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त्रण लोकमां तीरथ न एवं आ छे मुक्तिधाम. समरो. सिद्ध अनंतनुं ध्यान धरीने, स्तवना एनी करजो, सिद्धिगिरिनी यात्रा करता, भव्यनी छाप धरजो. समरो. पांडव राम नारद ऋषि ने शांब प्रद्युम्ननी जोडी, कर्म खपावी मुक्ति पाम्या, सेवक नमे कर जोडी. समरो.
२७. आविया, आविया, आविया रे आविया, आविया, आविया रे० अमे नव्वाणुं करवा आविया रे लाविया, लाविया, लाविया रे, अमे भावनाना पुष्पो लाविया रे, अमे नवाणुं करवा आविया रे० आराधनानी साथे एकासणा करता, रोज रोज पूजाओ भणावता रे, गुरुदेवनी छे अमृतवाणी, सुणीने तत्वो पामीया रे, अमे नव्वाणुं करवा आविया रे० भूली गया अमे संसारनी माया, देव-गुरु-धर्म मन लगाविया रे. अमे नव्वाणुं करवा आविया रे०
२८. सिद्धाचलमां आवीने कोइ
(राग-तारे द्वारे आवीने कोइ) सिद्धाचलमा आवीने कोइ, भवरणमा भटकाय ना,
विमलाचल नाम, सिद्धाचल धाम.
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