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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्ञान अने निरवाण जयकारी रे; तीरथ महिमा वाधशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण निरधारी रे. इम निसुणीने तिहां आवीया रे लाल, घाती करम कर्या दूर तमवारी रे; पंच क्रोड मुनि परिवर्या रे लाल, हुआ सिद्धि हजुर भववारी रे. चैत्री पूनम दिन कीजीये रे लाल, पूजा विविध प्रकार दिलधारी रे; फल प्रदक्षिणा काउस्सग्गा रे लाल, लोगस्स थुई नमुक्कार नरनारी रे. दश वीश त्रीश चालीश भला रे लाल, पचास पुष्पनी माल अति सारी रे; नरभव लाहो लीजीये रे लाल, जेम होय 'ज्ञान' विशाल मनोहारी रे. एक० ५ (जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत् ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7 २३ एक० २ थोय पुंडरीक मंडण प्राय प्रणमीजे आदिश्वर जिन चंदाजी, नेम विना वीस तीर्थंकर गिरिचढ्या आणंदाजी. एक० ३ For Private and Personal Use Only एक० ४ आगममांहे पुंडरीक महिमा, भाख्यो ज्ञान दिणंदाजी, चैत्री पुनम दिन देवी, चक्केसरी, सोभाग्य द्यो सुखकंदाजी.
SR No.020745
Book TitleSiddhachal Vando Re Nar Nari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherMahendrasagar
Publication Year
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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