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पांचवें आदिनाथ प्रभु की स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, थोय
स्तुति
जे राजराजेश्वर तणी अद्भूत छटाए राजता, शाश्वतगिरिना उच्च शिखरे नाथ जगना शोभता, जेओ प्रचंड प्रतापथी जगमोहने विदारता,
आदि जिनने वंदता मुज पाप सहु दूरे थता. (तीन खमासमण, सकलकुशल)
चैत्यवंदन
आदिदेव अलवेसरू, विनीतानो राय; नाभिराया कुलमंडणो, मरूदेवा माय. पांचसे धनुष्यनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल; चोराशी लाख पूर्वनुं, जस आयु विशाल. वृषभ लंछन जिन वृषधरू ए, उत्तम गुणमणि खाण; तस पद 'पद्म' सेवन थकी, लहीए अविचल ठाण. (जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, जावंत, नमोर्हत्)
स्तवन
माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति मारुं मन लोभापुंजी के मारुं चित्त चोराणुं जी. करुणा-नागर करुणा-सागर, काया- कंचन-वान. धोरी-लंछन पाउले कांई, धनुष पांचसें मान. त्रिगडे बेसी धर्म कहंता, सुणे पर्षदा बार.
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माता. १