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६९. मारा प्राणना आधार
( राग : विमलाचलना वासी)
मारा प्राणना आधार, मारा हैयाना हार; सिद्धगिरि प्यारा, गिरिराजने वंदन हमारा,
सर्व तीर्थोमां मोटुं छे एह, प्राये शाश्वतगिरि छे जेह; शत्रुंजय नाम छे सार, जेथी थाय भवपार. सि० गि० १ कांकरे कांकरे सिध्या अनंता, जिन गणधर मुनि महासंता; अष्टोत्तर शत नाम, सिद्धाचल गुणधाम. सि० गि० २ दादा पूर्व नवाणुं इहां आव्या, पुंडरीक गणधर साथे लाव्या; कापी कर्मजंजीर, शिव पाम्या वडवीर. सि० गि० ३ ज्ञान ध्यानमां रहे सदा लीन, तप जपथी जाये कर्म कठीन; भवि रत्नत्रयी पामे, भव दुःखडाने वामे. जेना नामथी नव निधि थाय, जेना दर्शनथी तीर्थ भक्तिमा एकतान, पामे मुक्ति निदान.
सि० गि० ४
दूरित पलाय; सि० गि० ५
श्री अजितनाथ भगवान के चैत्यवंदन, स्तवन, थोय
अजितनाथ प्रभु अवतर्या, विनीताना स्वामी, जितशत्रु विजया तणा, नंदन शिवगामी. बहोंतेर लाख पूरव तणुं, पाल्युं जिणे आय, गजलंछन लंछन नहीं, प्रणमे सुरराय. साडा चारशें धनुषनी ए, जिनवर उत्तम देह, पादपद्म तस प्रणमीये, जिम लहीए शिव गेह..
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