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मूर्तिनव्वाणुं भ्राता... गोमुख यक्ष चक्केसरी देवी, शत्रुजयसार करे नितमेवी.,
तपगच्छ उपर हेवी. श्री विजयसेन सूरीश्वर राया,श्री विजयदेव गुरु प्रणमी पाया;
ऋषभदास गुण गाया. ४ (११) सवि मली करी आवो सवि मली करी आवो, भावना भव्य भावो, विमलगिरि वधावो, मोतियां थाल लावो; जो होय शिव जावो, चित्त तो वात भावो, न होय दुश्मनदावो, आदि पूजा रचावो. शुभ केशर घोली, माहे कपूर चोली, पहेरी सित पटोली, वासीये गंध घोली; भरी पुष्पपटोली, टालीये दुःख होली, सवि जिनवर टोली, पूजीये भाव भोली. शुभ अंग अग्यार, तेम उपांग बार, वली मूलसूत्र चार, नंदी अनुयोगद्वार; दशपयन्ना उदार, छेद षट् वृत्ति सार, प्रवचन विस्तार, भाष्य नियुक्ति सार. जय जय जय नंदा, जैन दृष्टि सूरीदा, करे परमानंदा, टालता दुःख दंदा; ज्ञानविमलसूरिंदा, साम्य माकंद कंदा, वर विमल गिरिंदा, ध्यानथी नित्य भद्दा.
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