर नर सभा मोझार. चैत्री पूनमने दिने, करी अणसण एक मास; पांच कोडि मुनि साथ\, मुक्ति-निलयमा वास. तिणे कारण (पुंडरिकगिरि), नाम थयुं विख्यात; मन वच काये वंदीए; उठी नित्य प्रभात. सि.२ वीश कोडिशुं पांडवा, मोक्ष गया इणे ठाम; एम अनंत मुगते गया, (सिद्धक्षेत्र) तिणे नाम. सि. ३ अडसठ तीरथ न्हावतां, अंतरंग घडी एक; १४२ For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुंबी-जल स्नाने करी, जाग्यो चित्त विवेक. चंद्रशेखर राजा प्रमुख, कर्म कठिन मल धामः अचलपदे विमला थया, तिणे ( विमलाचल) नाम; सि. ४ पर्वतमां सुरगिरि वडो, जिन अभिषेक कराय; सिद्ध हुआ स्नातक पदे, सुरगिरि नाम धराय . भरतादि चौद क्षेत्रमां ए समो तीरथ न एक; तिणे (सुरगिरि) नामे नमुं, जिहां सुरवास अनेक. सि. ५ एंशी योजन पृथुल छे, ऊंचे पणे छव्वीश; महिमाए मोटो गिरि, (महागिरि) नामे नमीश. गणधर गुणवंता मुनि, विश्वमांहे वंदनिक: जेहवो तेहवो संयमी ए तीर्थे पूजनिक. विप्रलोक विषधर समा, दुःखिया भूतल मानः द्रव्यलिंगी कणक्षेत्र सम, मुनिवर छीप समान. श्रावक मेघ समा कह्या, करता पुण्यनुं काम; पुण्यनी राशि वधे घणी, तिणे (पुण्यराशि) नाम. संयमधर मुनिवर घणा, तप तपता एक ध्यान कर्म-वियोगे पामिया, केवल - लक्ष्मी-निधान. लाख एकाणुं शिव वर्या, नारदशुं अणगार; नामनमो तिणे आठमुं, (श्रीपदगिरि) निरधार. श्री सीमंधर स्वामीए, ए गिरिमहिमा विलास; इंद्रनी आगे वरणव्यो, तिणे ए (इंद्रप्रकाश). दशकोटी अणुव्रतधरा, भक्ते जमाडे सार; जैन तीरथ यात्रा करे, लाभ तणो नहि पार. १४३ For Private and Personal Use Only सि. ६ सि. ७ सि. ८ सि. ९ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेह थकी सिद्धाचले, एक मुनिने दान; देतां लाभ घणो हुवे, (महातीर्थ) अभिधान. सि. १० प्राये ए गिरि शाश्वतो, रहेशे काल अनंत; शत्रुजय महातम सुणी, नमो (शाश्वतगिरि) संत, सि. ११ गौ नारी बालक मुनि, चउ हत्या करनार; यात्रा करता कार्तिकी, न रहे पाप लगार. जे परदारा लंपटी, चोरीना करनार. देवद्रव्य गुरुद्रव्यना, जे वली चोहणहार, चैत्री कार्तिकी पूनमे, करे यात्रा ईणे ठाम; तप तपतां पातिक गले, तिणे (दृढशक्ति) नाम. सि. १२ भवभय पामी नीकल्या, थावच्चा-सुत जेह; सहस मुनिशुं शिव वर्या, (मुक्तिनिलय गिरि) तेह. सि. १३ चंदा सूरज बेउ जणा, ऊभा इणे गिरि शृंग: वधावियो वर्णन करी, (पुष्पदंत) गिरि रंग. सि. १४ कर्म कठण भवजल तजी, ईहां पाम्या शिवसद्म; प्राणी पद्म निरंजनी, वंदो गिरि (महापद्म). सि. १५ शिववहू विवाह उत्सवे, मंडप रचियो सार; मुनिवर वर बेठक भणी, (पृथ्वीपीठ) मनोहर. सि. १६ श्री (सुभद्रगिरि) नमो, भद्र ते मंगल रुप; जल तरु रज गिरिवर तणी, शिष चडावे भूप. सि. १७ विद्याधर-सुर अप्सरा, नदी शेजी विलास; करता हरता पापने, भजीए भवि कैलास. सि. १८ बीजा निर्वाणी प्रभु, गई चोवीशी मोझार; १४४ For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस गणधर मुनिमां वडा, नामे कदंब अणगार. प्रभु वचने अणसण करी, मुक्तिपुरीमां वास: नामे (कदंबगिरि) नमो, तो होय लील विलास. सि. १९ पाताले जस मूल छे, ( उज्जवलगिरि) नुं सार; त्रिकरण योगे वंदता, अल्प होय संसार. तन मन धन सुत वल्लभा, स्वार्गादिक सुखभोग; जे वंछे ते संपजे, शिवरमणी-संयोग. विमलाचल परमेष्ठिनुं, ध्यान धरे षट्मास; सि. २० " तेज अपूरव विस्तरे पूगे (पूरे) सघली आश. त्रीजे भव सिद्धि लहे, ए पण प्रायिक वाच; उत्कृष्टा परिणामथी, अंतरमुहूर्त साच. (सर्व कामदायक) नमो, नाम करी ओलखाण; श्री शुभवीर विजय प्रभुः नमतां क्रोड कल्याण. दादा की प्रदक्षिणा के १०८ दोहे श्री आदीश्वर अजर अमर, अव्याबाध अहोनीश, परमातम परमेश्वरु, प्रणमुं परम मुनीश. जय जय जगपति ज्ञानभाण भासित लोकालोक, शुद्ध स्वरूप समाधिमय, नमित सुरासर थोक. श्री सिद्धाचल मंडणो, नाभि नेरसर नंद, मिथ्यामति मत भंजणो, भविकुमुदाकरचंद. पूर्व नवाणुं जश शिरे, समवसर्या जगनाथ, ते सिद्धाचल प्रणमिए, भक्ते जोडी हाथ. १४५ For Private and Personal Use Only सि. २१ १ २ OC ४ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनंत जीव इण गिरिवरे, पाम्या भव नो पार, ते सिद्धाचल प्रणमिए, लइए मंगलमाल. जल शिर मुकुट मनोहरं, मरुदेवीनो नंद, ते सिद्धाचल प्रणमिए, ऋद्धि सदा सुखवृंद. महिमा जेहनो दाखवा, सुरगुरु पण मतिमंद, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, प्रगटे सहजानंद. सत्ता धर्म समारवा, कारम जेह पडूर, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, नासे अघ सवि दूर. कर्मकाठ सवि टालवा, जेहनुं ध्यान हुताशष ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पामीजे सुखवास. परमानंद दशा लहे, जस ध्याने मुनिराय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पातिक दूर पलाय. श्रद्धा भाषण रमणतां, रत्नत्रयीने हेतु, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, भव मकराकर सेतु. महापापी पण निस्तर्या, जेहनुं ध्यान सहाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सुर नर जस गुण गाय. पुंडरीक गणधर, प्रमुख, सिध्या साधु अनेक, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, आणि हृदय अनेक. चन्द्रशेखर स्वसापति, जेहने संगे सिद्ध, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पामीजे निज ऋद्ध. जलचर तिरिय सवि, पाम्या आतम भाव, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, भवजल तारक नाव. संघ यात्रा जेणे करी, कीधा जेणे उद्धार, १४६ For Private and Personal Use Only ५ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, छेदीजे गति चार. पुष्टि शुद्ध संवेग रस, जेहने ध्याने थाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, मिथ्यामति सवि जाय. सुरतरु सुरमणि सुरगवी, सुरघट सम जस ध्याव, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, प्रगटे शुद्ध स्वभाव. सुरलोके सुरसुंदरी, मली मली थोके थोके, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, गावे जेहना श्लोक. योगीसर जस दर्शने, ध्यान समाधि लीन, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, हुवा अनुभव रस लीन. मानुं गगने सूर्य शशी, दिये प्रदक्षिणा नित्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए महिमा देखण चित्त. सुर असुर नर किन्नरा, रहे जेहनी पास, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पामे लील विलास. मंगलकारी जेहनी, मृतिका हारी भेट, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, कुमति कदाग्रह मेट. कुमति कौशिक जेहने देखी जांखी थाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए सवि तस महिमा गाय. सूरजकुंडना नीरथी, आधि व्याधि पलाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, जस महिमा न कहाय. सुंदर ट्रंक सोहामणी, मेरु सम प्रासाद, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए दूर टले विखवाद. द्रव्य भाव वैरी घणा, जिहां आव्ये होय शांत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, जाये भवनी भ्रांत. १४७ For Private and Personal Use Only १६ १७ १८ १९ २० २१ 2 2 2 2 w २२ २३ २४ २५ २६ २७ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जगहितकारी जिनवरा, आव्या इणे ठाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, जस महिमा उद्दाम. नदी शत्रुजी स्नानथी, मिथ्यामल धोवाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सवि जनने सुखदाय. आठ कर्म जे सिद्धगिरे, न दिये तीव्र विपाक, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, जिहां नवि आवे काक. सिद्धशिला तपनीयमय, रत्न स्फटिक खाण, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पाम्या केवलनाण. सोवन रूपा रत्ननी, औषधि जात अनेक, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, न रहे पातिक एक. संयमधारी संयमे, पावन होय जिण क्षेत्र, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, देवा निर्मल नेत्र. श्रावक जिहां शुभ द्रव्यथी, उत्सव पूजा स्नात्र, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पोषे पात्र सुपात्र. साहमिवत्सल पुण्य जिहां, अनंतगणु कहेवाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सोवन फुल वधाय. सुंदर यात्रा जेहनी, देखी हरखे चित्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, त्रिभुवनमांहे विदित. पालीताणुं पुर भलु, सरोवर सुंदर पाल, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, जाये सकल जंजाल. मन मोहन पागे चढे, पग पग कर्म खपाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, गुण गणी भाव लखाय. जेणे गिरि रूख सोहामणा, कुंडे निर्मल नीर, १४८ For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, उतारे भव तीर. मुक्ति मंदिर सोपान सम, सुंदर गिरिवर पाज, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, लहिये शिवपुर राज. कर्म कोटी अघ विकट घट, देखी ध्रुजे अंग, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, दिन दिन चढते रंग. गौरी गिरिवर ऊपरे, गावे जिनवर गीत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सुखे शासन रीत. कवड जक्ष रखवाल जस, अहोनिश रहे हजुर, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, असुरा राखे दूर. चित्त चातुरी चक्केसरी, विघ्न निवारणहार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, संघ तणी करे सार. सुरवरमां मधवा थया, ग्रहगणमां जिम चंद, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, तिम सवि तीरथ इंद. दीठे दुर्गतिवारणो, समर्यो सारे काज, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सवि तीरथ शिरताज. पुंडरीक पंच कोडीशुं, पाम्या केवलनाण, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, कर्म तणी होय हाण. मुनिवर कोडी दश सहित, द्राविड ने वारिखिल्ल, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, चढिया शिव निश्रेण. नमि विनमि विद्याधरा, दोय कोडी मुनि साथ, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पाम्या शिवपुर साथ. ऋषभवंशीय नरपति घणा, गिरि पहोता मोक्ष, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, टाल्या पातिक दोष. १४९ For Private and Personal Use Only ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७ ४८ ४९ ५० Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राम भरत बिहुं बांधवा, त्रण कोटी मुनि यत्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, इणे गिरि शिवसंपत्त. नारद मुनि निर्मला, साधु एकागुं लाख, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, प्रवचन प्रगट ए भाख. शांब प्रद्युमन ऋषि कह्या, साडी आठ कोडी, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पूरव कर्म विछोडी. थावच्चासुत सहसशु, अणसण रंगे कीध, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, वेगे शिवपद लीध. शुक परिव्राजक वली, एक सहस अणगार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पाम्या शिवपुर द्वार. सेलगसूरि मुनि पांचसे, सहित हुआ शिवनाह, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, अंगे धरी उत्साह. इम बहु सिध्या इणे गिरि, कहेतां नावे पार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, शास्त्र मांहे अधिकार. बीज इहां समकिततj, रोपे आतम भोम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, टाले पातक स्तोम. ब्रह्म स्त्री भ्रुण गौ हत्या, पापे भारित जेह, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पहोतां शिवपुर गेह. जग जोता तीरथ सवे, ए सम अवर न दीठ, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, तीर्थमाहे उक्किट्ठ. धन्य धन्य सोरठ देश जिहां तीरथ मांहे सार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, जनपद मां शिरपाद. अहोनिश आणत दूंकडा, ते पण जेहने संग, १५० For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पाम्या शिववधू रंग. विराधक जिन आणना, ते पण हुआ विशुद्ध, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पाम्या निर्मल बुद्ध. महाम्लेच्छ शासनरिपु, ते पण हुआ उपसंत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, महिमा देखी अनंत. मंत्र योगे अंजन सेवे, सिद्ध हुवे जिण ठाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पातकहारी नाम. समति सुधारक वरसते, कर्मदावानल संत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, उपशम तस उलसंत. श्रुतधर नित नित उपदिशे, तत्त्वातत्त्व विचार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, ग्रहे गुणायुत श्रोतार. प्रियमेलक गुणागणा तणु, कीरतिकमला सिंधु, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, कलिकाले जगबंधु . श्री शांति तारण तरण, जेहनी भक्ति विशाल, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, दिन-दिन मंगलमाल. श्वेत ध्वजा जस लटकती, भाखे भविने एम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, भ्रमण करो छो केम? साधक सिद्ध दशा भणी, आराधे एक चित्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, साधक परम पवित्त. संघपति थइ एहनी, जे करे भावे यात्र, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, तस होय निर्मल गात्र. शुद्धातमगुण रमणता, प्रगटे जेहने संग, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, जेहनो जस अभंग. १५१ For Private and Personal Use Only ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९. ७० ७१ ७२ ७३ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रायणवृक्ष सोहामणुं, जिहां जिनेश्वर पाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमि, सेवे सुर नर राय. पगलां पूजी ऋषभनां, उपशम जेहने संग, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, समता पावन अंग. विद्याधर मिले बहु, विचरे गिरिवर शृंग, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, चढते नवरस रंग. मालती मोगर केतकी, परिमल मोहे भृंग, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पूजे भवि जिन अंग. अजित जिनेश्वर जिहां रह्या, चोमासुं गुण गेह, ते तीर्थेश्वर प्रममिए, आणी अविहड नेह. शांति जिनेश्वर सोलमां, सोल कषाय करी अंत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, चातुर्मास रहंत. म विना जिनवर सवे, आव्या छे इण ठाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, शुद्ध करे परिणाम. नमिनेमि जिन अंतरे, अजित शांतिस्तव कीध, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, नंदिषेण प्रसिद्ध. गणधरमुनि उवज्झाय तिम, लाभ लह्या केइ लाख, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, ज्ञान अमृतरस चाख. नित्य घंटा टंकाखे, रणझवे झल्लरी नाद, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, दुंदुभि मादल वाद. जेणे गिरि भरतनरेसरे, प्रथम कीधो उद्धार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, मणिमय मूरती सार. चौमुखी चउगति दुःख हरे, सोवनमय सुविहार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, अक्षय सुख दातार. १५२ For Private and Personal Use Only ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ ७९ ८० ९१ ८२ ८३ ८४ ८५ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इणे तीरथ महोटा कह्या, सोल उद्धार सक्कार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, लघु असंख्यविचार. द्रव्य भाव वैरी तणो, जेह थी थाये अंत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, शत्रुंजय समरंत. पुंडरीक गणधर हुआ, प्रथम सिद्ध इणे ठाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पुंडरीक गिरि नाम. कांकरे- कांकरे इण गिरि, सिद्ध हुआ सुपवित्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सिद्धक्षेत्र समचित्त. मल द्रव्य भाव विशेषथी, जेहथी जाये दूर, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, विमलाचल सुखपूर. सुरवरा बहु जे गिरे, निवसे निरमल ठाण, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सुरगिरि नाम प्रमाण. परवत सहु मांही वडो, महागिरि तिणे कहंत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, दरशन लहे पुण्यवंत. पुण्य अनर्गल जेहथी, थाये पाप विनाश, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, नाम भलुं पुण्यराश. लक्ष्मीदेवी ए कर्यो, कुंडे कमल निवास, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए पद्मनाम सुवास . सवि गिरि मां सुरपति समो, पातक पंक विलात, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पर्वत इन्द्र विख्यात. त्रिभुवनमां तीरथ सवे, तेहमां मोटो एह, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, महातीरथ जस रेह. आदि अंत नहीं जेहनो, कोई काले न विलाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, शाश्वतगिरि कहेवाय. १५३ For Private and Personal Use Only ८६ ८७ ८८ ८९ ९० ९१ ९२ ९३ ९४ ९५ ९६ ९७ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० १०१ . . भद्र भला जे गिरिवरे, आवे होय अपार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, नाम सुभद्र संभार. वीर्य वधे शुभ साधुने, पामी तीरथ भक्ति, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, नामे जे द्रढशक्ति. शिवगति साधे जे गिरि, ते माटे अभिधान, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, मुक्तिनिलय गुणखाण. चंद्र सूरज समकितधरा, सेव करे शुभ चित्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पुष्पदंत विदित. भिन्न रहे भवजल थकी, जे गिरि लहे निवास, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, महापद्म सुविलास. भूमि धरी जे गिरिवरे, उदधि न लोपे पीह, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पृथ्वीपीठ अनीह. मंगल सवि मलवातj, पीठ एह अभिराम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, भद्रपीठ जसनाम. मूल जस पाताल में, रत्नमय मनोहार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पाताल मूल विचार. कर्मक्षय होवे जिहां, होय सिद्धि सुखकेल, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, अकर्मक मन मेल. कामित सवि पुरण होय, जेहनुं दरिसन पाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सर्वकाम मन ठाम. इत्यादिक एकवीश भला, निरूप नाम उदार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, आतम शक्ति अनुसार. १०४ १०५ १०६ qolg १०८ १५४ For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||१|| ।।२।। | श्री भक्तामर-स्तोत्रम् | भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणिप्रभाणामुद्योतकं दलित-पाप-तमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिन-पादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम् यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय तत्त्वबोधादुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथैः । स्तोत्रै जगत्रितय-चित्तहरैरुदारैः स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चित-पादपीठ! स्तोतुं समुद्यत-मति विगत-त्रपोऽहम् । बालं विहाय जल-संस्थितमिन्दु-बिम्बमन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र! शशाङ्क-कान्तान् कस्ते क्षमः सुरगुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश! कर्तुं स्तवं विगत-शक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्याऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्र नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम ||३|| 1४11 |५|| १५५ For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir I त्वद्भक्तिरेव मुखरी- कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति तच्चारु-चूत-कलिका-निकरैकहेतुः त्वत्संस्तवेन भवसन्तति - सन्निबद्धं पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्त-लोकमलिनील-मशेषमाशु सूर्यांशु-भिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेदमारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु मुक्ताफल- द्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः आस्तां तव स्तवनमस्त समस्त-दोषं त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि नात्यद्भूतं भुवन भूषण ! भूतनाथ ! भूतै र्गुणै र्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ? दृष्ट्वा भवन्तमनिमेष-विलोकनीयं नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकर - द्युति - दुग्ध-सिन्धोः क्षारं जलं जलनिधेरशितुं क इच्छेत् ? १५६ For Private and Personal Use Only ॥६॥ ।।७।। ।।८।। ।।९।। ।।१०।। 1199 || Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||१२।। ||१३|| ||१४|| यैः शान्तराग-रुचिभिः परमाणुभिस्त्वं निर्मापितस्त्रिभुवनैक-ललामभूत! तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं न हि रूपमस्ति वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्रहारिनिःशेष-निर्जित-जगत्-त्रितयोपमानम् । बिम्बं कलङ्क-मलिनं क्व निशाकरस्य यद् वासरे भवति पाण्डु पलाश-कल्पम् सम्पूर्ण-मण्डल-शशाङ्क-कला-कलापशुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंघयन्ति । ये संश्रिता स्त्रिजगदीश्वर! नाथमेकम् कस्तान् निवारयति संचरतो यथेष्टम् चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभि नींत मनागपि मनो न विकार-मार्गम् । कल्पान्तकाल-मरुता चलिताचलेन किं मन्दराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित्? निर्धूम-वर्तिरपवर्जित-तैल-पूरस कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि । गम्यो न जातु मरुतां चलिता चलानां दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ! जगत्प्रकाशः नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महाप्रभावः १५७ ||१५|| ||१६।। For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूर्यातिशायि महिमासि मुनीन्द्र ! लोके नित्योदयं दलितमोह-महान्धकारं गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति विद्योतयज्जगदपूर्व शशाङ्क-बिम्बम् किं शर्वरीषु शशिनाऽह्नि विवस्वता वा ? युष्मन्मुखेन्दु- दलितेषु तमस्सु नाथ ! निष्पन्न शालि वनशालिनी जीवलोके कार्यं कियज्जलधरै र्जलभार- नम्रः ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु । तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं नैवं तु काच-शकले किरणाकुलेऽपि मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः कश्चिन्मनो हरति नाथ ! भवान्तरेऽपि स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता । सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि प्राच्येव दिग् जनयति स्फुरदंशुजालम् १५८ For Private and Personal Use Only ।।१७।। 119211 ।।१९ ।। ||२०|| ।।२१।। ।।२२।। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसमादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्युं नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः त्वामव्ययं विभुमचिन्त्य-मसंख्य-माद्यं ब्रह्माण- मीश्वर-मनन्त-मनङ्गकेतुम् । योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित ! बुद्धि-बोधात् त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रय-शङ्करत्वात् । धाताऽसि धीर! शिवमार्ग-विधे विधानात् व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोऽसि तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्ति- हराय नाथ ! तुभ्यं नमः क्षितितलामल-भूषणाय ! तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय ! तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधि-शोषणाय को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषैःस्तवं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश ! दोषैरुपात्त-विविधाश्रय-जातगर्वैः स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि उच्चैरशोकतरु-संश्रित-मुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । १५९ For Private and Personal Use Only ।। २३ ।। ।।२४।। ।। २५ ।। ।।२६।। ।। २७ ।। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्पष्टोल्लसत् किरणमस्त-तमो-वितानं बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्ववर्ति सिंहासने मणि- मयूख-शिखा - विचित्रे विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियद् विलसदंशुलता-वितानं तुङ्गोदयाद्रि-शिरसीव सहस्ररश्मेः कुन्दावदात-चल-चामर-चारुशोभं विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । उद्यच्छशाङ्क- शुचि-निर्झर वारिधार मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् छत्रत्रयं तव विभाति शशाङ्क-कान्तमुच्चैः स्थितं स्थगित- भानुकर-प्रतापम् । मुक्ताफल-प्रकरजाल- विवृद्धशोभं, प्रख्यापयत् त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् उन्निद्र - हेम-नवपङ्कज-पुञ्जकान्ति पर्युल्लसन्नख - मयूख-शिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र ! धर्मोपदेशन- विधौ न तथा परस्य । यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा तादृक् कुतो ग्रह- गणस्य विकाशिनोऽपि १६० For Private and Personal Use Only ।। २८ ।। ।। २९ ।। ।। ३० ।। 1139 11 ||३२|| ||३३|| Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्च्योतन्मदाविल-विलोल कपोलमूल मत्तभ्रमद्-भ्रमरनाद-विवृद्धकोपम् । ऐरावताभ-मिभमुद्धतमापतन्तं दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् भिन्नेभ- कुम्भ-गलदुज्ज्वल-शोणिताक्त मुक्ताफल प्रकर-भूषित-भूमिभागः । बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि नाक्रामति क्रमयुगाचल-संश्रितं ते कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-वह्निकल्पं दावानलं ज्वलितमुज्ज्वल-मुत्स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं त्वन्नामकीर्त्तनजलं शमयत्यशेषम् रक्तेक्षणं समद कोकिल-कण्ठ-नीलं क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्कस्त्वन्नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुंसः वल्गत्तुरङ्ग-गजगर्जित-भीमनादमाजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यद्दिवाकर-मयूख-शिखापविद्धं त्वत्कीर्तनात् तम इवाशु भिदामुपैति कुन्ताग्र- भिन्न- गज-शोणित- वारिवाहवेगावतार-तरणातुर योध- भीमे । १६१ For Private and Personal Use Only ।।३४।। ||३५|| ||३६|| ।। ३७ ।। 113611 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षाः त्वत्पाद-पङ्कज-वनाश्रयिणो लभन्ते अम्भोनिधौ क्षुभित भीषण-नक्रचक्रपाठीन पीठ-भय-दोल्बण- वाडवाऽग्नौ । रङ्गत्तरङ्ग-शिखरस्थित-यानपात्रास्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति उद्भूत भीषण जलोदर भारभुग्नाः शोच्यां दशामुपगताश्च्युत- जीविताशाः । त्वत्पाद-पङ्कज-रजोऽमृत-दिग्धदेहा मर्त्या भवन्ति मकरध्वज-तुल्यरूपाः आपाद-कण्ठमुरु-श्रृङ्खल-वेष्टिताङ्गा गाढं बृहन्निगड-कोटि-निघृष्ट- जङ्घाः । त्वन्नाम- मन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः सद्यः स्वयं विगत-बन्धभया भवन्ति मत्तद्विपेन्द्र - मृगराज- दवानलाऽहिसंग्राम-वारिधि महोदर-बन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानभधीते स्तोत्र- खजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया रुचिर-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कंठगतामजस्रं तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः १६२ For Private and Personal Use Only ** ।। ३९ ।। ।।४० ।। ।। ४१ ।। ।। ४२ ।। ।।४३।। ।। ४४ ।। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातुर्मासिक नित्य आराधना नवकार स्मरण सह निद्रा त्याग. प्रातः राईअ प्रतिक्रमण. आठ थोय से देववंदन. सामूहिक भक्तामर स्त्रोत पाठ. पू. गुरुदेव को वंदन, पच्चक्खाण. जयणापूर्वक तलेटी यात्रा, सामूहिक चैत्यवंदन. ईरियावहियं० करके...श्री शत्रुजय महातीर्थ आराधनार्थ काउस्सग्ग करुं? इच्छं.... श्री शत्रुजय....करेमि काउस्सग्गं वंदणवतियाए० अन्नत्थ० कहकर.... ९ लोगस्स का काउस्सग. नव खमासमण. विधिपूर्वक स्नात्रपूजा, अष्ट प्रकारी पूजा. प्रवचन श्रवण. नित्य एकासणा तप. देवसिय प्रतिक्रमण, संथारा पोरिसी श्रवण. गुरु-देव-सेवा. प्रतिदिन 'श्री शत्रुजय महातीर्थाय नमः (२० माला.) नवकार महामंत्र की बांधी १० माला. ब्रह्मचर्य पालन. विषयकषाय विगई त्याग. १६३ For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवाणुंयात्रा की विधि पांच चैत्यवंदन के स्थल जय तलेटी चैत्यवंदन. श्री शांतिनाथ चैत्यवंदन. श्री रायणपगला चैत्यवंदन. श्री पुंडरिक स्वामी चैत्यवंदन. श्री आदिनाथ दादा चैत्यवंदन, __ घेटी पगले जाकर, दूसरी यात्रा करे तो.... घेटीपाग का चैत्यवंदन... बाकी ४ पूर्व की तरह. पांचों स्थलों में एकबार स्नात्र. रथयात्रा, ९९ प्रकारी पूजा, भव्यअंगरचना प्रतिदिन ३ प्रदक्षिणा, १ बार १०८ प्रदक्षिणा. एकबार १०८ लोग० का काउ, शक्ति हो तो चोविहार छठ्ठ करके ७ यात्रा. घेटी पाग, रोहिशाला, शेव्रुजी नदी से १-१ बार यात्रा. १.५ गाउ, ३ गाउ, ६ गाउ, १२ गाउ की प्रदक्षिणा. नवबार नवढूंक दर्शन ९ चैत्यवंदन. बाकी सब चातुर्मासिक आराधना की तरह करें. १६४ For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २. यात्रा के पर्व दिन १. कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा श्री ऋषभदेवजी के पौत्र द्राविड एवं वारिखिल्ल ने दस करोड मुनियों के साथ सिद्धिपद प्राप्त किया । श्री ऋषभदेव भगवान की निर्वाण कल्याणक तिथि । श्री मरुदेवी माता के चैत्य की वर्षगाँठ | ४. फाल्गुण शुक्ला अष्टमी श्री ऋषभदेव भगवान इस दिन पूर्व - निन्याणवे बार सिद्धाचल पर आये । नमि-विनमि दो करोड मुनियों के साथ मोक्ष गये । माघ कृष्णा www.kobatirth.org ३. माघ शुक्ला पूर्णिमा त्रयोदशी - - . - ५. फाल्गुण शुक्ला १० ६. फाल्गुण शुक्ला पूर्णिमा - श्री Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्ण के पुत्र शाम्ब एवं प्रद्युम्न साढ़े आठ करोड़ मुनियों के साथ भाडवा पर्वत पर सिद्ध हुए। (छः कोस की प्रदक्षिणा) ७. फाल्गुण शुक्ला पूर्णिमा श्री पुण्डरिक स्वामीने पाँच - करोड़ मुनियों के साथ सिद्धगिरि पर अनशन किया। १६५ For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८. चैत्र कृष्णा अष्टमी - ऋषभदेव भगवान के जन्म कल्याणक एवं दीक्षाकल्याण की तिथि। (वर्षीतप का प्रारम्भ दिन) ९. चैत्र शुक्ला पूर्णिमा - श्री पुण्डरिक गणधर ने पाँच करोड़ मुनियों के साथ श@जय पर सिद्धिपद प्राप्त किया। १०. वैशाख कृष्णा १४ . नमि विद्याधर की चर्चा आदि ६४ पुत्रियों ने सिद्ध-पद प्राप्त किया (चर्चगिरि)। ११. वैशाख शुक्ला ३. अक्षय-तृतीया वर्षीतप का पारणा। १२. जेठ कृष्णा ६ . संवत् १५८७ में हुई श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिष्ठा की वर्षगाँठ। १३. आषाढ़ शुक्ला १४ . चौमासी चौदस; चालु वर्ष की अन्तिम यात्रा। १४. अश्विन शुक्ला पूर्णिमा • पाँच पाण्डवों ने बीस करोड़ मुनियों के साथ सिद्धिपद प्राप्त किया। १६६ For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सिद्धगिरि पर मोक्ष गये हुओं की सूची कौन १. श्री ऋषभदेव प्रभु के वंशज... २. पांच पांडव... कितनों के साथ असंख्याता वीश करोड मुनियों के साथ सत्तरह करोड के साथ तेरह करोड के साथ दश करोड के साथ आठ करोड के साथ पांच करोड के साथ पांच करोड के साथ तीन करोड के साथ दो करोड के साथ ३. अजितसेन ... ४. सोमयशा ( बाहुबली के पुत्र) ५. द्राविड और वारिखिल्ल... ६. शांब और प्रद्युम्न ... ७. श्री पुंडरीक गणधर ... ८. भरत मुनि ... ९. राम और भरत (दशरथपुत्र )... १०. नमि और विनमि विद्याधर ११. श्री शांतिनाथ प्रभु के वर्षावास में १२. सागर मुनि १३. श्री सार मुनि १४. कदंब गणधर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साढे १,५२,५५,७७७ मुनियों के साथ एक करोड के साथ एक करोड के साथ एक करोड के साथ एकाणवे लाख के साथ १५. नारदऋषि १६. आदित्ययशा ( भरत महाराज के पुत्र) एक लाख के साथ १७. वसुदेव की स्त्रियाँ पैंतीस हजार के साथ चौदह हजार के साथ १८. दमितारि मुनि १९. अजितनाथ प्रभु के साधु २०. आ. नंदिषेणसूरि महाराज दश हजार के साथ एक हजार के साथ १६७ For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१. नमि विद्याधर की पुत्री चर्चा प्रमुख चौसठ के साथ २२. बाहुबली के पुत्र एक हजार आठ करोड के साथ २३. थावच्चापुत्र एक हजार के साथ २४. शुक परिव्राजक एक हजार के साथ २५, थावच्चा गणधर एक हजार के साथ २६. कालिक एक हजार के साथ २७. सुभद्रमुनि सातसौ के साथ २८. शेलकाचार्य पांचसौ के साथ २९. वैदर्भी चार हजार चारसो करोड के साथ भगवान श्री ऋषभदेव की विविध जानकारी १. भगवान का नाम २. च्यवन कल्याणक ३. जन्म कल्याणक ४. दिक्षा कल्याणक ५. केवलज्ञान कल्याण ६. मोक्ष कल्याणक ७. विमान में से च्यवन ८. जन्म नगरी ९. गर्भकाल १०. पिता का नाम ११. माता का नाम १२. जन्म नक्षत्र ऋषभदेव अषाढ वद ४ चैत्र वद ८ चैत्र वद ८ फागण वद ११ महा वद १३ सर्वार्थसिद्ध विनिता ९ मास ४ दिन नाभि राजा मरूदेवी उत्तराषाढा ૧૬૮ For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३. जन्म राशि १४. लांछन १५. उंचाई १६. आयुष्य १७. वर्ण पदवी १८. १९. लग्न २०. साथ में दिक्षा २१. दिक्षा नगरी २२. दिक्षा वृक्ष २३. दिक्षा तप २४. प्रथम पारणा २५. कितने दिन २६. पारणा दाता २७. छद्मस्थ काल २८. केवलज्ञान स्थल २९. केवलज्ञान तप ३०. गणधर ३१. साधु ३२. साध्वी ३३. वैक्रिय ३४. वादि ३५. अवधि ज्ञानी www.kobatirth.org १६९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only धन वृषभ ५०० धनुष्य ८४ लाख पूर्व सुवर्ण राजा लग्न 8,000 विनिता वट वृक्ष दो उपवास ईक्षु रस से एक साल श्रेयांसकुमार १,००० साल पुरिमताल तीन उपवास ८४ ८४,००० 3,00,000 २०,६०० १२,६५० 8,000 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६. केवली ३७. मनापर्यव ज्ञानी ३८. चौदह पूर्वी ३९. श्रावक ४०. श्राविका ४१. शासन यक्षिणी ४२. प्रथम गणधर ४३. प्रथम साध्वी ४४. मोक्ष स्थल ४५. मोक्ष तप ४६. मोक्षासन ४७. निर्वाण अंतर ४८. भव संख्या ४९. मोक्ष परिवार ५०. गोत्र ५१. वंश ५२. पुत्र ५३. पुत्री ५४. समवसरण की ऊंचाई ५ वर्ष २० युग ८४ लाख वर्ष ८४ लाख पूर्वांग = १७० २०,००० १२,७५० ४,७५० ३,०५,००० ५,५४,००० चक्केश्वरी पुंडरिक स्वामी ब्राह्मी अष्टापदजी छः उपवास पद्मासन ५० लाख कोडी सागर तेरह भव १०,००० कास्यप ईश्वाकु १०० ४८ गाउ १ युग १ शताब्दि १ पूर्वांग १ पूर्व ७०,५६० अबज वर्ष १ पूर्व For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha श्री शत्रुजय महातीर्थ के हुए उद्धार. | चौथे आरे में. १. आदिनाथ प्रभु के समय में भरत चक्रवर्ति द्वारा. २. भरतचक्रवर्ति के वंश में दंडवीर्य राजा द्वारा. ३. दूसरे देवलोक के इन्द्र इशानेन्द्र द्वारा. ४. चौथे देवलोक के इन्द्र माहेन्द्र द्वारा. ५. पांचवे देवलोक के इन्द्र ब्रह्मेन्द्र द्वारा. ६. भवनपति के इन्द्र चमरेन्द्र द्वारा. ७. श्री अजितनाथ प्रभु के समय में सगरचक्रवर्ति द्वारा. ८. व्यंतरेन्द्र द्वारा. ९. श्री चन्द्रप्रभस्वामि के समय में चंद्रयशा राजा द्वारा. १०. श्री शांतिनाथ भगवान के समय में चक्रायुध राजा द्वारा. ११. श्री मुनिसुव्रतस्वामी के समय में श्री रामचंद्रजी द्वारा. १२. श्री नेमिनाथ भगवान के शासन में पांडवों द्वारा. पांचवें आरे में. १३. श्री महावीर स्वामी के तीर्थ में जावडशा द्वारा, १४. श्री बाहडशा मंत्री (अथवा शिलादित्य राजा) द्वारा. १५. समराशा ओसवाल द्वारा. १६. कर्माशा द्वारा. १७. श्री दुप्पसहसूरीश्वरजी के उपदेश से अंतिम उद्धार विमल वाहन राजा करवायेंगे. १७१ For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गिरिराज की गरिमा गिरिराज पर कुल ३,५०७ छोटे-बडे जिनालय हैं. गिरिराज पर कुल २७,००७ जिन बिंब प्रतिष्ठित हैं. गिरिराज पर कुल १५०० चरण पादुका युगल हैं. गिरिराज की उंचाई कुल २००० फिट की हैं. गिरिराज की परिधि कुल ७.१/२ मील की हैं. गिरिराज का यात्रा मार्ग कुल २ मील २ फर्लांग का हैं. गिरिराज पर कुल ३,३६४ सिढ़ियाँ हैं. १७२ For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाँच स्तुतियाँ (१) विद्याधरोने इन्द्रदेवो जेहने नित पूजता, दादा सीमंधर देशनामां जेहना गुण गावता, जीवो अनंता जेहना सानिध्यथी मोक्षे जता, ते विमल गिरिवर वंदता भुज पाप सहु दूरे थता. ( २ ) षट्खंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामता, षोडश कषायो परिहरने सोलमां जिन राजता, चोमास रही गिरिराज पर जे भव्यने उपदेशता, ते शांतिजिनने वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (३) जेनुं झरंतु क्षीर पुण्ये मस्तके जेने पडे, ते त्रण भवमां कर्म तोडी सिद्धि शिखरे जई चडे, ज्यां आदि जिन नव्वाणुं पूर्व आवी सुणावता, रायण पगलां वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (४) जे आदि जिननी आण पामी सिद्धगिरिए आवता, अणसण करी एक मासनुं मुनि पंचक्रोडशुं सिद्धता, जे नामथी पुंडरिकगिरि एम तिहुं जगत बिरदावता, पुंडरिकस्वामी वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (५) जे राजराजेश्वर तणी अद्भुत छटाए राजता, शाश्वतगिरिना उच्च शिखरे नाथ जगना शोभता, जेओ प्रचंड प्रतापथी जगमोहने विदारता, ते आदि जिनने वंदता मुज पाप सहु दूरे थता. १७३ For Private and Personal Use Only १ १ १ १ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री आदिनाथ जिन प्रार्थना ऐश्वर्य केवल लक्ष्मी का ऐसा प्रभु था आपका मिथ्यामति भी शरण लेते त्याग कर संताप का जिस ऋद्धि के एक अंश को, भी तरसते हैं सुरतरु ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं. दर्शन करें नेना मेरे पल-पल मेरे पावन बनें, कर्णों को निशदिन आपका गुण श्रवण मन भावन बनें इस कर युगल से मैं सदा वीतराग की पूजा करूं ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं. चाहुँ नहीं वैभव प्रभुजी ना ही झूठी नामना जगबन्धु अन्तरयामी मेरी एक बस यही कामना शीतल शरण की छाँह में वीतरागी खुद बन जाऊँ मैं ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं. ये चाँद सा मुखडा तुम्हारा पीयूष की वर्षा करे भीगा नहीं पत्थर हृदय, मन मयूर भी तरसा करे पत्थर से मेरे हृदय को कोमल बनाओ हे विभु ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशन सहयोगी कुवाला निवासी स्व. शांताबेन अमुलखदास ढुंगाणी की पुण्य स्मुति में ह. प्रभुभाई परिवार अहमदाबाद निवासी स्व. अनिलभाई जेठालाल शाह की पुण्य स्मृति में ह. निरुबेन, उरेशभाई परिवार अहमदाबाद निवासी श्रीमान् जयंतिलाल जयाबेन शाह ह. राजेशभाई परिवार अहमदाबाद निवासी बंधुद्वय मालव एवं जैनम के जन्मदिन निमित्त ह. इन्दुबेन नविनभाई शाह परिवार 8. कलकत्ता निवासी स्व. नथमलजी रामपुरीया की पुण्य स्मृति में ह. भवरीबाई परिवार गोवा निवासी स्व. प्रविणाबेन राजेशभाई दोशी की पुण्य स्मृति में ह. हेमांगभाई परिवार For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हमारे प्रकाशन www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. मुक्तिना मंगल प्रभाते श्रावक के बारह व्रतों का रोचक विवेचन (गुजराती) २. मुक्ति का महल श्रावक के बारह व्रतों का सरल व रोचक शैली में विवरण (हिन्दी) ३. गुरु कैलासना चरणे चारित्र चूडामणि आ. श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा के जीवन की संक्षिप्त झलकियाँ (गुजराती) ४. श्रीमाली वंशनो इतिहास । विद्याधर कुल भूषण आचार्य श्री स्वयंप्रभसूरि म. द्वारा महाजन संध, श्रीमालीवंश और प्राग्वाट्वंश की स्थापना कब कहाँ, कैसे और क्यों की गई ? उसका इतिहास । (गुजराती) ५. जिनगुण सरिता वर्तमान चौबीसी के प्रत्येक तीर्थंकरों के चैत्यवंदन, स्तवन, स्तुतियों और सज्झायों का संग्रह (गुजराती) ६. बुढ़िया का पिटारा जीवन्त संदेश देने वाली और हृदय को छु जानेवाली छोटी छोटी बातों को बड़े रूप में समझानेवाली जीवनोपयोगी किताब (हिन्दी) ७. आओ, सुक्तियों की बगिया में चलें (द्वितीय संस्करण) प्रेरणात्मक सुक्तियों का आकर्षक संकलन (हिन्दी) ८. श्री पद्म-वर्धमान संस्कृत धातु रुपावली भाग-१,२ संस्कृत भाषा में प्रवेश करने वालों के लिए यह प्रथम द्वार है । (संस्कृत) ९. श्री बुद्धि-योग स्वाध्याय सागर योगमार्ग के अभ्यासियों के लिए आचार्य श्री हरिभद्रसूरि कृत योग ग्रंथों का सरल गुजराती अनुवाद. (प्राकृत संस्कृत, गुजराती) १०. प्रिय शिक्षाएँ धर्म श्रद्धा एवं अंतरंग सत्व को बढ़ाने वाली और पाप वृत्ति घटाने वाली सर्व हितकर शिक्षाओं का सरलतम विvate and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Serving Jin Shasan 137360 gyanmandin kobatirth.org Navneet Printers (M)098252161177 For Private and Personal Use Only