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पंखीमांहे जेम उत्तम हंस, कुलमांहे जेम ऋषभनो वंश, नाभि तणो ए अंश;
क्षमावंतमां श्री अरिहंत, तप शूरा मुनिवर महंत
शत्रुंजय गिरि गुणवंत. १ ऋषभ अजित संभव अभिनंदा, सुमतिनाथ मुख पूनम चंदा, पद्मप्रभ सुखकंदा; श्री सुपार्श्व चंद्रप्रभ सुविधि शीतल श्रेयांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्यमति शुद्धि, विमल अनंत धर्म जिन शान्ति, कुंथु अर मल्लि नमुं ए कान्ति; मुनिसुव्रत शुद्ध पान्ति. नमिनेमि पास चीर जगदीश, नेमविना ए जिन त्रेवीश., सिद्धगिरि आव्या ईश. २ भरतराय जिन आगे बोले, स्वामी शत्रुंजयगिरि कुण तोले., जिननुं वचन अमोले. ऋषभ कहे सुणो भरतजी राया, छरी पालंता जे नर जाय., पातिक भूको थाय. पशु पंखी जे इणगिरि आवे, भवत्रीजे ते सिद्ध ज थावे., अजरामर पद पावे. जिनमत में जो वखाण्यो, ते में आगम दिलमांहे आण्यो.. सुणतां सुर ऊर ठाण्यो ३ संघपति भरत नरेसर आवे, सोवनतणां प्रासाद करावे., मणिमय मूरत ठावे. नाभिराया मरूदेवी माता, ब्राह्मी सुंदरी बहेन विख्यात,
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