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प्रेम पयोनिधि प्रगट्यो अभिनव पूर जो. श्री सिद्धाचल गिरिवर मंडन शेखरा, परमकृपालु पालक प्राण आधार जो; विछोडशो नहि क्यारे प्यारा प्राणथी, रसिया करजो धर्मरत्न विस्तार जो.
१७. तीरथनी आशातना नवि करीए ...
तीरथनी आशातना नवि करीए, हांरे नवि करीए रे. (२) धुपध्यान घटा अनुसरिये, हांरे तरीये संसार. आशातना करता थका धन हाणी,
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हांरे भूख्याने न मले अन्न पाणी (२).
काया वली रोगे भराणी आ भवमां एम.
परभव परमाधामीने वश पडशे, वैतरणी नदीमां बलशे; अग्निने कुंडे बलशे नही शरणुं कोई .
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पूर्व नव्वाणुं नाथजी ईहां आव्या, साधु केई मोक्षे सिधाव्या; श्रावक पण सिद्धि सुहाव्या जपतां गिरि नाम. अष्टोत्तर शतकुट ए गिरि ठामे सौंदर्य यशोधर नामे प्रीति मंडण कामुक कामे वली सहजानंद.
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महेन्द्र ध्वज सरवारथ सिद्ध कहीए प्रियंकर नाम ए लहीए गिरि शीतल छांय रहीये नित्य धरीए ध्यान.
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पूजा नव्वाणुं प्रकारनी एम कीजे नरभवनो लाहो लीजे वली दान सुपात्रे दीजे चढते परिणाम.
सेवनफल संसारमां करे लीला रमणी धन सुंदर बाला
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