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(१४) श्री शत्रुजयगिरि सोहे श्री शत्रुजयगिरि सोहे आदिनाथ, मुज मिलीयो अविहड मुगति साथ; जस काया दोई सहस्स हाथ, ते वंदु जोडी दोई हाथ. १ गिरि उपरी आवी समोसर्या, त्रेवीश जिनवर गुण भर्या; नवि चन्या नेमि जिनेसरा, चोवीशे संप्रति सुहकरा. २ शिव पहोंता मुनिवर ईहां अनंत, ईम बोले आगम बहु सिद्धान्त; जस महिमा आदि नहि य अंत, शत्रुजयगिरि सेवो तेह संत. जस सानिधकारी कवडजक्ष, कलिकाले ए छे कल्पवृक्ष; लहे ज्ञानविमल प्रभुता घणी, जिनसेवा छे चिंतामणी. ४
(१५) श्री शत्रुजय आदिजिन आव्या श्री शत्रुजय आदिजिन आव्या, पूर्व नव्वणुंवारजी, अनंत लाभ ईहा जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारजी3B विमल गिरिवर महिमा म्होटो, सिद्धाचल तेणे ठामजी, कांकरे-कांकरे अनंता सिध्या, एकसोने आठ गिरि नामजी.१ पुंडरिक पर्वत पहोलो कहीये, एंशी योजन मानजी, वीश कोडीशुं पांडव सिद्धा, त्रण कोडीसुं रामजी; शांब-प्रद्युम्न साडाआठकोडी सिध्या, दश कोडी वारिखीलजी, पांच कोडीशुं पुंडरीक गणधर, सकल जिननी वाणीजी. २ सकल तीर्थनो राजा ए वली, विमलाचल गिरि कहीएजी,
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